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गुरु नानक देव जयंती-, सिख धर्म के सबसे प्राचीन गुरु गुरु नानक देव

 

– सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”

यह चौदहवी शताब्दी का समय था जब सिक्ख धर्म अस्तित्व में आया। सिक्ख धर्म का जन्मदाता गुरु नानक को माना जाता है । इस धर्म में उनके बाद नौ गुरु हुए, जिन्होंने इस धर्म की स्थापना के बाद उसे सतत रूप से आगे बढ़ाया ।
गुरुनानक का जन्म 1469 ई. गुजरांवाला जिले में तलवंडी नामक छोटे से गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम कालूराम था तथा माता का नाम तू था। ऐसा कहा जाता है कि नानक बचपन से ही धीर गंभीर प्रवृत्ति के थे। बुद्धि भी कुशाग्र थी, वे प्रायः दुनिया की ‌ओर से उदासीन रहते थे। नानक को हिन्दी, संस्कृत, फारसी में अच्छा अधिकार प्राप्त था।
सिर्फ सोलह वर्ष की उम्र में ही इनका विवाह हो गया। इनके दो ही लड़के थे जिनका नाम श्रीचंद एवं लक्ष्मीदास थे। नानक उन्हें भी साधु संत की संगत में रहने को करते इसलिए कट्टर धार्मिक विचारों और साधू संतो की संगत उनके गृहस्थ जीवन में भी कोई बाधा नहीं खड़ा कर सका था।
नानक के काल में भेदभाव, आडम्बर, कपट आदि कर बड़ा बोलबाला था। यह सब देखकर वे बड़े क्षुब्ध रहते थे।वे हमेशा उक्त विसंगतियों से समाज के सुधार का सोचा करते। गंभीर चिंतन मनन के बाद ही उन्हें एक सुनिश्चित विचारधारा एवं सिद्धांत के अंतर्गत जीवन यापन की प्रेरणा प्राप्त हुई थी।
नानक सत्यमार्ग की खोज में उत्कंठित थे। इसी समय अर्थात युवा आयु में उन्होंने गृहस्थ त्याग अर्थात घरबार को छोड़कर सन्यास धारण कर लिया। इसी दरम्यान उन्हें सत्यमार्ग का ज्ञान प्राप्त हुआ। नानक ने अपनी अपनी शिक्षाओं और उपदेशों से समाज में लोगों को आडंबर पूर्ण क्रिया कलापों से बाहर निकालने को प्रेरित करना प्रारंभ किया।नानक ने सिक्ख धर्म की स्थापना की, जो प्रारंभ में तो बिल्कुल धर्म पर अधारित था।
पश्चात उस समय की विषम परिस्थितियों एवं सत्ता लोलुपता एवं भ्रष्ट राजाध्यक्षों के अत्याचारों से त्रस्त होकर बाद के गुरुआरें ने सिक्ख धर्म को धार्मिक के साथ सैनिकता का भी अमली जामा पहनाया ।
नानक अपने को भगवान का दूत मानते थे, और उनका कहना था कि इश्वर एक है, नानक उसका दूत और नानक जो कुछ कहता है सत्य कहता है।
उनकी शिक्षाओं में प्रेम, समानता, और सेवा के मूल्यों पर जोर दिया गया है। उन्होंने जाति-पाति और धार्मिक भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई और लोगों को एक ईश्वर की पूजा करने के लिए प्रेरित किया।गुरु नानक जी की शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं और लोगों को प्रेरित करती हैं। उनकी शिक्षाओं में शामिल हैं:

– एक ईश्वर की पूजा करना
– सच्चाई और न्याय के मार्ग पर चलना
– दूसरों की सेवा करना
– प्रेम और करुणा के साथ जीना
– जाति-पाति और धार्मिक भेदभाव के खिलाफ होना।
गुरु नानक जी की शिक्षाएं सिख धर्म के पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित हैं। उनकी शिक्षाएं न केवल सिख समुदाय के लिए, बल्कि पूरे विश्व के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।नानक की शिक्षायें इस प्रकार है:- पहली शिक्षा:- नानक इस्लाम के पैगम्बरवाद को मानते थे। उनका ईश्वर सर्वशक्तिमान, निर्गुण, उदार तथा श्रेष्ठ है।
दूसरी शिक्षा:- नानक ने कहा कि धार्मिक आचरण या शुद्ध आचरण से ही सत्यज्ञान की प्राप्ति हो सकती है। तीसरी शिक्षा:- नानक का कहना था कि, जो सत्यज्ञान की प्राप्ति के लिए गुरु का बहुत महत्व है।एक गुरु की महिमा को उन्हानें बहुत महत्व दिया ।
चौथी शिक्षा:- नानक की शिक्षा थी कि सत्यज्ञान की प्राप्ति के लिए इश्वर के “सत्यनाम” का निरंतर जाप करना चाहिए।
पांचवी शिक्षा:- वे आवागमन को मानते थे, और कहते थे कि जब तक मनुष्य को आत्मा, को सत्य का ज्ञान नहीं हो जायेगा, तब तक वह आवागमन के चक्कर में पड़ी दुःख भोगते रहेगी।
छठवीं शिक्षा:- नानक, ऊंच नीच भेदभाव, मूर्तिपूजा, पाखंड तथा अंध विश्वासों के विरुद्ध थे ।
वैसे तो वे सन्यास को भी ठीक नहीं मानते थे उनका कहना था कि शुद्ध आचरण तथा पवित्र जीवन ही जीव की मुक्ति का साधन है। उनकी दृष्टि में हिन्दू, मुसलमान, कुरान और रामायण सब बराबर थे।
गुरुनानक के बाद सिक्ख धर्म को बढ़ाने के लिए अन्य और नौ गुरु हुये, जिनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है गुरु अंगद सिक्खों के दूसरे गुरु अंगद थे। अंगद ने उत्तर भारत की लिपियों को मिला जुलाकर गुरुमुखी लिपि का विकास किया।
नानक की शिक्षाओं के ‘प्रचारार्थ उन्होनें कई केन्द्र स्थापित किए जहां नानक की शिक्षाओं पर चर्चायें तथा संत्संग होता था। गुरु आनंद ने नानक की रचनाओं को इकट्ठा करके उनका एक संग्रह तैयार किया। गुरु अमर दास गुरु आनंद के उत्तराधिकारी गुरु अमरदास हुये। उन्होनें सिक्ख धर्म में से उदासियों को अलग कर दिया। गुरु अमरदास ने बहुत सी मंझिया स्थापित की, जिनमें उन्हानें एक धर्म शिक्षक रखा, जो नानक की शिक्षाओं का प्रचार करता था।
गुरुदास गुरुरामदास अमरदास के दामाद थे। उन्होनें ही वर्तमानं अमृतसर नगर की नींव डाली थी। अमृतसर के स्वर्ण मंदिर की नींव भी इन्हीं के समय में डाली गई। गुरु रामदास ने मसंद प्रथा चलाई।
गुरु अर्जुनदेव पांचवे गुरु थे।उन्होंने अमृतसर में स्वर्णमंदिर को बनवाने का काम पूरा कराया। इसके अलावा तरनतारन और करतार में भी उन्होनं सिक्ख मंदिर बनवाने। गुरु अर्जुन देव ने गुरुओं की गढ़ी अमृतसर में स्थापित की। उन्होनें अपने से पहले के गुरुओं की शिक्षाओं तथा अन्य संप्रदयों की शिक्षाओं को एकत्रित करके उनका एक संग्रह बनाया। यहीं ग्रंथ सिक्खों की “आदिग्रथ” कही जाती है।
गुरु अर्जुनदेव ने मसंद प्रथा को एक सुदंर व व्यवस्थित रूप प्रदान किया। गुरु हरगोविंद ने अपने को सिक्खों का धार्मिक नैतिक तथा राजनैतिक नेता दोनों घोषित कर दिया। उन्होनें अमृतसर में एक सदृढ़ किला बनवाया। अपने अनुयायियों को सैनिक शिक्षा में परांगत भी किया।
गुरु हरराय गुरुगोविंद के बाद उनके पुत्र हरराय व सिक्खों की हत्या करवा देना देने का षड्यंत्र था, पर इस काम मे विरोधियों को सफलता नहीं मिल पाई |1661 ई. में गुरु हरराय की मृत्यु हो गई।
गुरु हर कृष्ण गुरु हरराय की मृत्यु के बाद हरकृष्ण सिक्खों के नेता बने। पर तीन वर्ष बाद ही चेचक के कारण उनकी मृत्यु हो गई। गुरु हरकृष्ण के बाद 1664 ई. में तेग बहादुर गुरु बने। उन्होंने सिक्ख जाति को संगठित किया और उनमें राष्ट्रीयता की भावना पैदा की। औरंगजेब इनको भी मरवा डालना चाहता था।
काश्मीर में हिन्दुओं के मामले को लेकर जब गुरु तेग बहादुर ने औरंगजेब का विरोध किया तो 1675 ई. में औरंगजेब ने उन्हें दिल्ली बुला भेजा। यहीं उसने गुरु का वध करवा दिया। सिक्खों के दसवें और अंतिम गुरु ने कौम के अंदर नई चेतना उत्पन्न कर दी। उनका कहना था कि जब सब उपाय असफल हो जायें, तो तलवार उठाना ही न्यायसंगत है।

– सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”

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