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मिलर आर्थिक तंगी से जूझ रहा है

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मिलर आर्थिक तंगी से जूझ रहा है

मिलर आज बैंक गारंटी बनाने के लिए व पुराने बारदानों की रिपेयरिंग भी करा पाने में असमर्थ हैं। गत वर्षों के बारदाना जमा की राशि व यूजर चार्ज नहीं मिलने से मिलर इस वर्ष शासन को पुराना बारदाना देने में असमर्थ व असहाय महसूस कर रहे हैं। निश्चित रूप से सरकार की धान खरीदी में ५०-५० के अनुसार नये और पुराने बारदानें में खरीदी होनी है जो मिलर की बारदाना जमा की असमर्थता के कारण प्रभावित होना संभावित है।

वर्तमान सरकार का दायित्व

प्रदेश में १६० लाख मे टन धान उपार्जन के लक्ष्य की पूर्ति के लिए प्रदेश शासन को केन्द्र सरकार व एफसीआई से तालमेल बनाकर यहां के उपार्जित चांवल को आवश्यकतानुसार अन्य प्रान्तों में भेजने की सुदृढ़ योजना बनाना चाहिए। भण्डारण क्षमता बढ़ने की दिशा में नये गोदामों का निर्माण भी आवश्यक प्रतीत होता है। साथ ही प्रदेश के मिलर को प्रोत्साहित करने के लिए कस्टम मिलिंग राशी के साथ विगत वर्षो के अनुसार प्रोत्साहन राशि में और वृद्धि करने पर ध्यानकर्षित करने व मिलर से सामान्य नीति निर्देश से मिलिंग करवाने के निर्णय से सरलता के साथ धान का निराकरण व चांवल प्रदाय को सुचारू रूप से सम्पन्न किया जा सकता है।
*कस्टम मिलिंग नीति में मिलर की स्थिति* – वर्तमान में प्रदेश की कस्टम मिलिंग नीति से प्रदेश के मिलर को आर्थिक नुकसान होता दिख रहा है। पूर्व वर्ष के उठाए गए धान को एफसीआई अभी तक स्थानाभाव के कारण चांवल नहीं ले पायी है । जिससे मिलर को धान सूखत व धान की क्वालिटी व अन्य खर्चो के कारण ही नुकसान हो रहा है। और शासन द्वारा वर्तमान नीतियों को जारी कर मिलर पर विभिन्न प्रकार की कड़ाई व ५० प्रतिशत प्रोत्साहन राशि की कटौती होने पर यह उद्योग प्रभावित होने की कगार पर पहुंच गया है। प्रदेश के सभी मिलर का विगत दो वर्षों का भुगतान का निराकरण शासन – प्रशासन द्वारा नहीं किया गया है। जिसमें २३-२४ तक का अनुमानित 4000 करोड़ की राशी मिलर को मार्कफेड से लेना बाकी है। इसमें मिलिंग राशी , प्रोत्साहन राशि, बारदाना राशी, धान/ चांवल परिवहन राशी, एफआरके की राशि व अन्य भुगतान मिलर को करने पर ही चांवल उद्योग को बचाया व कृषकों की उपज का निराकरण किया जा सकता है। यह जानकारी योगेश अग्रवाल प्रदेश अध्यक्ष
राइस मिलर्स एसोसिएशन द्वारा दी गई।

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