जिला पंचायत परिसर छत्तीसगढ़ी व्यंजनों का गढ़कलेवा बंद, प्रारंभ करने की मांग उठी
– सुरेश सिंह बैस
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ी संस्कृति और व्यंजनों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से शुरू किए गए गढ़कलेवा के बंद होने से जिला मुख्यालय परिसर में एक खास रसोई की कमी महसूस की जा रही है। जिला पंचायत परिसर में संचालित गढ़कलेवा, जो जिलेवासियों और सरकारी कर्मचारियों के लिए छत्तीसगढ़ी व्यंजनों का प्रमुख स्रोत था, अचानक पिछले कुछ महीनों से बंद पड़ा है। इस कदम ने स्थानीय लोगों और कर्मचारियों को परेशानी में डाल दिया है, जो यहां परंपरागत छत्तीसगढ़ी व्यंजनों का आनंद लिया करते थे।गढ़कलेवा की स्थापना पूर्व की भूपेश बघेल सरकार ने छत्तीसगढ़ी
व्यंजनों को लोकप्रिय बनाने और राज्य की सांस्कृतिक धरोहर को
सहेजने के लिए की थी। इसका उद्देश्य केवल स्वाद से जुड़ा नहीं था, बल्कि राज्य के ग्रामीण और पारंपरिक व्यंजनों को एक नई पहचान देना भी था। इस परियोजना का संचालन बिलासा महिला स्व सहायता समूह बंगाली पारा सरकण्डा द्वारा किया जा रहा था, जिसके अध्यक्ष सहोदरा सोनी और उनके पति दीपक सोनी इस पहल को संभाल रहे थे।गढ़कलेवा के अचानक बंद होने के पीछे कोई स्पष्ट कारण सामने नहीं आया है। हालांकि, अज्ञात कारणों से बंद होने की खबर ने इस विषय पर सवाल उठाए हैं। यह बंदी स्थानीय समुदाय के लिए एक झटका साबित हो रही है, क्योंकि सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों और आस-पास के लोगों को अब छत्तीसगढ़ी व्यंजनों का स्वाद नहीं मिल पा रहा है।छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों में गढ़कलेवा का संचालन छत्तीसगढ़ी व्यंजनों को लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। यहां पर “फरा”, “चीला”, “ठेठरी”, “चौसेला”, “बरा” जैसे अनेक व्यंजन बनाए जाते थे, जिनका स्वाद छत्तीसगढ़ की मिट्टी की पहचान है। इस पहल का उद्देश्य राज्य की सांस्कृतिक धरोहर को बढ़ावा देना और युवाओं को इन व्यंजनों के प्रति आकर्षित करना था।