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रसायन विज्ञान विभाग एवं आन्तरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ के संयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रीय सेमिनार किया गया

 

कमलेश लौव्हातरे / बिलासपुर : शासकीय बिलासा कन्या स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय में रसायन विज्ञान विभाग एवं आन्तरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ के संयुक्त तत्वावधान में 1 व 2 मार्च 2023 को राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया जा रहा है। विषय “Recent trends in chemical science An Interdisciplinary research area in physical, biological and environmental science” यह आयोजन छत्तीसगढ़ विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद के द्वारा सम्पोषित है। इस आयोजन में प्रथम दिवस मुख्य अतिथि के रूप में प्रोफेसर डा. ए. डी. एन. वाजपेयी (कुलपति अटल बिहारी वाजपेयी विवि बिलासपुर) थे। अध्यक्षता प्रो. आर.पी. दुबे ( कुलपति डा. सी. वी. रमन विधि कोटा बिलासपुर) ने की। विशिष्ट अतिथि के रूप में डा. ज्योति रानी सिंह (क्षेत्रीय अपर संचालक, उच्च शिक्षा, बिलासपुर संभाग) और महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. एस. आर. कमलेश की गरिमामयी उपस्थिति रही। आयोजन की प्रस्तावना और कार्यक्रम की रूपरेखा सेमिनार के संयोजक डॉ. किरण वाजपेयी ने रखी।

मुख्य अतिथि डॉ. बाजपेयी ने कहा कि जो सत्य है वह आवरण में है उसका अनावरण करना ही शोध है। शोध में दर्शन तत्व होना चाहिए। भारतीय दर्शन से उत्पन्न ज्ञान विज्ञान रचनात्मक है जो हमें शान्ति और विकास की ओर ले जाता है। प्राचीन काल में विज्ञान या तकनीकी था ही नहीं, अपितु विश्व के विभिन्न देशों में विज्ञान का कमिक विकास हुआ। भारतीय विज्ञान के इतिहास के सन्दर्भ में अनेक उल्लेखनीय साक्ष्य उपब्ध है। वैशेषिक दर्शन के प्रणेता एवं भौतिक विज्ञानी आचार्य कणाद की शिष्य प्रशस्तपाद ने पदार्थधर्मसंग्रह लिखा था, जिसमें अणुओं और परमाणुओं की विवेचना है। भारत में रसायन शास्त्र की अति प्राचीन परंपरा रही है। धातुओं को पिघलाने इत्र के आसवन, रंग बनाने, चीनी बनाने, कांच का उत्पादन आदि विधाओं में भारत प्राचीन काल से उन्नत था। पुरातन ग्रंथों में धातुओं, अयस्कों, यौगिकों तथा मिश्र धातुओं की अद्भुत जानकारी उपलब्ध है। आधुनिक विज्ञान के प्रारंभिक चरण में ज्ञात धातुओं का उल्लेख प्राचीनतम संस्कृत साहित्य जैसे ऋग्वेद, यजुर्वेद एवं अथर्ववेद में उपलब्ध है। इस प्रकार वेदों में धातुओं के वर्णन के आधार पर हम भारत में रसायन शास्त्र का प्रारंभ ईसा से हजारों वर्ष पूर्व मान सकते हैं। छादोग्य उपनिषद में धात्विक मिश्रण का स्पष्ट वर्णन मिलता है। इसी प्रकार विश्व प्रसिद्ध चरक एवं सुश्रुत संहिताओं जिनमें औषधीय प्रयोगों के लिए पार जस्ता तांबा आदि धातुओं एवं उनकी मिश्र धातुओं को शुद्ध रूप में प्राप्त करने तथा अनेको औषधियों के निर्माण में उपयोग होने वाली रसायनिक प्रक्रियाओं यथा द्रवण, आसवन आदि का विस्तृत वर्णन मिलता है।

डॉ. आर.पी. दुबे ने कहा कि हमारे देश में प्रकृति के ज्ञान से विज्ञान का जन्म हुआ, पंचमहाभूत का ज्ञान और शरीर विज्ञान का ज्ञान होना चाहिए विज्ञान अध्यात्म से जुड़कर ही समाजोपयोगी साबित हो सकता है भारत में नागार्जुन द्वारा लिखी गई पुस्तक रसरत्नाकार अपने में रसायन का तत्कालीन अथाह ज्ञान समेटे हुए है। वराहमिहिर ने अपनी वृहत् संहिता में अस्त्रशस्त्रों को बनाने के लिए अत्यंतर च्य कोटि के इस्पात के निर्माण की विधि का वर्णन किया है। भारतीय इस्पात की गुणवत्ता इतनी अधिक थी कि उनसे बनी तलवारों के फारस आदि देशों तक निर्यात किये जाने के ऐतिहासिक प्रमाण मिले हैं विज्ञान के अन्य क्षेत्रों जैसे खगोल विज्ञान व गणित विज्ञान से सम्बन्धित उन्नत शोधपरक वैज्ञानिक तथ्य भी प्राचीन

ग्रंथों में उल्लेखित है। खगोल विज्ञान में आर्यभट् के नाम से कौन परिचित नहीं है। प्राचीन काल से लेकर अब तक विज्ञान कि यह परंपरा आधुनिक वैज्ञानिकों जैसे कि श्रीनिवास रामानुजन, जगदीशचंद्र बोस. सी.वी. रमन. एम. विश्वेश्वरैया, सत्येन्द्रनाथ बोस और सुब्रह्मण्यम, आचार्य प्रफुल्ल चंद्र ने अक्षुण्ण रखा हैं।

डॉ. ज्योति रानी सिंह ने कहा कि वर्तमान समय में जीवन के सारे क्षेत्रों में रसायन की जरूरत है और इसमें सतत शोध की आवश्यकता है। वर्तमान परिदृश्य में शोध उन्नत व प्रायोगिक दृष्टिकोण आधारित हो गयी है। विज्ञान कि उन्नति में सक्रिय सहयोग सुनिश्चित करने के लिए इंटरडिसिप्लिनरी (interdisciplinary) रिसर्च पर जोर दिया जा रहा है, जिसमें भिन्न-भिन्न विषयों के सामूहिक योगदान, वैज्ञानिक विधियों या तकनीकों की साझेदारी से समस्याओं का समाधान किया जाता है। इंटरडिसिप्लिनरी (interdisciplinary) रिसर्च के कारण ही नए विषयों जैसे कि पर्यावरण, जीवविज्ञान, बायोकेमिस्ट्री, बायोफिजिक्स, बायोमेडिकल आदि का विकास हुआ। नेशनल एजुकेशन पालिसी 2020 में भी मल्टी डिसिप्लिनरी शिक्षा पर फोकस किया गया है।

डॉ. एस. आर. कमलेश ने कहा कि विज्ञान आगे की तरफ बढ़ने और देखने की जीवन दृष्टि है। किसी भी राष्ट्र के सर्वागीण विकास में विज्ञान और अनुसंधान की महत्ता निर्विवाद है विकसित राष्ट्रों में विज्ञान एवं तननीकी का उन्नत होना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन व रसायनज्ञ डी. मँडलीव ने आधुनिक भौतिकीय विज्ञान की आधारशिला रखी। इसी समय विज्ञान के अन्य क्षेत्र जैसे प्राकृतिक विज्ञान, खगोलशास्त्र और जीवविज्ञान के क्षेत्र में नवीन अनुसंधान किए गए। कालान्तर में डीएनए की खोज सेमिकंडक्टर नैनोटेक्नोलॉजी जेनेटिक इंजीनियरिंग, बायोइंटरमेटिक्स इंटरनेट कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी, आर्टिफिशियल इंटेलेजेंस एस्टोनॉमी एंड एस्टोफिजिक्स स्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी, क्लाउड कंप्यूटिंग, आधुनिक चिकित्सा एवं भेषज विज्ञान जैसे क्षेत्रों ने पूरे विश्व में विज्ञान अनुसंधान एवं तकनीकी को प्रतिष्ठित किया।

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