प्रांतीय वॉच

छूरा ब्लाक के भरूवामुडा के आश्रित ग्राम कोकनाक्षेडा में हो सागौन पेड़ो की जमकर अवैध कटाई

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  • वन विभाग के अधिकारियों ने कहा जहा पेड़ की कटाई हुई है वह राजस्व में आता है जिसकी जानकारी राजस्व विभाग को दे दी गई है।
यामिनी चंद्राकर/ छुरा : आदिवासी विकासखण्ड छूरा क्षेत्र में इन दिनों जमकर पेड़ो की अवैध कटाई बदस्तूर जारी है एक तरफ सरकार विभिन्न योजना संचालित कर ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने के लिए लोगो को प्रेरित कर रहे ताकि पर्यावरण बना रहे और लोगो को शुद्ध हवा मिल सके लेकिन क्षेत्र में खेत बनाने व मिट्टी की ईंट निर्माण के लिए बिना शासन के अनुमति के फलदार सहित इमारती कीमती लकड़ी की कटाई बेरोक टोक बदस्तूर जारी है। ऐसा ही एक मामला सामने आया है छूरा विकासखण्ड के ग्राम पंचायत भरूवामुडा के आश्रित ग्राम कोकनाक्षेडा में जहां नदी के किनारे लगे जमीन पर सैकड़ो पेड़ को काटकर खेत बनाया जा रहा है जिसकी जानकारी लगने पर हमारे छतीसगढ़ वॉच सवांददाता ने मौके पर पहुचकर देखा तो बड़ी संख्या में सैगोन लकड़ी को काटा गया है मौके पर कोई नही मिलने से यह पता नही चल पाया है कि यहां पेड़ की कटाई किसके द्वारा किया जा रहा है।जिसकी जानकारी वन परिक्षेत्र कार्यालय छूरा पहुचकर उस क्षेत्र के डिप्टी रेंजर साहू जी को दिया गया इस सम्बंध में डिप्टी रेंजर साहू ने कहा कि हम लोगो को सूचना मिली थी और हम वहां गए भी थे पेड़ की कटाई जिस जगह पर हुई है वह इलाका राजस्व एरिया में आता है जिसकी जानकारी राजस्व विभाग को दे दी गई है। अब यहां पर सवाल यह उठता है कि 1 माह पहले पहले दी गई सूचना पर राजस्व विभाग द्वारा किसी भी प्रकार की कार्यवाही नही करना कई सन्देहों को जन्म देता है जबकि नियम के हिसाब से अपने पट्टे वाली भूमि पर भी पेड़ काटने के लिए जिले के जिलाधीश से परमिशन लेना होता है उसके बाद विभाग उस पेड़ को कटवाकर लकड़ी की राशि पट्टेधारक को प्रदान करता है उसमें भी भूमि स्वामी के पट्टे पर पेड़ की संख्या का उल्लेख होना जरूरी है। लेकिन जिम्मेदार लोगों के द्वारा पेड़ो की अवैध कटाई पर ध्यान नही देने के चलते छूरा ब्लाक में कच्चे इट निर्माताओं द्वारा बिना मंजूरी के हरे भरे पेड़ो को काटकर ईटा पकाया जा रहा है इस ओर न ही वन विभाग ध्यान दे रहा है और न ही राजस्व विभाग जिसके चलते अवैध कटाई का सिलसिला बदस्तूर जारी है। समय रहते अगर विभाग द्वारा ध्यान नही दिया गया तो वो दिन दूर नही रहेगा जब गावो में पेड़ देखने को नही मिलेंगे। और इसका सीधा असर पर्यावरण पर भी पड़ेगा।
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