THE INSIDE STORY: तिरछी नजर👀 धान पर घमासान….
धान खरीदी के लिए घमासान मचा हुआ है। अंततः राईस मिलरों की मांग के सामने सरकार को समझौता करना पड़ा। राईस मिलरो की मांग का अधिकारी तर्क संगत विरोध करते रहे और एक अधिकारी लंबी छुट्टी पर हैं। मंत्रिपरिषद की बैठक में एक मंत्री ने जांच का हवाला देते हुए विरोध किया था जिसके कारण ही राईस मिलरों का आंदोलन लंबा खींच गया। राईस मिलरों के आंदोलन की जिम्मेदारी दो बड़े मंत्रियों को दी गयी थी,दोनों मंत्री फेल हो गये। नये नवेले चर्चित मंत्री ने समझौता कराकर मामला शांत किया। इस पूरे घटनाक्रम के बाद राईस मिल एसोसियेशन दो भाग में विभाजित हो गया। जमकर वसूली भी हुई। कौन हारा, कौन जीता इस पर मंत्रालय से लेकर गरियाबंद तक चर्चा हो रही है। अब धान खरीदी में पिछडऩे के चलते पंचायत चुनाव में नुकसान की आशंका डरा सता रही है।
फाईलों के चलने से राहत..
मंत्रालय में हुए फेरबदल के बाद फाईलें चलने लगी है। पहले आरोप था कि फैसले नहीं हो रहे हैं। फाईलें डम्प है। अब सीएम सचिवालय में नई पदस्थापना के बाद फाईलों का मुमेंट बढ़ गया है। एक तेज तर्रार सेकेट्री अपने विभाग को दौड़ाने के लिए योजना बना रहे थे। फैसले ले रहे थे पर अंतिम सहमति की प्रत्याशा में फाईलों महीनों तक अटक रही थी। ताजा कार्य आबंटन के बाद फाईलें तीन दिनों में वापस आने से विभाग के अधिकारी भी खुशी मना रहे हैं। मुख्यमंत्री ने नया वर्ष के प्रथम दिन सभी अधिकारियों को काम में ढिलाई नहीं बरतने के निर्देश दिए हैं। इसका कितना असर पड़ेगा ,यह तो आने वाले समय में पता चलेगा,लेकिन काम में कसावट दिखने लगी है।
डिस्टलरी मालिक को छूट..
शराब घोटाले की जांच पड़ताल पिछले डेढ़ वर्षो से चल रही है। राजधानी रायपुर से लेकर जिला स्तर तक के आबकारी अधिकारी लपेटे में है। राजधानी रायपुर में वैध और अवैध शराब को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष संचालन करने वाले ईडी की राडार में है। आर्थिक अपराध शाखा के निशाने पर है। इन अवैध शराबों को बिक्री कराने में बड़ी भूमिका निभाने वाले आधा दर्जन शराब फैक्ट्री मालिकों का नाम रहस्यमय तरीके से गायब दिख रहा है।
शराब के धंधे के माहिर डिस्टलरी के मालिकों के खिलाफ बड़े से लेकर छोटे तक नेताओं ने कई तथ्यात्मक शिकायत की है लेकिन सभी विचार धाराओं की पार्टियों तक पैठ रखने वाले शराब मालिक निश्चित हैं। मार्च में बनने वाली नई शराब नीति पर अपनी निगाह रखे हुए है। शराब नीति को सही तरीके से चलाने वाले एक अदद व्यक्ति की तलाश की भी हो रही है।
कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य छत्तीसगढिय़ा बन रहे…
कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य रंजीत रंजन,राजीव शुक्ला और अधिवक्ता के.टी.एस तुलसी पर जो लोग बाहरी होने का मुद्दा उठाते हैं,उन्हें इन तीनों के खिलाफ कोई दूसरा मुद्दा उठाना पड़ेगा। वजह यह है कि ये तीनों अब छत्तीसगढ़ी बन रहे हैं।
बिहार रहवासी श्रीमती रंजीत रंजन ने छेरीखेड़ी में करीब 4 हजार वर्गफीट जमीन खरीद ली है। इसी तरह राजीव शुक्ला ने भी छेरीखेड़ी में सांसद,विधायकों को मिलने वाली रियायती दर पर जमीन ली है। के.टी.एस.तुलसी ने अभी जमीन नहीं ली है,लेकिन देर सबेर वो भी रियायती जमीन ले सकते हैं।
इससे परे विशेष कर भाजपा के लोग तीनों राज्यसभा सदस्यों की सक्रियता पर सवाल खड़े करते रहे हैं और यह भी आरोप लगाते रहे हैं कि उन्हें छत्तीसगढ़ से लेना देना नहीं है। मगर यहां जमीन जायदाद खरीद लिए हैं तो छत्तीसगढ़ से लेना देना भला कैसे नहीं रहेगा।
आचार संहिता के दायरे में लाने की कोशिश
भाजपा में कैबिनेट विस्तार की कवायद चल रही है।पार्टी के सीनियर विधायक मंत्री बनने की जुगत में है। मगर अमर अग्रवाल को छोडक़र बाकी सीनियर विधायकों को निराशा हाथ लग सकती है। यद्यपि पार्टी संगठन ने सीनियर विधायकों में से एक को विधानसभा उपाध्यक्ष का पद देने का मन बनाया है।
चर्चा है कि अंतागढ़ के विधायक विक्रम उसेंडी को यह आफर दिया गया है लेकिन उन्होंने विनम्रता पूर्वक मना कर दिया है। अब पार्टी की दो तेज तर्रार पूर्व मंत्रियों पर नजर है। ये दोनों पार्टी को विधानसभा के भीतर कटघरे में खड़ा करने में कोई कसर बाकी नहीं रख रहे हैं ऐसे में इनमें से एक को उपाध्यक्ष का पद देकर पार्टी की आचार संहिता के दायरे में लाने की कोशिश हो रही है। सीनियर विधायक इसके लिए तैयार होते हैं या नहीं ,यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
टी ‘ का टेंशन नहीं
वास्तुकला में तिराहे के मुहाने पर आने वाले भूखंड को नहीं खरीदने की सलाह दी जाती है। माना जाता है कि ‘टी ‘ प्वाइंट पर आने वाले भूखंड टेंशन देते हैं। आपको जानकार आश्चर्य होगा कि विष्णुदेव सरकार ने एक नहीं पाँच-पाँच टी के ज़रिए सरकार चलाने की रणनीति बनाई है । इस पर अमल शुरू हो गया है और इसके बेहतर नतीजे नज़र आ रहे हैं। ये हैं- टेक्नोलॉजी, ट्रांसपेरेंसी, टाइम, टीमवर्क और ट्रांसफॉर्मेशन। कई विभागों के कामकाज पर इसका असर दिखने लगा है। सरकार टेंशन फ्री है। इससे उन लोगों की टेंशन बढ़ गई है, जो दांये-बाँये करते रहते थे।
असली रसूख
राजनीति और पत्रकारिता में रुचि रखने वालों की चर्चाओं में एक सवाल आम होता है- सरकार में किसकी चल रही है? असली रसूखदार कौन है? सरकार बनने के सालभर बाद भी लोग जवाब खोज रहे हैं। इसका एक संकेत पिछले दिनों मिला, जब नए और पुराने शहर को जोड़ने वाली नई कॉलोनी बनाने की घोषणा की गई । करीब ग्यारह सौ एकड़ के प्रोजेक्ट में कई प्रभावशाली लोगों की क़ीमती ज़मीन जा रही है । इनमें एक आध्यात्मिक संस्था की भी ज़मीन शामिल है । संस्था के लोगों ने ज़मीन बचाने के लिये स्थानीय स्तर पर काफ़ी प्रयास किया, मगर बात नहीं बनी। संस्था ने राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास किया तो सरकारी तंत्र को अपने कदम पीछे खींचने पड़े । अब सरकारी अफसर संस्था से जुड़े लोगों के पीछे घूमने लगे । अंततः संस्था की ज़मीन प्रोजेक्ट से बाहर हो गई । इस एक वाक़ये से जानकारों को संकेत मिल गया कि किसकी चल रही है ।