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शक्ति ही शांति का आधार है : मोहन भागवत

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संघ प्रमुख ने विजयादशमी पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित किया

नागपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का आज स्थापना दिवस है। साल 1925 में दशहरा के दिन ही महाराष्ट्र के नागपुर में आरएसएस की स्थापना हुई थी। नागपुर के रेशम बाग में संघ का वार्षिक विजयादशमी कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कार्यक्रम को संबोधित भी किया।

शक्ति ही शांति का आधार
भागवत ने कहा कि शक्ति ही शांति का आधार है। उन्होंने कहा कि आज आत्मनिर्भर भारत की आहट हो रही है। विश्व में भारत की बात सुनी जा रही है। आत्मा से ही आत्मनिर्भरता आती है। विश्व में हमारी प्रतिष्ठा और साख बढ़ी है। जिस तरह से हमने श्रीलंका की मदद की। रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान हमारे रुख से पता चलता है कि हमें सुना जा रहा है।

मोहन भागवत ने कहा कि जनसंख्या को संसाधनों की आवश्यकता होती है। यदि यह बिना संसाधनों का निर्माण किए बढ़ता है, तो यह एक बोझ बन जाता है। एक और दृष्टिकोण है जिसमें जनसंख्या को एक संपत्ति माना जाता है। हमें दोनों पहलुओं को ध्यान में रखते हुए सभी के लिए जनसंख्या नीति पर काम करने की जरूरत है।

अच्छे इंसान बनें जो देशभक्ति से हो प्रेरित
संघ प्रमुख ने कहा कि यह एक मिथक है कि करियर के लिए अंग्रेजी बहुत महत्वपूर्ण है। नई शिक्षा नीति से छात्र उच्च संस्कारी, अच्छे इंसान बनें जो देशभक्ति से भी प्रेरित हों। यही सबकी इच्छा है। समाज को इसका सक्रिय रूप से समर्थन करने की जरूरत है।

महिलाओं के बिना विकास नहीं हो सकता
भागवत ने आगे कहा कि महिलाओं के बिना विकास संभव नहीं है। जो काम मातृ शक्ति कर सकती है वह काम पुरुष भी नहीं कर सकते। इसलिए उनको इस प्रकार प्रबुद्ध, सशक्त बनाना, उनका सशक्तिकरण करना और उनको काम करने की स्वतंत्रता देना और कार्यों में बराबरी की सहभागिता देना जरूरी है।

चीफ गेस्ट के रूप में शामिल हुईं संतोष यादव
पर्वतारोही संतोष यादव कार्यक्रम में चीफ गेस्ट के रूप में शामिल हुईं। संतोष यादव माउंट एवरेस्ट पर दो बार चढ़ने वाली पहली महिला पर्वतारोही हैं। ये पहला मौका है जब संघ के कार्यक्रम में किसी पहली के बतौर चीफ गेस्ट आमंत्रित किया गया। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी उपस्थित रहें।

पर्वतारोही संतोष यादव ने संघ कार्यकर्ताओं को संबोधित भी किया। उन्होंने कहा कि अक्सर मेरे व्यवहार और आचरण से लोग मुझसे पूछते थे कि ‘क्या मैं संघी हूं?’ तब मैं पूछती की वह क्या होता है? मैं उस वक्त संघ के बारे में नहीं जानती थी।

 

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