( रोहित वर्मा) खरोरा:——-
.गर्मी के धान से निचे जा रहा भूजल स्तर.
इसी के कारण पानी की किल्ल्त ख़डी हो रही.
गर्मी का धान लेने के कारण भूजल स्तर कम होता हैँ, ये तथ्य हमारे किसानो को पता नहीं हैँ
एक अनुमान के मुताबिक तिल्दा ब्लॉक 12000 एकड़ मे गर्मी का धान लिया जाता हैँ
गर्मी का धान लेने से भूजल स्तर कम हो जाता है, ये तथ्य हमारे किसानों को पता नहीं है। एक अनुमान के मुताबिक 12000 हजार एकड़ में गर्मी का धान लिया जा रहा है जिस पर 27 करोड़ की धान का कुल उत्पादन 20 करोड़ का ही होगा। कृषि विज्ञानियों का मानना हैँ की इससे पांच गुना कम पानी में दलहन-तिलहन की फसले ली जा सकती हैँ जिसके दाम भी धान से अधिक मिलेंगे और जल स्तर भी बचा रहेगे जिससे गर्मी में पानी की किल्लत नहीं होगी।
*6 लाख आबादी को मिल सकता है आसानी से पानी*
गर्मी के दिन मे औसतन प्रति व्यक्ति 100-110 लीटर पानी खर्च होता हैँ इस लिहाज से देखे तो रबी फसल के लिए इस्तेमाल होने वाले की खपत को रोकने से तिल्दा ब्लॉक के लगभग 6लाख जनासंख्या को आसानी से पानी उपलब्ध कराया जा सकेगा.
गर्मी आते ही पेयजल संकट व निस्तारी की समस्या कोई नई में नदी-तालाबो व भूजल स्तर नीचे चला जाता है। इसके प्रमुख कारणों में एक ग्रीष्मकालीन फसल पर अत्यधिक पानी का दोहन भी फसल (धान) लेने में करीब 18 लाख लीटर पानी की खपत होती है जिसकी अपेक्षाकृत आमदनी बहुत कम हैँ. अगर बड़े किसान फ़सल ने लेकर पानी की बचत करते हैँ तो वाटरलेवल डाउन होने से बहुत हद तक बचाया जा सकता हैँ.
तिल्दा ब्लॉक में 6000 पंप कनेक्शन दिए गए
ब्लॉक मे 6000 पंप कनेक्शन
एक अनुमान के मुताबिक तिल्दा ब्लॉक मे 6000 सिचाई पम्पो से खेतो मे 27 करोड़ रूपये के बिजली खर्च करने के बाद मे 20 करोड़ रूपये की ग्रीष्मकालीन फ़सल का उत्पादन हो रहा विद्युत् विभाग के ने बताया की ब्लॉक मे क़ृषि के लिए 15000 पम्प कनेक्शन हैँ जिसमे 3 एचपी पम्प के लिए 6000 यूनिट तक किसानो को बिजली मुफ्त मे दी जाती हैँ. वहीँ 5 एचपी पम्प वाले किसानो को 75000 यूनिट बिजली फ्री मे दी जाती हैँ जो एक सीजन मे फ़सल लेने के लिए परियाप्त हैँ.
इस तरह किसान निशुल्क मिलने वाली औसतन27 करोड़ यूनिट बिजली की खपत करते हैँ.अगर 5 रूपये यूनिट के हिसाब से घढ़ना की जाये तो 27 करोड़ रूपये खर्च हो रहे हैँ.
कृषि विज्ञानिक धीरेंद्र ने बताया कि वजह …राइस मिलों में मिलने वाले दाम की ओर आकर्षित करते हैं किसानों को ,लगातार धान लेने से कीट प्रकोप भी
क़ृषि वैज्ञानिक धीरेन्द्र पाल ने बताया ब्लॉक मे किसान गर्मी के मौसम मे धान की फ़सल करने के लिए सिर्फ इसलिए आकृषित होता हैँ क्यूंकि परिछेत्र मे राइसमिल और पोहा मिल अधिक हैँ और उनकी उपज आसानी से बिक जाती हैँ, जबकि बहुत कम किसानो को यह जानकरी हैँ की धान के बाद धान की फ़सल लेने मे फ़सल मे बीमारी के कीटाणु लगातार विकसित होकर फ़सल पर बड़ी संख्या मे आक्रमण करते हैँ. इससे कीटनाशक दवाओं का खर्च बहुत अधिक आता है। इसके साथ ही मिट्टी की सेहत पर भी विपरीत वजह से धीरे-धीरे प्रति एकड़ उत्पादन का औसत गिरता जाता है। लगातार अत्यधिक मात्र मे भूजल स्तर का दोहन करने की वजह से कुछ वर्षो बाद ऐसे स्तिथि हो जाएगी की धान की फ़सल तो क्या दाल, तिलहन,की फ़सल के लायक भी पानी नहीं मिल पायेगा.
चना मटर तिवरा को चाहिए: मात्र 4लाख लीटर पानी
चना, मटर,तिवरा मे कम पानी खर्च और क़ीमत भी मिलेगी ज्यादा.
अगर किसान धान की फ़सल की जगह चना, मटर, तिवरा,सरसो की फ़सल करता हैँ तो उसे धान की फ़सल से कम खर्च मे धान से ज़्यदा मुनाफा होगा. जहां धान की फ़सल के लिए जहां एक एकड़ फ़सल के लिए 24 लाख लीटर भूजल खर्च होता हैँ वहीँ तिवरा, मटर, सरसो की फ़सल मे मात्र चार लाख लीटर पानी खर्च होता हैँ और बाजार मे ग्रीष्मकालीन मे धान की फ़सल से पांच गुना कम हैँ
इन जगहों पर 350 फिट निचे जा चूका हैँ जलस्तर
खरोरा, मढी, छपोरा, रायखेड़ा, भरवाडीह, मोहरेंगा, तुलसी, सासाहोली समेत अनेक बड़े नगरों व गावों मे जलस्तर 300 फिट से निचे चला गया हैँ. गांव में ग्रीष्मकालीन धान की फसल ली जा रही है।
फोटो-1— भरुवाडीह में नहर का पानी सूख गया है और धरती फट गई है। इस गांव में भी गर्मी का धान लिया जा रहा