देश दुनिया वॉच

तिरछी नजर 👀: दिल्ली में विधायकों की फरमाइश भी गजबे है…

छत्तीसगढ़ में ढाई-ढाई साल के फार्मूले को लेकर विधायकों की दिल्ली दौड़ जारी है। पिछले कई दिनों से टीवी और अखबार के दफ्तरों में रोजाना विधायकों की गिनती होती है। रिपोर्टर और संपादक पेन कागज लेकर एक-एक नाम लिखकर काउंटिंग करते हैं और सूची बनाते हैं। इसके बाद भी सभी की सूची और संख्या अलग-अलग होती है। एक से ज्यादा अखबार पढ़ने वाले पाठकों की समस्य़ा यह है कि वे किसकी सूची और संख्या को सही माने। कुल मिलाकर रिपोर्टर, संपादक, विधायक और पाठक सब के सब कन्फ्यूजन में है। हालांकि सियासी उठापटक को समझना सब के बस की बात भी नहीं है। खैर, इन सब के बीच यह बात तो सच है कि कांग्रेस के विधायक दिल्ली आ जा रहे हैं और वहां डटे हुए हैं और अपनी बात पहुंचाने के लिए पूरी ताकत लगा रहे हैं और ये कोई एक दो दिन में होने वाला काम भी नहीं है, इसलिए विधायकों को तमाम सुख-सुविधाओं के साथ दिल्ली में रखे जाने की खूबरें आती है। यह बात सभी मान रहे हैं कि विधायकों को एक साथ एक जगह पर इकट्ठा करके रखना कम चुनौती नहीं है। उन्हें पूरे समय बिजी भी रखना है, नहीं तो कौन किधर छिटक जाए, इसकी कोई गारंटी नहीं है। कुल मिलाकर जैसे शीशे या नाजुक सामानों के डब्बे में हैंडिल विथ फ्रैजाइल की चेतावनी लिखी रहती है, उसी तरह की सावधानी इन विधाय़कों को हैंडल करने में बरतनी पड़ रही है। वरना कौन कब छिटक कर टूट-फूट जाएगा, इसका क्या भरोसा ? इसलिए माननीयों की हर इच्छा और जरूरतों का ध्यान रखा जा रहा है। बताते हैं कि उनके खाने-पीने और पांच सितारा सुविधा से लेकर घूमने-फिरने तक का पूरा इंतजाम है। यहां तक तो सब कुछ ठीक है, लेकिन जैसे-जैसे समय बीत रहा है और रोजाना तारीख पे तारीख मिल रही है। उससे इन माननीय की इच्छाएं भी कुलांचे मार रही है और उनमें से किसी ने ऐसी डिमांड रख दी कि हैडलिंग की जिम्मेदारी संभाल रहे युवा नेता के सब्र का बांध टूट गय़ा और उन्हें गुस्से में कहना पड़ा कि जिस काम के लिए आएं उसी में ध्यान लगाएं, वरना ऐसे शौक के चक्कर में नई मुसीबत लेकर जाएंगे और मुंह छिपाने की जगह नहीं मिलेगी।

पीए का कांफिडेंस देख सकते में मंत्री स्टाफ

छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री बदलने की अटकलों के बीच नए मंत्रिमंडल के गठन की भी चर्चा तेज हो गई है। यह बात कमजोर परफार्मेंस वाले मंत्रियों के स्टॉफ के लोग ही कहने लगे हैं। हालांकि इसकी सच्चाई के बारे में दावा नहीं किया जा सकता, लेकिन कौन हटेगा और कौन बनेगा इसकी चर्चा हर जुबान पर है। ऐसे ही एक मंत्री के स्टॉफ में खुलकर चर्चा शुरू हो गई। स्टॉफ आफिसर ने मंत्रीजी की रवानगी तक करवा दी। यह बात मंत्रीजी के करीबियों तक पहुंची तो उन्होंने अधिकारी को फटकार के साथ समझाया भी, लेकिन स्टॉफ अधिकारी का कांफिडेंस देखिए-उन्होंने भी तुरंत कह दिया कि अगर ऐसा है तो उन्हें मूल विभाग वापस भेज दिय़ा जाए। बात यहां तक आ गई थी तो मंत्री बंगले से उनकी सेवा लौटाने के लिए नोटशीट चलाई गई, लेकिन इस कांफिडेंस को देखकर पूरा मंत्री स्टॉफ सकते है।

बाबा के साथ करीबियों का बढ़ेगा कद

सियासत में नेताओं के करीबी होने से ब्यूरोक्रेसी नजरें टेढ़ी होने लगती है। ऐसा ही हाल स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के करीबी नीलाभ दुबे का है, क्योंकि माननीय उन्हें पसंद करते हैं। खैर, इससे उनकी सेहत में क्या फर्क पड़ता है। उनको तो माननीय से निभाना है। ब्यूरोक्रेट्स तो बदलते रहते हैं। लोगों को लगता है कि ब्यूरोक्रेसी की नापसंदगी के कारण नीलाभ दुबे को नुकसान हो सकता है, लेकिन बदलते समीकरण में ऐसा नहीं लग रहा है। दुबे कानून के अच्छे जानकार हैं और लेन देन को लेकर भी कोई शिकायत नहीं है। ऐसे में बाबा की ताकत बढ़ती है तो नीलाभ की हैसियत बढ़ेगी। इसी तरह आनंद सागर सिंह का भी प्रभाव बढ़ेगा। वैसे कहा जाता है कि बाबा अपने करीबियों पर आंख बंदकर भरोसा करते हैं। लिहाजा ब्यूरोक्रेसी को पसंद-नापसंद के आधार पर काम करने से बचना चाहिए, क्योंकि ऊंट किस करवट बैठेगा, यह तो उसके बैठने के बाद ही पता चलेगा।

बेचारे नेताजी ! संचार से जाने का दुख

ऐसा लगता है कि कांग्रेस के अदरखाने में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। शनिवार शाम को अचानक पीसीसी की कार्यकारिणी में फेरबदल की जानकारी सामने आई। गौर करने लायक बात यह है कि किसके बदले किसकी नियुक्ति की जा रही है, इसका भी सूची में उल्लेख किया गया है। संभव है कि एक व्यक्ति एक पद के फार्मूले के तहत बदलाव किया गया होगा, लेकिन सवाल यह उठता है कि ऐसे में फेरबदल डेढ़ साल पहले हो जाना चाहिए था। इस बदलाव में संचार विभाग के अध्यक्ष भी प्रभावित हुए हैं। हालांकि निवृत्तमान अध्यक्ष मलाईदार मंडल के चेयरमैन है, तो उनको इस पद से ज्यादा मोह नहीं होना चाहिए, लेकिन राजीव भवन की चर्चाओं में स्थिति उलट हैं और कहा जा रहा है कि नेताजी काफी दुखी हैं। उन्होंने विदाई लेते हुए काफी मार्मिक पत्र भी लिखा है। वे छ्त्तीसगढ़ कांग्रेस के इतिहास में सर्वाधिक समय तक इस पद पर रहने वाले व्यक्ति हैं। उनका रिकॉर्ड टूटना मुश्किल लगता है। लोगों का तो यहां तक कहना है कि किस्से-कहानियों की तरह उनकी जान किसी तोते वोते में नहीं बल्कि कांग्रेस भवन में बसती है। अब स्वाभाविक है कि जान से बिछड़ने पर शरीर को दुख तो होता है। हालांकि नेताजी की प्रतिभा पर किसी को संदेह नहीं है। बदलते समीकरण में भी वे अपने आपको बखूबी एडजेस्ट कर ही लेते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *