पुलस्त शर्मा/मैनपुर : भाद्रपद कृष्ण पक्ष की षष्ठम तिथि को मनाये जाने वाला पर्व हलषष्ठी कमरछठ पर मुख्यालय मैनपुर सहित क्षेत्र के अंचलो मे आज शनिवार को माताओं ने अपने संतान की दीर्घायु व मंगल कामना लिये निर्जला व्रत रखी। नगर स्थित मां दुर्गा मंदिर, मैनपुर शिक्षक कालोनी, दुर्गा मंच व हरदीभाठा रामजानकी मंदिर, शिव मंदिर, जाड़ापदर, जिडार सहित आसपास के क्षेत्र में व्रती माताओं व नवविवाहितो ने सामूहिक रूप से सगरी कुंड बनाकर गौरी गणेश सहित हलषष्ठी माता की मिटटी की प्रतिमा रखकर पूजन अर्चन कर श्री हलषष्ठी व्रत का कथा श्रवण किया। हलषष्ठी व्रत के संबंध में आचार्य योगेश शर्मा ने बताया कि इस दिन व्रत करने वाली माताओं को हल चले भूमि को नहीं लांगती, इस व्रत में कृत्रिम तालाब सगरी बनाकर पूजा अर्चना का विधान है पूजन में भैंस के दूध दही घृत का उपयोग किया जाता है इस व्रत मे बिना हल चले भूमि से उपजे अनाज का प्रसाद वितरण किया जाता है इस हलषष्ठी व्रत पर पौराणिक मान्यता है कि द्वापर युग मे वासुदेव देवकी के छह संतानो को एक एक कर कंस ने कारागार मे मार डाला, जब सातवें बच्चे के जन्म का समय नजदीक आया तो नारद जी से इस व्रत का महत्व सुनकर माता देवकी ने यह व्रत सबसे पहले रखा, इसी व्रत के प्रभाव से भाद्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि रोहणी नक्षत्र को भगवान कृष्ण ने देवकी के गर्भ से जन्म लिया जिसने अपने माता पिता व संसार को कंस के आतंक से भय मुक्त किया। हलषष्ठी का पर्व कृष्ण बलराम से संबंधित है हल से कृषि कार्य किया जाता है तथा बलराम जी का प्रमुख हथियार भी हल है बलदाउ भैया कृषि कर्म को महत्व देते थे वहीं भगवान कृष्ण गौपालन को इसलिये इस व्रत मे हल से जुताई किये जमीन का कोई भी अन्न व गौ माता के दूध दही घी आदि का उपयोग वर्जित रहता है। पंडित नंदकिशोर चौबे ने बताया कि इस व्रत को पूरी श्रध्दा के साथ करने से इसका फल भी अवश्य मिलता है व्रत पूजन के बाद माताओं ने अपने संतानो की पीठ वाले भाग मे कमर के पास हल्दीपानी व पीली मिटटी भिगोये नये कपड़ो से मार अपने आंचल से पोछती है जो कि माता के द्वारा दिया गया रक्षा कवच का प्रतीक है माताएं भोज्य पदार्थ मे पसहर चावल का भाग, छह प्रकार की भाजी सब्जी, मुनगा, कददू, सेमी, तोराई, करेला, मिर्च, भैंस का दूध दही व घी सेंधा नमक मौहे पेड़ के पत्ते का दोना, पत्तल व लकड़ी को चम्मच के रूप मे उपयोग किया गया और बच्चो को प्रसाद के रूप मे धान लाई, भुना हुआ मौहा तथा चना, गेहुं, अरहर आदि छह प्रकार के अन्नो को मिलाकर प्रसाद के रूप मे बांटा गया। इस व्रत पूजन मे छ की संख्या अधिक महत्व है जैसे भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष के छठवां दिन, छह प्रकार का भाजी, छह प्रकार का खिलौना, छह प्रकार के अन्न वाला प्रसाद तथा छह कहानी कथा का वाचन करते है वहीं मान्यता है कि हल षष्ठी व्रत के दिन कृत्रिम सगरी को भरने से वर्षा होती है।
संतान की दीर्घायु व मंगल कामना हेतु माताओं ने रखी हलषष्ठी व्रत
