- विकास के नाम पर विनाश नहीं, जन अधिकार परिषद छत्तीसगढ़ ने जन जागरण अभियान को तेज किया है और प्राकृतिक संसाधनों के साथ ही साथ पहाड़ी कोरवा, पंडो बैगा अन्य विशेष पिछड़ी जनजातियों के साथ मानव संसाधन को संरक्षित करने कृत संकल्प : त्रिभुवन सिंह
रायपुर: छत्तीसगढ़ में बीते कई दशकों से हाथी और इंसानों के बीच टकराव जारी है। इसे रोकने के लिए 2019 में लेमरू हाथी रिजर्व प्रोजेक्ट बनाया गया। एलिफेंट कॉरिडोर को लेकर भले अब तक कोई नोटिफिकेशन जारी नहीं हुआ हो, लेकिन विवाद जरूर शुरू हो गया है। विवाद की वजह बना है वन विभाग का नया प्रस्ताव, जिसमें लेमरू का करीब 80 फीसदी एरिया कम करने की बात कही गई है। इस मुद्दे को लेकर जन अधिकार परिषद के संयोजक त्रिभुवन सिंह ने मुख्यमंत्री भूपेष बघेल से क्षेत्रफल में नहीं ना हो इसकी मांग की है। अब सवाल ये है कि सरगुजा संभाग घने वनों से आच्छादित है जहां सभी प्रकार के जीव जंतु पाए जाते हैं सरगुजा संभाग घने वनों के साथ आदिवासी बाहुल्य संभाग है इसी से जुड़ा क्षेत्र रायगढ़ कोरबा और पेंड्रा मरवाही चारों तरफ ऐसा जंगल है जिसे भारत में बायोडायवर्सिटी के आधार पर दूसरे नंबर पर माना जाता है जहां विशेष पिछड़ी जनजाति के साथ ही साथ बहुतायत में आदिवासी और अनुसूचित जाति के लोग निवास करते हैं लगातार कोयला ,बॉक्साइट और अन्य गौण खनिजों के अनियंत्रित दोहन से जंगल पहाड़ और नदियों को काफी नुकसान उठाना पड़ा है।
जल स्रोत गायब होते जा रहे हैं विलुप्त होते जा रहे हैं जंगली जानवरों को जंगल में भोजन की कमी के कारण जंगली जानवर शहर और गांव में यहां तक की आबादी वाले क्षेत्रों में भी आ जा रहे हैं जिसके कारण जनजीवन को जान माल का भी जोखिम उठाना पड़ रहा है जान भी गंवानी पड़ रही है,लेकिन कारपोरेटस को लगातार कोयला बॉक्साइट और अन्य खनिजो के दोहन के नाम पर यह भूल जा रहे हैं कि जल स्रोत , घने जंगल और पहाड़ नष्ट होकर बर्बाद हो रहे हैं और पर्यावरण की अपूरणीय क्षति हो रही है विकास के नाम पर विनाश की गाथा सरगुजा संभाग में लिखी जा रही हैं जो हर हाल में जन समुदाय के और आने वाली पीढ़ी के जीवन के लिए नुकसानदायक है पर्यावरण के लिये विनाशकारी है ।
लेमरू रिजर्व एलीफेंट प्रोजेक्ट के क्षेत्रफल को कम करना उचित नहीं जो जनहित में और,जल, जंगल, जमीन, पर्यावरण के हित में नहीं होने के कारण घोर आपत्तिजनक है जनहित में नहीं है लगभग 4000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल को 1950 और फिर 450 वर्ग किलोमीटर करने कि दूषित मनोवृति से पर्यावरण का विनाश सुनिश्चित है क्योंकि वहीं दूसरी तरफ अदानी को और भी कोल ब्लॉक देने की राजनीतिक षड्यंत्र नजर आती है तब निश्चित ही बड़े पैमाने पर, भूमि अधिग्रहण किया जावेगा, घनघोर जंगल काट दिये जायेंगे, गाँव मे रहने वालों को गाँव छोड़कर जाना पड़ेगा, पर्यावरण नष्ट होगा ।
इफ्को पावर प्रोजेक्ट के लिए अधिग्रहित भूमि लगभग 12 वर्ष हो चुके हैं इसके बाद भी कोई प्रोजेक्ट चालू नहीं हो पाया और ग्रामीण जन की भूमि अधिग्रहित कर उन्हें मुआवजा भी दे दिया गया इन परिस्थितियों में जब प्रोजेक्ट चालू नहीं है 5 साल से अधिक हो चुके हैं तो ग्रामीण जन को उनकी भूमि भी वापस की जानी चाहिए मुख्यमंत्री ने बस्तर में टाटा की भूमि वापस कर गरीबों के हित में सराहनीय कार्य किया था उसी आधार पर इफको पावर प्रोजेक्ट की भूमि पुनः ग्रामीणों को वापस किया जाना संवेदनशील सरकार की जनहित अहम निर्णय साबित होगा ।
सरगुजा संभाग विशेषकर कोरबा एवं सरगुजा जिले की जंगलों को अत्यधिक क्षति होगी इसी के साथ जशपुर बलरामपुर पेंड्रा मरवाही और मैनपाट की पहाड़ियों जो कि बड़ी बड़ी नदियों का उद्गम स्थल है नष्ट होकर जल प्रवाह पर असर डालेंगे जिससे बड़े-बड़े बांधों में जल स्तर कम होगा और उनकी सिंचाई की क्षमता के साथ ही साथ अच्छे मानसून जहाँ के कारण यहाँ लगभग1400 मिलीमीटर वर्षा होती है, विपरीत परिस्थितियों के कारण बिजली उत्पादन की क्षमता भी प्रभावित होगी जिसके कारण जन जीवन पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा और पर्यावरण नष्ट होकर प्रदूषण के आगोश में सरगुजा संभाग चला जाएगा ।
सरगुजा संभाग को बचाने के लिए जन अधिकार परिषद छत्तीसगढ़ ने जन जागरण अभियान को तेज किया है और प्राकृतिक संसाधनों के साथ ही साथ पहाड़ी कोरवा, पंडो बैगा अन्य विशेष पिछड़ी जनजातियों के साथ मानव संसाधन को संरक्षित करने कृत संकल्प है ।
हम सभी समाज सेवी संगठन , जागरूक नागरिकों के साथ मिलकर पर्यावरण संरक्षण के लिए छत्तीसगढ़ के हित मे “” प्राकृतिक संसाधन बचाओ अभियान”” को और तेजी से जन जागरूकता के साथ जन आन्दोलन कर शासन और प्रशासन के समक्ष जनहित के पक्ष को सामने रखेंगे। प्रभावी पेसा कानून के प्रावधानों को लागू कर प्रभावित अनुसूचित क्षेत्रों सरगुजा संभाग, बिलासपुर संभाग के साथ छत्तीसगढ़ के प्राकृतिक संसाधनों को बचाएंगे ।