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बंद पड़ी खदानें जल संरक्षण के स्रोतों के रूप में विकसित होंगी, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सभी कलेक्टरों से एक माह में कार्ययोजना बनाने को कहा

  • ‘मछली-पालन, बोटिंग, फ्लोटिंग रेस्टोरेंट जैसी आजीविका मूलक गतिविधियां प्रारंभ की जाएं’
  • ‘मनरेगा, डीएमएफ, सीएसआर, पर्यावरण एवं अधोसंरचना मद सहित विभागीय योजनाओं की ली जाए मदद’

रायपुर :  मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सभी जिला कलेक्टरों को अपने जिलों में बंद हो चुकी खदानों को जल-संरक्षण स्रोतों के रूप में विकसित करने के लिए कार्ययोजना तैयार करने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने इन खदानों में विभिन्न रोजगारमूलक गतिविधियों के संचालन को भी कार्ययोजना में शामिल करने को कहा है। मुख्यमंत्री श्री बघेल द्वारा कलेक्टरों को जारी निर्देश में कहा गया है कि जिलों में स्थित समस्त ‘उपेक्षित खनन स्थलों’ का चिन्हांकन कर उन्हें जल सरंक्षण स्त्रोत में परिवर्तित करने तथा आवश्यकतानुसार अन्य गतिविधियां आरम्भ करने की कार्ययोजना एक माह के अन्दर तैयार करें। इस कार्य में होने वाले व्यय की व्यवस्था नरेगा, डीएमएफ., सीएसआर, पर्यावरण एवं अधोसरंचना मद एवं अन्य विभागीय योजनाओं में उपलब्ध आबंटन से की जा सकती है। बघेल ने कहा है कि राज्य में दशकों से कोयला, लौह अयस्क, बाक्साइट, डोलोमाइट, लाईम स्टोन, मुरूम, गिट्टी इत्यादी के खनन से इन खनिजों के अनेक भंडार समाप्त होने के कारण उन खनन स्थलों को उपेक्षित हालत में छोड़ दिया गया है। ऐसे उपेक्षित (Abandoned) खनन स्थलों में आये दिन दुर्घटनाएं हो रही है, जिनसे जान-माल का नुकसान हो रहा है। मुख्यमंत्री श्री बघेल ने सूरजपुर जिले की केनापारा कोयला खदान का उल्लेख करते हुए कहा है कि वर्ष 1991से एसईएसएल द्वारा कोयले का भंडार समाप्त होने के कारण यहां कोयले का खनन बंद कर दिया गया था। जिला प्रशासन द्वारा एसईएसएल के सहयोग से इस उपेक्षित खनन स्थल का आवश्यक जीर्णोद्धार कर इसे जल संरक्षण के उत्कृष्ट स्त्रोत में परिवर्तित कर दिया गया। यहां बोंटिग, फ्लोटिंग रेस्टोरेंट की सुविधा उपलब्ध कराने तथा मत्स्य पालन जैसी गतिविधियां आरम्भ करने से आसपास के ग्रामीणों की आय वृद्धि के नये अवसर सृजित हुये हैं। श्री बघेल ने सभी जिला कलेक्टरों से अपेक्षा व्यक्त की है कि 01 अप्रैल 2021 के पूर्व उनके जिलों में स्थित खनन स्थलों के जीर्णोद्धार का कार्य आरम्भ किया जाये तथा वर्षा ऋतु के पूर्व कार्य पूर्ण करने का प्रयास किया जाये ताकि वर्षा ऋतु में उन स्थलों पर जल संग्रहण आरम्भ हो सके।

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