*’गोधन न्याय योजना’ के फ़ायदे बताते हुए मुख्यमंत्री की दूरदृष्टि की तारीफ़ की ताटी
बीजापुर ब्यूरो -: छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा हाल ही में घोषित ‘गोधन न्याय योजना’ की तारीफ़ करते हुए वरिष्ठ कांग्रेस नेता और बीजापुर ज़िला पंचायत के सदस्य बसंत ताटी ने कहा कि ऐसी योजना की परिकल्पना अपनी ज़मीन और जड़ों से जुड़ा व्यावहारिक दृष्टिकोण वाला व्यक्ति ही कर सकता है। हम अपनी परंपरा के उस पुराने दौर को देखें,जब कृषि और गोपालन आजीविका के प्रमुख और प्राथमिक व्यवसाय थे। खेती और पशुओं की संख्या के आधार पर किसी की वास्तविक समृद्धि का आकलन किया जाता था। अन्न और गोधन सबसे बड़े धन थे। कृषि और पशुपालन एक-दूसरे के पूरक थे। गायें खेत जोतने के लिये बैल,खाद के लिये गोबर और विभिन्न खाद्य उत्पादों , दही,मठा,घी आदि के लिये दूध देती थीं। इसलिये जिसकी गोशाला में दूधारू गायों की जितनी अधिक संख्या होती थी,वह उतना ही धन-संपन्न माना जाता था।दान-दहेज में भी गायें दी जाती थीं। गोदान को मोक्षदायक पुण्यकर्म माना जाता था। कृषियंत्र न होने से बैल ही कृषिकार्य की रीढ़ होते थे।जुताई , निंदाई , खलिहान में खुँदाई,अनाज और अन्य कृषि उत्पादों की ढुलाई आदि कार्य बैल ही करते थे।कृषि और गोपालन का व्यवसाय सबसे अधिक सम्मान की दृष्टि से देखे जाते थे। तभी तो लोक कवि घाघ की यह कहावत उस काल में अत्यंत प्रसिद्ध था – *”उत्तम खेती मध्यम बान।अधम चाकरी भीख निदान।”* ताटी ने ‘गोधन न्याय योजना’ को किसानों और पशुपालकों के लिये अत्यंत आकर्षक, व्यावहारिक और बहु लाभकारी बताया।उनके अनुसार यह कृषकों और पशुपालकों के आर्थिक हितों का संरक्षण करने वाली अभिनव और महत्वाकांक्षी योजना है। इस योजना के तहत पशुपालक गोधन का दैनिक गोबर बेचकर भी लाभ कमा सकेंगे। इसलिये इस योजना की घोषणा से ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष रूप से हर्ष व्याप्त है गोपालन को प्रोत्साहित करने वाली यह योजना ग्रामीण अर्थव्यवस्था के ग्राफ को फिर से ऊपर उठाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगी।बसंत ताटी ने मुख्यमंत्री द्वारा इसके पहले शुरू की गयी ‘चार चिन्हारी’ और ‘नरवा , गुरवा धुरवा बाड़ी योजना’ जैसी सफल योजनाओं का भी ज़िक्र किया।