गो – धन न्याय योजना अभिनव पहल – हरेली पर विशेष ( विधायक सन्तराम नेताम का बचपन )
(प्रकाश नाग )
मेरा बचपन ग्राम पलना में बीता है । ग्राम सलना में हमारे परिवार में माँ – पिता एक भाई , एक बहन और एक गाय , दो बैल थे । हमारे परिवार के पास सीमित साधन थे , जीवन यापन के लिए मानव श्रम और गो – धन व सीमित खेती थी । हमारा जीवन गोधन के ईद – गिर्द ही चलता था । स्कूल से आने के बाद गाय चराने जाना और पड़ोसियों के धनाड्य परिवार के घरों के गो – धन को भी साथ ले जाना इस आशा से की कभी कोई कृषि उत्पादन दाल , या दो रुपये मिल जाय , पैसे तो मजदूरी करके मिलती थी , लेकिन मजदूरी भी कभी – कभी मिलती थी । अक्सर कोई आशा रहती थी कि कोई काम बता दे और हम कर लें । कभी – कभी तो पड़ोसी चाचा की सायकिल को धोने की जिद करके सायकिल को धोने का 2 रु . मिल जाता था । कुल मिलाकर दो अपेक्षा रहती थी कि काम मिल जाए और काम के बदले पैसे या खाने की सामग्री मिल जाये । यही अपेक्षा मेरे और मेरे परिवार को रहती थी और एक जीवन जीने की शक्ति घर के मुखिया के पास यदि एक गाय और दो बैल हैं , तो उसकी आँखों में चमक रहती है , बच्चों के भविष्य के सपने को देखने के लिए यह जो अनुभव मेरे जीवन का ग्रामीण मिट्टी से जुड़े बचपन के वो सभी का है ।
आज भी मैं गांव में गोवर्धन पूजा में अपने गांव में जाता ही हूं और मेरे साथ जो लोग गांव से बाहर हैं वे दीवाली तो अपने शहर के गाँव में मनाते हैं लेकिन गोवर्धन पूजा के दिन गाँव में ही गोवर्धन पूजा में शामिल होते हैं , गांव में वास्तव में धन तो गोधन ही होता है । मैं लगभग दो दशक से पुलिस की नौकरी को त्याग पत्र देकर जनसेवा में हूँ । इस समय मुझे समाज को बड़े करीब से समझने का अवसर मिल रहा है । समाज में अलग – अलग धर्म , मत एवं विचार हैं । हर किसी की वेश – भूषा से एक विचारधारा का होना चिन्हित हो जाता है । राजनीतिक विचारधारा भी अलग – अलग है , लेकिन गो – धन के विषय पर एक ही है । राजनीतिक विचारधारा से संबंधित अनुसांगिक संगठन भी गो – धन को गो – माता के रूप में गो – धन की महत्ता बताते हैं । छ.ग. में पिछली सरकार भी गो – धन के विचार को लेकर आई , किन्तु अच्छे विचार भी पूंजीपतियों की खराब नियत के आगे विफल हो गई । वहां पर भी जहां पर अनुसांगिक संगठन का सहयोग रहा ।
एक बात तो तय है कि जब भी कोई हवन – पूजा का सामूहिक कार्यक्रम होता है वहां पूंजीपति शामिल हो तो सारा प्रसाद वे अपने हिस्से में ले लेते हैं , और हवन का धुंआ ही आयोजक और प्रायोजिक के हिस्से में आता है । पिछली सरकार की गो – धन योजना के विफलता का कारण रहा है कि ये योजना राजधानी से संचालित हुई और राजधानी के फाईलों में ही दफन हो गई । एक बात तय थी कि मेरे क्षेत्र में भी योजना का लाभ गले सुशोभित गमछे के रंग को देखकर देने का प्रयास किया गया था और मुझे लगता है कि उनका ध्येय ऐसे हितग्राहियों को चुना जाय कि उसके गले में अपने रंग का गमछा डाला जाए । एक बात तो तय है कि जनसेवा राज्यधर्म – केवल धर्म के विचार से सेवा करने का हो उसमें कोई स्वार्थ नहीं हो । यदि किसी हवन में स्वार्थ हित हो तो धर्म वहां विद्यमान नहीं होता है , आखिर गो – धन साक्षात् लक्ष्मी स्वरुप है । आजकल , तो टी.वी. केवल समाचार तक ही सीमित हो गई है । यू – ट्युव में गौधन पर सर्च करो तो आपको बहुत आश्चर्यजनक खोज मिल जाएंगे । गो – धन के विषय में राजीव दीक्षित जी के जाने के बाद भी उनके कार्यक्रम आज भी संचालित हैं । इसी क्रम में राजेश कपूर जी कृषि गौ पंचगव्य के विषय में अच्छा काम कर रहे हैं । आप कभी भी यू – ट्यूब पर गो – धन सर्च करें तो बहुत सी जानकारी मिलती है । हरियाणा में तो गो प्लास्टर , वैदिक प्लास्टर तैयार किया गया है । गाय के गोबर से घर का प्लास्टर किया जाता है और उनके प्रयोग से घर के तापमान का नियंत्रण वैदिक प्लास्टर से होता है । गाय के गोबर से शिवंश खाद तो केवल 18 दिनों में खाद तैयार हो जाती है । शिवंश फाऊण्डेशन के प्रमुख मनोज भार्गव एक उद्योगपति हैं , जो गो – धन के महत्व को जानते हैं और कम से कम वे गांव में आज जन – जन तक इस विधि को जनसेवा के माध्यम से फैला रहे हैं । ऐसे कई तथ्य और दावे हैं जिसे परखना है और सत्य को जान कर समझकर अपनाना भी है । एक बात तो तय है कि आज सभी लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग हैं और स्वस्थ्य जीवन के लिए कुछ अधिक अर्थ खर्च करने को तैयार हैं । मैं जब गांव जाता हूं तो प्रयास करता हूं कि देशी गाय का दूध से चाय पी लूं , आप यकिन मानिये देशी गाय के दूध से बना चाय आपको तृप्त कर देगा । आप सोचेंगे कि अभी तक दूध के नाम पर ये क्या पी रहे थे ? कभी गांव के बाड़ी की सब्जी खाकर देखियेगा , आपको सब्जी का स्वाद मिलेगा गांव में अक्सर गाय के गोबर बनी खाद का प्रयोग होता है । कृषि हेतु गौ पंचगव्य बहुत महत्वपूर्ण है । छत्तीसगढ़ और दूसरे प्रदेश में एक खास अंतर है , आजादी के इतने वर्षों बाद भी हम अपने गांव के जन्मभूमि का मोह नहीं छोड़ पाए हैं । हम आसमान में कितना भी उड़ान भरें , लेकिन हमें हमारा गांव जहां हम भावनात्मक रूप से जुड़े रहते हैं , हम वहीं पहुंच जाते हैं । छत्तीसगढ़ में शहर तो है पर शहरीपन कम है । शायद इसीलिए छत्तीसगढ़ में किसी भी विचारधारा की सरकार बनें वह गांव के लिए ग्रामीण परिवेश के आधार पर ही योजना निर्माण का कार्य करती हैं ।
कांग्रेसी विचारधारा की सोच एक कदम आगे है । कांग्रेसी विचारधारा में ग्रामीण योजना में नफा – नुकसान अर्थव्यवस्था को एक कोने में रख दिया जाता है , यह भाव उसी तरह का भाव होता है , जब आदमी कुछ खा – कमा लेता है तब सबसे पहले वह अपने पैतृक घर को बनाता है । बाद में शहरी परिवेश में शहर में अपना घर बनाता है । मेरे मित्र एक बार कांग्रेस के कार्यकम में नगरी गए । नगरी का कार्यक्रम समाप्त होते ही उन्हें धमतरी आना था । गाड़ी के बीच वाले सीट पर कांग्रेसी नेता गुरुमुख सिंह होरा एवं अरविंद नेताम का वार्तालाप चल रहा था । वहां वे दोनों ग्रामीण परिवेश में गाय और चरवाहा के विषय में बातें कर रहे थे । गांव में चरवाहा का जीवन गाय से जुड़ा होता है और बहुत अल्प आय में उसका जीवन गुजारा होता है । वे दोनों अपने चर्चा के विषय का निष्कर्ष निकालते हैं कि चरवाहा को भी सरकार की ओर से मासिक आर्थिक सहायता मिलनी चाहिए । कांग्रेसी विचारधारा की एक खास बात है कि वे सरकार किसी भी विचारधारा की हो वे जनसेवा में कोई भी योजना विपक्ष को भी साझा करने में नहीं चूकते हैं । ऐसा नहीं हुआ होगा कि ये दोनों नेता उस समय की सरकार तक किसी भी माध्यम से अपनी चर्चा का निष्कर्ष चरवाहों के सुखद भविष्य योजना को नहीं पहुंचाये होंगे ।
कांग्रेस में एक मन , एक विचार शायद इसलिए मिलते हैं कि कांग्रेसियों का गांव और गांव के लोगों का काफी जुड़ाव रहता है , कांग्रेसियों के पास कोई भी व्यक्ति समस्या लेकर पहुंचता है तो वह बिना कोई स्वार्थ के उसकी समस्या को हल करने का प्रयास करता है । यहां उसके पास केवल अपना आदमी बनाने का भाव होता है अर्थाभाव नहीं है । ग्रामीण परिवेश में एक दूसरे का सहयोग करना नि : स्वार्थभाव है । मेरे इस बात का प्रमाण तो आपको प्रदेश में आये किसी नये अतिथि से पूछने पर चलेगा । मैं इतने साल विपक्ष में रहा हूं और अब कांग्रेस की सरकार प्रदेश में है । सरकार के मुखिया मुख्यमंत्री जी से मैं जब भी मिला और उनके कार्यक्रमों शामिल हुआ तो मुझे ऐसा लगता है कि वे छ.ग. की माटी में छत्तीसगढ़ी की आत्मा को जगाना चाहते हैं और छत्तीसगढ़ी कवि मीर अली मीर की गीत ‘ नादा जहि रे …… ‘ से प्रेरित है आप यकीन कीजिए ये कविता छ.ग. में बी.जे.पी. सरकार थी तब से मशहूर था । यू – ट्यूब पर लाखों लोगों ने मीर अली मीर की गीत को देखा सुना । जब वे यु – टूयब पर गीत की प्रस्तुति करते हैं तो मानो छ.ग. में छत्तीसगढ़ी आत्मा का साक्षात दर्शन होता है । छ.ग.सरकार की कोई भी योजना में यही भाव दिखता है ।
कुछ समय पहले एक नारा ‘ नरवा गरवा घुरवा बाड़ी ‘ जब विपक्षी सुनते थे तो मुझे मेरे विपक्षी मित्र कटाछ करते थे – ‘ क्या होगी तुम्हारे सरकार का ‘ । तब मैं कहता था कि तुम्हारे समय में तुम्हारा ध्यान बाड़ी पर था , लेकिन बाड़ी में लगने वाला फेंसिंग तार के कमीशन पर ज्यादा था । मैं महसूस करता हूं , मेरे क्षेत्र में इस कार्यक्रम से ग्रामीणों में अपनी बाड़ी के विषय में एक नई सोच पैदा हुई है । मेरा क्षेत्र ग्रामीण वनांचल है , गांव के बाड़ी और गांव के बाजार एक दूसरे के स्रोत हैं । चुनाव के समय मुझे गांव में एक कार्यक्रम करवाना था । मेरे पिता के द्वारा अपनी बाड़ी में मटर लगाने की तैयारी थी । मैंने बाड़ी में टेंट लगाने को कहा और कहा कि कार्यकर्ता कुछ दिन बारी – बारी से यहीं रहेंगे , यह कहना पर मेरे पिता कुछ नहीं बोले , किंतु उनके हाव – भाव से चुनाव के दिनों में भी अपनी मटर नहीं लगा पाने की पीड़ा छलकती है । मेरे पिता जैसे ग्रामीण जब भी गांव के बाजार जाते हैं तो अपने बाड़ी की सब्जी लेकर जाते ही है । बाजार से आते समय चना – मुर्रा लेकर आते हैं और रास्ते में पूर्वजों के मठ पर चना – मुर्रा रखते हैं और बचा हुआ चना – मुर्रा घर के पूर्वजों के पुन : अवतार स्वरूप बच्चों को स्नेह से देते हैं । जब मैं अपने क्षेत्र में जाता हूं तो मुझे पहले से अधिक गांव की बाड़ी में सरकार के विचार फलते – फूलते मिलते हैं । आजकल नेशनल हाईवे के किनारे ग्रामीण महिलाओं को अपने देशी उत्पाद की अच्छी कीमत में मिलती हैं । इस कार्यक्रम का भविष्य में अच्छा लाभ होगा । लोगों को देशी उत्पाद का महत्व समझ में आएगा और सेहत का भी । आज भी ग्रामीण व शहरी बाजारों में ग्रामीण सब्जियों का भाव पर मोलभाव कम ही होता है । गांव में ग्रामीण अर्थव्यवस्था ग्रामीण कृषि उत्पाद एवं वन उत्पाद से होती है । सरकार के द्वारा जहां कृषि उत्पाद को मूल्य देकर उनके चेहेर में मुस्कान दी है । मेरे पिता ने मुझे एक दिन अपने खाते में धान की बोनस मिलने के विषय में मुझे सूचित कर रहे थे तब उनका भाव ऐसा था कि मानो वो कह रहे थे कि बेटा मेरे पास भी पैसे हैं । मैं महसूस करता हूं कि यही भाव हर ग्रामीणों के पासहै इससे पहले उन्होंने अपने कृषि उत्पाद का इतना कीमत जीवनभर में नहीं देखा था , जो इस सरकार ने इन्हें दिया है । सरकार की योजना नरवा गरवा घुरवा बाड़ी आम जनमानस तक पहुंची है और उसके बाद रोका – छेका अभियान , गो धन न्याय योजना , यह योजना ग्रामीण शैली और उनके दैनिक जीवन को बिना प्रभावित करते बनाया गया है । योजना की सफलता का पहला सूचक यही है कि योजना के लागू होने से उनके दैनिक दिनचर्या प्रभावित ना हो । जहां तक गोधन का विषय है ग्रामीण परिवेश और जीवन शैली में रचा बसा है । सरकार की गोधन न्याय योजना ग्रामीण अर्थव्यवस्था को एक नये आयाम में पहुंचाएगी । गांव में गांव गोठान सज – धज कर तैयार है । गांव में महिला समूह गांव गोठान के गोबर से वर्मी कम्पोस्ट बनाएंगे और वर्मी कम्पोस्ट को समिति के माध्यम से विक्रय करने की तैयारी भी की जा रही है । आजकल गोबर से दीया और गमले बनाने का भी प्रयोग किया जा रहा है । गोधन का महत्व है गोबर से गोबर गैस बनाने की असिमित संभावनाएं हैं । गोबर गैस प्लांट जहां पहले गांव था किंतु वह एकल प्लांट था । एकल प्लांट और सामूहिक और प्लांट में अंतर है सामूहिक प्लांट के माध्यम से लघु उद्योगों का संचालन किया जा सकता है । गोबर गैस प्लांट का गोबर खाद अच्छा होता है यह गांव में प्रयोग रूप में सफल भी है । सरकार की इस योजना से गांव में विकास के लिए ग्राम पंचायत को एक नई सामूहिक निर्णय लेने की क्षमता का विकास होगा । और ग्राम पंचायतों में आपसी विकास के लिए स्वस्थ्य प्रतिस्पर्धा होगी क्योंकि यह कार्यक्रम का मूल भाव गांव का पैसा गांव में है , ऐसा दिखता है । मेरे एक किसान मित्र है जिन्होंने मुझे गौमूत्र का कृषि में प्रयोग की अनेक विधियां भी बताई । मुझे ऐसा लगता है कि सरकार की गोधन योजना से लोगों के विचार में परिवर्तन हो रहा है । वो दिन दूर नहीं जब कृषक वैदिक कृषि की ओर लौट आयेंगे । कृषि की वैदिक कृषि में श्री विधि से खेती और उत्पाद अच्छे भी हैं , इस विधि से कृषि भूमि की उर्वरकता को बनी रहती है । कभी आप गांव में घर का ढेंकी से कूटा धान का चावल खाकर देखियेगा , आपको देशी चावल का महत्व समझ में आयेगा । सरकार के पास एक स्पष्ट योजना गोधन न्याय योजना यह योजना गांव में गांव गोठान समिति , महिला स्व सहायता कृषि सहकारी सोसायटी से संचालित होगी , जिसमें सरकार के निर्णय कम और ग्राम पंचायत के निर्णय अधिक होंगे । गांधी जी का सपना ग्राम स्वराज्य को एक नया आयाम मिलेगा । इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि गो सेवा से पुण्य की प्राप्ति होती है । इस योजना से हमारे विपक्ष मित्र विरोध का धर्म तो अपनाये लेकिन उनका ध्येय केवल इतना होना चाहिए कि गोधन योजना में कोई कमी ना रह पाये । हां अंत में गोधन वास्तव में इस भूलोक का धन है । गोधन में गौमाता भी है ‘ माँ ‘ के लिए पक्ष और विपक्ष का भाव नहीं होना चाहिए ।