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धान खिलाकर हाथियों का उत्पात रोकेगी छग सरकार, वन विभाग धान खरीदकर गांवों के बाहर लगाएगा ढेर, ताकि भरपेट भोजन करके लौट जाएं गजराज

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रायपुर  : सरकार ने जंगली हाथियों के उत्पात को रोकने के लिए नया प्लान बनाया है। राज्य सरकार हाथियों को खिलाने के लिए धान खरीदेगी। वन विभाग प्रभावित गांवों के बाहर धान का ढेर रखवाएगा। इससे भोजन की तलाश में निकले गजराज के दल को गांव के बाहर ही भरपेट भोजन मिल जाएगा और वे गांवों में घुसकर जान-माल का नुकसान नहीं करेंगे। यह खरीदी छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी विपणन महासंघ (Markfed) से की जानी है। प्रदेश के तकरीबन 11 जिले हाथियों के आतंक से प्रभावित हैं। वन विभाग ने फिलहाल प्रदेश के सबसे ज्यादा प्रभावित 9 जिलों सूरजपुर, काेरबा, रायगढ़, सरगुजा, महासमुंद, गरियाबंद, बालोद, कांकेर और धमतरी जिलों के लिए बड़े स्तर पर धान खरीदी का प्रस्ताव दिया है। सहकारिता मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम ने बताया कि वन विभाग मार्कफेड से धान खरीदकर उसे जंगली हाथियों के मूवमेंट वाले क्षेत्रों में रखेगा। उन्होंने कहा कि अक्सर देखा गया है कि हाथी ग्रामीणों का घर तोड़कर धान और चावल खा जाते हैं। वन विभाग की और पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ ने पिछले महीने खरीदी दर पर धान खरीदने का प्रस्ताव भेजा था। इस खरीदी प्रस्ताव पर मार्कफेड ने सहमति की मुहर लगा दी है। यह धान 2019-20 में खरीदा गया धान होगा।

मार्कफेड ने 2095.83 रुपए प्रति क्विंटल लगाया दाम
वन विभाग के प्रस्ताव पर मार्कफेड ने 2095. 83 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से धान की कीमत लगाई है। यह खरीदी सीधे धान संग्रहण केंद्रों से की जानी है। मार्कफेड ने वन विभाग को कहा है, रायपुर जिले के संग्रहण केंद्र जौंदा, महासमुंद जिले के पिथौरा, बिलासपुर के मोपका और सेमरताल तथा सूरजपुर जिले के देवनगर व लोधिमा केंद्रों से धान उठाया जा सकता है। वर्ष 2019 में खरीदा गया 86 हजार मीट्रिक टन धान अभी भी संग्रहण केंद्रों में पड़ा हुआ है।

धान का स्टॉक खत्म करने की भी कोशिश
सरकार ने 2500 रुपए प्रति क्विंटल के समर्थन मूल्य पर जितना धान खरीदा है, उसका उपयोग नहीं हो पा रहा है। केंद्र सरकार ने एफसीआई में उसका पूरा चावल लेने से इनकार कर दिया है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली की जरूरत से कहीं ज्यादा धान बचा रह गया है। ऐसे में सरकार उसको खपाने का उपाय ढूंढ रही है। नई खरीदी के धान को कम दाम पर खुले बाजार में नीलाम किया जा रहा है। धान से एथेनाल बनाने का प्रस्ताव था, जो केंद्रीय अनुमति के बिना परवान चढ़ता नहीं दिख रहा है।

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