नई दिल्ली। यह बात बिहार के राजनीतिक हलकों में लगातार हो रही थी कि अगर परिणाम बीजेपी के अनुकूल रहा और एनडीए का बहुमत आया तो वो नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री कत्तई नहीं बनाएगी। लेकिन जब चिराग की पार्टी को 29 सीटें बंटवारे में दी गई तो यह समझ में आ गया कि नीतीश की राजनीति की लंका जलाने के लिए मोदी सरकार अपने हनुमान का इस्तेमाल करने में गुरेज नहीं करेगी।
नतीजा यह हुआ कि नीतीश ने चिराग के हिस्से में आई पांच सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर दिए हैं। उम्मीद की जा रही है कि मांझी और कुशवाहा भी इसी राह पर आगे बढ़ेंगे। खबर यह भी है कि नीतीश ने पीएम मोदी के साथ साथ अमित शाह का फोन उठाने से इनकार कर दिया है। वहीं अमित शाह को पिछले 24 घंटों में दो बार बिहार यात्रा का कार्यक्रम रद्द करना पड़ा है।
जनता दल यू के सूत्र बताते हैं कि नीतीश सीट बंटवारे से तो नाराज हैं ही, अब उन्होंने भाजपा पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है कि उनका नाम मुख्यमंत्री पद के लिए घोषित किया जाए। नीतीश को यह भी समझ में आ गया है कि उनके अपने दल के कई नेता बीजेपी को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं।
मोदी, शाह समेत भाजपा के कई वरिष्ठ नेता पहले ही कह चुके हैं कि विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। लेकिन अब बात इतने में बनती नहीं दिख रही। नीतीश चाहते हैं कि सीएम पद की घोषणा हो।
नहीं भुला जाना चाहिए कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव एकनाथ शिंदे के चेहरे पर लड़ा गया और अंततः सीएम देवेंद्र फडणवीस को बनाए दिया गया। नीतीश कुमार भयभीत हैं कि भाजपा कहीं बिहार में भी महाराष्ट्र फॉर्मूले पर सरकार बनाने की कोशिश नहीं करे।
नीतीश की आशंकाओं के पीछे वाजिब वजहें भी हैं यदि चुनाव के बाद भाजपा अकेले या फिर चिराग के साथ सरकार बनाने में सफल रही तो मुख्यमंत्री पद से नीतीश की विदाई फीसदी तय है। नीतीश एकनाथ शिंदे नहीं हैं कि डिप्टी सीएम का पद स्वीकार कर संतुष्ट हो जाएं।
इसके पहले भाजपा ने पिछले विधानसभा चुनाव में ही नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री न बनाने की योजना पर काम किया था लेकिन यह रणनीति काम नहीं कर पाई। चिराग की पार्टी भी केवल एक सीट पर चुनाव जीती। नीतीश कुमार दरअसल उस साजिश को समझ रहे हैं जिसमें चिराग को आगे बढ़ाकर जनता दल यू को पीछे छोड़ने की कोशिश हो रही है।
नहीं भुला जाना चाहिए कि 2020 के चुनाव में नीतीश कुमार ने केवल 43 सीटें जीती थी वहीं बीजेपी को 74 सीटें जीतने के बावजूद छोटे भाई की भूमिका में आना पड़ा था। बीजेपी इस स्थिति के लिए कत्तई तैयार नहीं दिखती। भाजपा को लग रहा है कि अगर उसने पिछला परिणाम भी दोहराया और चिराग ने लोकसभा चुनाव वाला स्ट्राइक रेट बरकरार रखा तो बहुत आसानी से सरकार बना सकेगी।
नहीं भुलाना चाहिए लोकसभा चुनाव ने चिराग ने अपनी सभी पांच सीटों पर चुनाव जीता था। यकीनन नीतीश कुमार के खिलाफ ही एंटीइनकंबेसी काम करेगी। प्रशांत किशोर तो दावा कर रहे हैं कि जेडीयू की 25 सीटें आएंगी। सीट बंटवारे में चिराग के खाते में 29 सीटें आई हैं, जबकि जीतन राम मांझी की पार्टी हम और उपेन्द्र कुशवाहा की रालोमो को 6-6 सीटें मिली हैं।
भाजपा और जदयू बराबर 101 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। अगर सरकार बनाने की बात आई तो कुशवाहा और मांझी दोनों नीतीश और शाह में से नीतीश को चुनना पसंद करेंगे।यह दोनों नेता भी नाखुश हैं और आग उगल रहे हैं।
दोनों ही चिराग के अहंकार के खिलाफ नीतीश से हाथ मिलाने को भी तैयार हैं। हालात किस कदर खराब हैं इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बार बार घोषणा के बावजूद एनडीए की संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस नहीं हो पाई है।