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सनसनीखेज रपट- छत्तीसगढ़ में हिंसक भालूओं के मंदिर आने का रहस्य क्या..?

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सनसनीखेज रपट-
छत्तीसगढ़ में हिंसक भालूओं के मंदिर आने का रहस्य क्या..?

 

– सुरेश सिंह बैस
बिलासपुर। प्रदेश भर में भालू जैसे हिंसक जानवरों का मंदिर आने की घटना एक नहीं कई जगहों में देखने को मिल रही है।इन मंदिरों में आकर कहीं भालू घंटी बजाते हैं, पूजा करते हैं तो कहीं प्रसाद खाने आते हैं। इस दौरान यह सबसे आश्चर्यजनक और अनोखा तथ्य देखने में आया है कि ये भालू मंदिरों में आने के दौरान और जाने तक शांत और सात्विक रहते हैं। वह किसी को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचाते। उनकी हिंसक प्रवृत्ति न जाने कहां गुम हो जाती है। यह ईश्वर का प्रताप है या कुछ और…? इसका रहस्य क्या है, इसी तथ्य पर कुछ प्रकाश डालती रपट।

जनकपुर के दुर्गा मंदिर में प्रतिदिन पूजा अर्चना के समय आता है भालू

मनेंद्रगढ़ जिले के दूरस्थ वनांचल क्षेत्र जनकपुर क्षेत्र अंतर्गत मंदिर में प्रकृति और आस्था का एक अद्भुत संगम देखने को मिल रहा है, नगर के दूरस्थ वनांचल क्षेत्र स्थित मां दुर्गा मंदिर में। यहां प्रतिदिन पूजा अर्चना के समय जब मंदिर की घंटी बजाई जाती है, तो वन्य प्राणी भालू अपने तय समय पर मंदिर परिसर पहुंच जाते हैं। पुजारी द्वारा किए जा रहे भजन-कीर्तन और घंटी की आवाज सुनते ही भालू मानो देवी के बुलावे पर चले आते हैं। वह मंदिर परिसर में रखे प्रसाद को शांति से खाकर बिना किसी उत्पात के जंगल की ओर लौट जाते हैं। सबसे खास बात यह है कि अब तक इन्होंने किसी को कोई नुक्सान नहीं पहुंचाया है।मां दुर्गा मंदिर के पुजारी रामस्वरूप दास बताते हैं कि यह अद्भुत दृश्य पिछले लगभग एक वर्ष से देखने को मिल रहा है। प्रारंभ में जब भालू पहली बार मंदिर में आये, तो गांव के लोगों में भय का माहौल बन गया था। लेकिन आश्चर्य की बात यह रही कि भालूओं ने किसी पर हमला नहीं किया, न ही किसी प्रकार की आक्रामकता दिखाई। वह केवल प्रसाद खाकर जंगल की दिशा में चले गए।बस तभी से लेकर आज तक यह क्रम जारी है। पुजारी बताते हैं कि भालू हर दिन सुबह आरती और शाम की आरती के समय ही आते हैं। जैसे ही मंदिर की घंटी बजती है, कुछ ही मिनटों बाद ये जंगल की ओर से निकलकर मंदिर के आंगन तक पहुंच जाते हैं। आरती समाप्त होने के बाद उन्हें पुजारी प्रसाद के रूप में गुड़, केला और नारियल के टुकड़े देते हैं, जिन्हें, वह शांति से खाकर लौट जाते हैं। इस अनोखे व्यवहार को देखकर गांव के लोग उन्हें ‘रामू और श्यामू भालू’ नाम से पुकारने लगे हैं। पुजारी रामस्वरूप दास का कहना है, ” इस दौरान मैंने भालूओं से बात करने की कई बार कोशिश की है मेरी बात सुनकर वह सकारात्मक हरकत भी करते हैं। मेरे साथ खेलते हैं।

घूचापाली के चंडी मंदिर में वर्षों से आरती में आता है भालुओं का परिवार

हमारे देश में चमत्कारों और आध्यात्मिक शक्तियों की वजह से कई मंदिर प्रसिद्ध हैं. लेकिन छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में चंडी देवी का मंदिर हर रोज होने वाली एक घटना के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर में केवल इंसान ही पूजा नहीं करते हैं बल्कि हर रोज भालुओं का भी पूरा परिवार माता के दर्शन के लिए पहुंचता है। मंदिर में हर रोज सैकड़ों भक्त अपनी मनोकामना लेकर पहुंचते हैं, जब वे भालुओं द्वारा माता की भक्ति का यह नजारा देखते हैं तो उनकी सांसें धम सी जाती हैं।महासमुंद के बागबाहरा के पास घुचापाली का चंडी माता का मंदिर है जो अपने मान्यताओं को लेकिन काफी प्रसिद्ध है। यहां प्रति दिन भालू, माता का प्रसाद ग्रहण करने आते हैं। छत्तीसगढ़ का यह एक ऐसा मंदिर है जहां भालू मंदिर की आरती और प्रसाद लेने हर शाम के समय आरती में पहुंचते है। जिसमें एक मादा और दो शावक भालू आते हैं। जिसे देखने के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से पहुंचते हैं।

भगवानपुर के चांगदेवी मंदिर में रोजाना प्रसाद खाने आता है भालू

वहीं मनेंद्रगढ़ जिले के एक मंदिर में भालू रोजाना सुबह-शाम प्रसाद खाने पहुंचता है। भरतपुर विकासखंड के भगवानपुर गांव में मां चांग देवी मंदिर स्थित है। यहां एक भालू आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। भालू रोज सुबह-शाम जंगल से निकलकर प्रसाद खाने के लिए मंदिर आता है।प्रसाद खाने के बाद करीब एक घंटे तक भालू मंदिर के आसपास घूमता है। फिर जंगल की ओर वापस चला जाता है। भालू को देखने के लिए मां चांग देवी मंदिर में बड़ी संख्या में लोग आते हैं। लेकिन अब तक भालू ने किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया है।

किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता भालू

वैसे तो भालू का नाम मन में आते ही लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं, लेकिन मां चांग देवी मंदिर में भालू का देखा जाना आम बात हो गई है। लोग भालू के काफी करीब तक पहुंच जाते हैं और वह किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता है।लोगों ने भालू की तस्वीर मोबाइल कैमरे में कैद कर वायरल कर दी। भालू का वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर शेयर किया जा रहा है।

कांकेर के शिव मंदिर में आकर करता है पूजा

जंगलों से आच्छादित कांकेर शहर के सिविल लाइन एरिया के पुराने शिव मंदिर में रोजाना भालू आकर पूजा करता है। मंदिर की घंटी बजाता है। फिर चुपचाप वापस जंगल की ओर चला जाता है। इस दौरान वह किसी को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचाता , आश्चर्यजनक तो यह है कि अपनी हिंसक प्रवृत्ति के विरुद्ध वह बड़ा ही शांत रहता है। मंदिर परिसर में ही स्थित भोग प्रसाद के दुकानदार द्वारा बताया गया कि मैं रोज इस भालू को मंदिर आते देखता हूं। इस दौरान यह भालू कभी भी किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता। वह शांति से मंदिर आता है और पूजा करता है, घंटी बजाता है।अक्सर वह देर रात को ही मंदिर पहुंचता है, फिर मंदिर के आसपास घूमता है और शांति से फिर वापस जंगलों की ओर चला जाता है।

सृष्टि की हर वस्तु में ईश्वर तत्व: भारतीय दर्शन

भारतीय दर्शन में यह माना गया है कि सृष्टि की हर वस्तु में परमात्मा का अंश विद्यमान है चाहे वह मनुष्य हो, पशु, पक्षी, पेड़ या नदी।भालुओं का मंदिर में आना इस सत्य का जीवंत प्रतीक है कि ईश्वर केवल मानव के भीतर नहीं, बल्कि समस्त सृष्टि में व्याप्त हैं। यह हमें याद दिलाता है कि धर्म का सच्चा रूप संपूर्ण जीव-जगत के प्रति करुणा और सम्मान में निहित है।हिंदू शास्त्रों में कहा गया है -“अहिंसा परमो धर्मः।
“जब जंगली भालू मंदिर परिसर में बिना भय या हिंसा के आते हैं और मनुष्य उन्हें श्रद्धा से स्वीकार करता है, तो यह प्रकृति और मनुष्य के बीच संतुलित सह-अस्तित्व का आदर्श उदाहरण है।यह घटना हमें सिखाती है कि जब हम भय की जगह प्रेम और श्रद्धा का भाव रखते हैं, तो जंगली प्राणी भी शांत और सहयोगी बन जाते हैं।आध्यात्मिक दृष्टि से, ऐसे स्थानों को “तपस्थल” या “देवक्षेत्र” कहा जा सकता है, जहाँ प्रकृति स्वयं देवत्व का रूप ले लेती है। भालुओं का मंदिर में आना यह दर्शा सकता है कि वह स्थल अत्यंत ऊर्जावान, पवित्र और प्रकृति-संगत है।श्रद्धा शुद्ध होती है, तो पशु-पक्षी भी उस दिव्यता को महसूस कर आकर्षित होते हैं।

भालूओं का प्रसाद ग्रहण का प्रतीकात्मक अर्थ

जब भालू मंदिर का प्रसाद खाते हैं, तो इसे केवल भोजन ग्रहण करना नहीं माना जा सकता।”प्रसाद” का अर्थ है “अनुग्रह” ईश्वर की कृपा। इस दृष्टि से यह घटना यह दर्शाती है कि ईश्वर की कृपा केवल मनुष्यों तक सीमित नहीं, बल्कि हर जीव तक पहुँचती है। यह एक गहरा संदेश है ईश्वर के आशीर्वाद में कोई भेदभाव नहीं होता।इस दृष्टि से यह घटना यह दर्शाती है कि ईश्वर की कृपा केवल मनुष्यों तक सीमित नहीं, बल्कि हर जीव तक पहुँचती है। यह एक गहरा संदेश है ईश्वर के आशीर्वाद में कोई भेदभाव नहीं होता।

मंदिर पूजा स्थल नहीं वरन प्रकृति और ईश्वर के मिलन का केंद्रबिंदु

इन घटनाओं से हमें यह सीखना होगा कि -आराध्य स्थल केवल मनुष्यों के पूजा-स्थल नहीं, बल्कि प्रकृति और ईश्वर के मिलन-बिंदु हैं।यदि हम प्रकृति के साथ श्रद्धा और सम्मान से व्यवहार करें, तो वह हमें भय नहीं, आशीर्वाद देती है।सच्चा धर्म वही है जो सभी प्राणियों में ईश्वर का दर्शन करे।

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