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रेलवे क्षेत्र में रामलीला मंचन का 74 वां वर्ष , कभी पेट्रोमैक्स की रोशनी में होता था मंचन

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रेलवे क्षेत्र में रामलीला मंचन का 74 वां वर्ष , कभी पेट्रोमैक्स की रोशनी में होता था मंचन

– सुरेश सिंह बैस
बिलासपुर । रेलवे क्षेत्र में रामलीला के मंचन को 74 साल पूरे हो गए। आदर्श रामलीला मंडली द्वारा इस बार भी पारंपरिक रामलीला का प्रदर्शन किया जा रहा है। भारतीय जनमानस की आत्मा में भगवान श्री राम और उनकी जीवनी बसती है। रेलवे क्षेत्र में विगत 74 वर्षों से रामलीला के माध्यम से उनके जीवन के महत्वपूर्ण प्रसंगों प्रस्तुति दी जाती है। इस वर्ष भी यह आयोजन निरंतरता बनाये हुए है। भला ऐसा कौन है जो भगवान राम और उनकी कथा से परिचित नहीं है ? और ऐसा कौन है जो बार-बार उनकी कथा नहीं सुनना चाहता ? मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की जीवनी हर भारतीय के लिए आदर्श है। यही कारण है कि वे बार-बार उसका पुण्य स्मरण करना चाहते हैं। कहते हैं हरि अनंत, हरि कथा अनंता। हर बार रामायण के प्रसंग से कोई महत्वपूर्ण नई जानकारी निकल आती है। यही कारण है कि इन दिनों नगर के रेलवे क्षेत्र में आयोजित रामलीला का मंचन देखने बड़ी संख्या में मर्मज्ञ पहुंच रहे हैं।इस नगर को संस्कार और संस्कृति धानी कहा जाता है लेकिन आपको यह जानकार शायद हैरानी होगी कि आजादी के बाद नगर में धार्मिक गतिविधियों का केंद्र चुचुहिया पारा फाटक क्षेत्र था, जहां बाहर से आए रेलवे कर्मचारियों ने दुर्गा पूजा, शीतला पूजा और रामलीला की भी शुरुआत की थी। आजादी के महज तीन साल बाद 1950 में चुचुहिया पारा फाटक के पास कुछ उत्साही लोगों ने मिलकर रामलीला की शुरुआत की थी, जिनमें मोहनलाल कश्यप, सूर्यकुमार अवस्थी, बिहारी लाल यादव, सौखी राम मौर्य, मुदलियार बाबू जैसे कुछ नाम आज भी लोगों को याद है। उस समय मनोरंजन के अधिक साधन नहीं थे। रात में पेट्रोमैक्स की रोशनी में कलाकार रामायण से जुड़े प्रसंग प्रस्तुत करते थे। दर्शकों ने दिलचस्पी दिखाई तो फिर बंगाली स्कूल के आसपास इसका मंचन होने लगा। कई बार स्थान बदला और फिर रामलीला मैदान में स्थाई मंच बना, इसके बाद कार्यक्रम भी स्थाई हुआ । इसके बाद से निरंतर हिंदुस्तानी सेवा समाज द्वारा दस दिवसीय रामलीला का आयोजन किया जाता है।

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