0 एमजी रोड स्थित जैन दादाबाड़ी में चातुर्मासिक प्रवचन
रायपुर। अपेक्षा ही दुख का कारण है। अपेक्षा पूरी न हो तो व्यक्ति को आवेश आता है। वह गलत फैसले उठाता है। अपेक्षा नहीं तो अनहोनी भी नहीं। एमजी रोड के जैन दादाबाड़ी में चल रहे चातुर्मासिक प्रवचन में विराग मुनि महाराज साहब ने ये बातें कही।
गुरुवर विनय कुशल मुनि जी महाराज साहब के पावन सानिध्य में यहां जप-तप का सिलसिला जारी है। धर्मसभा को संबोधित करते हुए विराग मुनि ने कहा, हमारे आसपास दो तरह के लोग होते हैं। एक जो कुछ भी करे, हमें फर्क नहीं पड़ता। दूसरे वो जिन्हें गलत करने पर हम टोक देते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि हम उनकी भलाई चाहते हैं। सबसे पहले तो गलती से बचें। जाने-अनजाने गलती हो भी तो हर किसी की नजर में कम से कम इतने योग्य जरूर रहें कि वे आपको गलती से पहले टोक दें। गलतियों से बचना है तो धर्म की शरण में आना होगा। जीवन में एक बार अध्यात्म जाग जाए, तो फिर कमाल देखो। परमात्मा के औरा (आभा मंडल) में रहना देवत्व प्राप्त करने से बढ़कर है। आप भी अगर जरा सी बात पर गांठ बांधकर बैठ जाते हैं, तो जान लीजिए कि कर्मों के बंधन से कभी मुक्त नहीं होने वाले। जैन धर्म में सामायिक का विधान है। इस प्रक्रिया में हम आत्मावलोकन करते हैं। दिनभर में मन, कर्म, वचन से किसी को दुख तो नहीं पहुंचाया, ये विचार करते हैं। पश्चाताप करते हैं। सामायिक नहीं करेंगे तो गलतियों का भान कैसे होगा? पश्चाताप का भाव कैसे आएगा। गलतियां कैसे सुधरेंगी? कल्याण कैसे होगा?
मंदिर की दौड़ लगाने से कुछ
न होगा, मन में धर्म जगाओ
सिर्फ मंदिर की दौड़ लगाने से कुछ नहीं होगा। मन में भाव होना भी जरूरी है। एक बार अध्यात्म रूपी सूर्य उदित हो गया तो जीवन से मोहिनी रूपी अंधकार दूर हो जाएगा। जीवन में धर्म जगाने के लिए अच्छी संगत जरूरी है। इसे छोटे से उदाहरण से समझिए। गुरु महाराज के कहने पर शिष्य अपने एक हाथ में चंदन की लकड़ी, दूसरें में कोयला लेकर आया। गुरु ने दोनों हाथ में अंतर पूछा। शिष्य ने बताया, एक हाथ से चंदन की खुशबू आ रही है। दूसरा कोयले से गंदा हो गया है। इसी तरह आप जैसी संगत करते हैं, आपके जीवन में उसका वैसा ही प्रभाव पड़ता है।
वेशभूषा ऐसी हो कि कोई ऊंगली न
उठाए पर आज हालत चिंताजनक
आज लोगों की वेशभूषा चिंताजनक है। ज्ञानीजन कहते हैं कि वेशभूषा ऐसी हो, जिस पर कोई ऊंगली न उठाए। निश्चित ही आपकी वेशभूषा उन लोगों के हृदय को प्रभावित करती है, जिनसे आप मिलते हैं। आज सारी मर्यादाएं टूट चुकी हैं। अंग प्रदर्शन की दौड़ है। हम दुनिया को नहीं सुधार सकते पर खुद में तो सुधार ला सकते हैं। कम से कम धार्मिक और सामाजिक जगहों पर मर्यादाओं का पालन करें। मंदिरों का भी वातावरण अगर हम ही बिगाड़ने लगे तो इसकी पवित्रता कौन बचाएगा?
स्नेह, भरोसा और ताकत संयुक्त परिवार
में, इनके टूटने से मर्यादाएं तार-तार हुईं
छोटा परिवार-सुखी परिवार का कॉन्सेप्ट आने के साथ संयुक्त परिवारों का विघटन होने लगा। जहां चार-पांच भाई साथ रहते थे, वे सब अलग-अलग रहने लगे। आप उनसे पूछेंगे कि क्या अब सब खुश रहते हैं? तो जबाव मिलेगा, नहीं। परिवार तोड़कर कोई खुश कैसे रह सकता है। पहले पति काम पर बाहर जाएं, तो देखरेख के लिए देवरानियां-जेठानियां साथ रहती थीं। एक-दूसरे पर नजर रखती थीं। परिवार की मर्यादा भी बनी रहती थी। संयुक्त परिवार टूटने से आज मानव समाज की मर्यादाएं तार-तार हो गई हैं। स्नेह, भरोसा और ताकत संयुक्त परिवार में ही मिलता है।
घर में काम नहीं करते, विडंबना
ये कि थैरेपिस्ट के पास जाते हैं
समय के साथ समाज में सुविधा के नाम पर आए सभी बदलावों को सही नहीं ठहराया जा सकता। जैसे ज्यादातर महिलाएं पहले घर का झाड़ू-पोछा खुद करती हैं। आज ज्यादातर घरों में ये काम नौकरानी कर रहीं हैं। महिलाओं की फिजिकल एक्टिविटी लगभग बंद हो गई है। इसके दुष्प्रभाव भी आ रहे हैं। कमर दर्द, जोड़ों का दर्द जैसी न जाने कितनी सारी समस्याएं कम उम्र में, वह भी बिना किसी मेहनत के आ रही है। विडंबना देखिए कि इसका इलाज करवाने के लिए लोग थैरेपिस्ट के पास जाते हैं। वो जो एक्सरसाइज बताते हैं, उसे करते हैं। घर का काम कर लेंगी तो ये सब करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
100 कर रहे महान सिद्धि तप, प्रीति
ने 24वें व्रत का पच्चखान लिया
आत्मस्पर्शीय चातुर्मास समिति के अध्यक्ष पारस पारख और कोषाध्यक्ष अनिल दुग्गड़ ने बताया कि महान सिद्धि तप के अंतर्गत 100 लोग तप कर रहे हैं। मंगलवार को पांचवी लड़ी का पांचवां उपवास रहेगा। धर्मसभा में प्रीति भंसाली ने 24वें उपवास का पच्चखान लिया। परिवार के सुरेश भंसाली ने बताया श्रीमती प्रिंसी भंसाली के 27 के उपवास है आगे मासखमण यानी 31 उपवास के भाव हैं। बसंतv लोढ़ा ने बताया कि दादा गुरुदेव के इकतीसा जाप के तहत सोमवार रात धमतरी से आई सगी बहनों विधि और निधि लालवानी ने सुरमयी भक्ति गीतों और भजनों से समा बांधा।