रायपुर वॉच

तिरछी नजर 👀 : ईडी की नजर विधायकों पर… ✒️✒️

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छत्तीसगढ़ में सक्रिय केन्द्रीय एजेंसी ईडी, सीबीआई और अन्य एजेंसी की नजर कांग्रेस की संभावित प्रत्याशियों पर है। आईएएस रानू साहू के चालान में दो विधायक चंद्रदेव राय और भिलाई विधायक देवेन्द्र यादव के नाम आने पर यह माना जा रहा है कि इनकी टिकट खतरे में है। पार्टी अब देवेन्द्र की जगह उनकी पत्नी को टिकट दे सकती है। वैसे उनके बड़े भाई धर्मेन्द्र यादव के नाम की भी चर्चा है। चंद्रदेव राय की टिकट कटना पहले से तय माना जा रहा है। चर्चा यह भी है कि कोल घोटाले में 15 और विधायकों का नाम देर सबेर जुड़ सकता है। इन विधायकों को लेकर चुनाव के दौरान और खुलासा होने का डर सता रहा है। जिन कांग्रेसी नेताओं के यहां छापे पड़े हैं उन्हें भी टिकट मिलेगी या नहीं, इसको लेकर संशय की स्थिति बनी हुई हैं। कांग्रेस की छानबीन समिति की इस मामले के तमाम पहलुओं को ध्यान में रखकर टिकट की अनुशंसा करेगी।अब आगे क्या होगा,इस पर सभी की नजर है।

दल बदलुओं को तवज्जों

पीएम नरेंद्र मोदी ने कल ही कहा था कि भाजपा के कार्यकर्ता ही पार्टी की असली पूंजी है। यह कथन अब सिर्फ कार्यकर्ताओं की बैठक में संबोधन का विषय रह गया है। पहले खुलकर नहीं बोलने वाले कार्यकर्ता अब कह रहे हैं कि मोदी के 9 साल और रमन के 15 साल में कार्यकर्ता को क्या मिला? हाल में हुए टिकट वितरण में 2 दल बदलुओं को टिकट दे दी गई। पाटन में पिछली बार मोतीलाल साहू को प्रत्याशी बनाया गया था। इस बार डौंडीलोहारा में कांग्रेस से आये देवलाल ठाकुर को पहले प्रवक्ता और अब भाजपा की टिकट मिल गई। गजब तो राजिम में हो गया जब कांग्रेस छोड़कर जोगी कांग्रेस और अब भाजपा में शामिल हुए रोहित साहू को टिकट दे दी गई । यानी अब जीत बेहतर संभावना ही टिकट का पैमाना रह गया है। दोनों से परे अंबिकापुर से कांग्रेस छोड़कर आए राजेश अग्रवाल और आलोक दुबे को टिकट का मजबूत दावेदार माना जा रहा है। इसी तरह सीतापुर से दो दिन पहले कांग्रेस छोड़कर आए अनिल निराला को अमरजीत भगत के खिलाफ उतारा जा सकता है। इससे अंबिकापुर के स्थापित पार्टी नेताओं को समस्या हो सकती है।मगर यह भी सच है कि पार्टी पुराने नेता 15 साल में व्यक्तिगत हित साधते रहे हैं। अंबिकापुर में टीएस के खिलाफ अकेले आलोक दुबे लड़ाई लड़ते रहे हैं। ऐसे में एक-दो जगह पार्टी मूल भाजपाईयों को नजरअंदाज कर रही तो गलत भी नहीं है।अगली सूची में धर्मजीत सिंह का नाम हो सकता है, जो कुछ दिन पहले ही भाजपा में आए हैं।
पिक्चर अभी बाकी है..

भाजपा की पहली सूची ने राजनीतिक विश्लेषकों को चौंका दिया है। छत्तीसगढ़ कई सीटों पर इसी तरह चौकन्ने वाले नजारे आगामी दिनों दिख सकते हैं। आईएएस की नौकरी छोड़कर भाजपा की राजनीति में सक्रिय ओपी चौधरी ने खरसिया सीट से दावेदारी छोड़ दी है। ओपी चौधरी ने किसी नायक को टिकट देने की सिफारिश की थी लेकिन पार्टी ने महेश साहू को प्रत्याशी बना दिया। अब ओपी चौधरी रायगढ़ या जैजैपुर से लड़ेंगे, इस पर सबकी नजर है। कई नेताओं का मानना है कि ओपी लोकसभा चुनाव में कोरबा से दावेदारी कर सकते हैं। खैर,रायपुर उत्तर सीट से सिंधी समाज के संत गुरू युधिष्ठिर लाल के पुत्र भीष्म शदाणी पर संघ की नजर है। इसके अलावा चेम्बर अध्यक्ष अमर पारवानी भी एक केन्द्रीय मंत्री से चुपचाप मिल आए हैं। चर्चा है कि पार्टी कुछ नया प्रयोग कर सकती है। फिलहाल तो सूची का बेसब्री से इंतजार हो रहा है।


कका और भतीजे की रोचक लड़ाई

दुर्ग सांसद विजय बघेल को एक माह पहले भाजपा के केन्द्रीय नेताओं ने बुलाकर संकेत दे दिया था कि पाटन से भूपेश बघेल के खिलाफ विधानसभा चुनाव लडऩा है। केन्द्रीय नेताओं के संकेत के बाद विजय बघेल ने गेड़ी में चढ़कर रायपुर तक पहुंचने की चुनौती दे दी थी। ऐसे में कका और भतीजे का मुकाबला सुर्खियों भरा रहेगा। पिछली बार पाटन ने कका को विधायक बनाकर सीएम बनाने और भतीजे को वोट देकर सांसद बनाने का संकल्प लिया था, देखना है कि इस बार कौन नारा पाटन की जनता पसंद करती है। पाटन के अलावा बस्तर विधानसभा के भाजपा व कांग्रेस प्रत्याशी आपस में नजदीकी रिश्तेदार हैं।

बागियों ने बिगाड़ी बिसात

भाजपाई खेमे में हारी हुई सीटों पर 21 प्रत्याशी घोषित कर चुनावी रेस में बढ़त बनाने का जश्न चंद घंटों में ठंडा पड़ गया। चौतरफ़ा बग़ावत के स्वर उठने लगे तो राजधानी में बैठे नेताओं की नींद उड़ गई। डैमेज कंट्रोल के लिए नेताओं की टीम आनन-फ़ानन में उतारना पड़ा। ओपी चौधरी को दूसरे दिन रामानुजगंज भेजना पड़ा। संगठन महामंत्री पवन साय ख़ुद दफ़्तर छोड़कर अंबिकापुर पहुँच गये। वहाँ भटगाँव समेत दूसरी सीटों पर नाराज कार्यकर्ताओं को मनाने में जुट गये। धरसींवा में अनुज शर्मा की सक्रियता दिखी तो क़रीब दर्जनभर दावेदारों ने लामबंद होकर गुप्त बैठक कर ली। सरायपाली में सरला कोसरिया का विरोध है तो डोंडीलोहारा में देवलाल ठाकुर का। बाकी सीटों से भी उत्साहजनक खबरें नहीं आ रहीं हैं। ऐसे में आने वाले दिन भाजपा नेतृत्व के लिये काफी चुनौती भरे हो सकते हैं।

‘धनतेरस’ का इंतज़ार

अनुमान है कि विधानसभा चुनाव दीपावली के बाद होंगे। यानी कार्यकर्ता उम्मीद कर सकते हैं कि इस दफे धनतेरस बढ़िया मनेगी। ऐसे कार्यकर्ता घोषित प्रत्याशियों के इर्द-गिर्द नज़र आने लगे हैं। समय से पहले खर्च का मीटर चालू होने से प्रत्याशी परेशान हैं, मगर अपना दर्द बयान नहीं कर पा रहे हैं। सामने पर्व, त्योहारों व उत्सवों के सिलसिले खर्च में तगड़ा इजाफा करेंगे। भाजपा के घोषित प्रत्याशियों में इक्का-दुक्का को छोड़ दें तो सभी औसत माली हालत के हैं। ऐसे प्रत्याशियों के लिए खबर है कि यह संकट चंद दिनों का मेहमान है। उनके लिए खोखों का इंतज़ाम हो गया है। कन्साइन्मेंट रायपुर पहुँचते ही सबकी ग़रीबी दूर हो जाएगी। कार्यकर्ता तो धनतेरस मनायेंगे ही। कई छोटी पार्टियाँ भी बहती गंगा में डुबकी लगायेंगी।

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