खरसिया
बोल बम सेवा समिति के सदस्य आज दिनांक 30 जुलाई 2022 शनिवार को 70 से अधिक कावड़ियों के ग्रुप के साथ बाबा धाम के लिए रवाना हुआ। पवित्र सावन महीना प्रारंभ हो चुका है। शिवालयों में हर-हर महादेव के नारे गूंजने लगे हैं गंगाजल से भगवान शिव का जलाभिषेक किया जा रहा है। इसके साथ ही केसरिया कपड़े पहने शिवभक्तों के जत्थे गंगा का पवित्र जल शिवलिंग पर चढ़ाने निकल पड़े हैं। ये जत्थे जिन्हें हम कावड़ियों के नाम से जानते हैं उत्तर भारत में सावन का महीना शुरू होते ही सड़कों पर दिखाई देने लगते हैं।
पिछले दो दशकों से कावड़ यात्रा की लोकप्रियता बढ़ी है और अब समाज का उच्च एवं शिक्षित वर्ग भी कावड यात्रा में शामिल होने लगा है। खरसिया से भी प्रत्येक वर्ष की भांति शिवभक्त कांवड़ियों की अनेक टोली बाबा बैजनाथ की कावड़ यात्रा के लिए सज धज के तैयार है। इसी क्रम में 35 वें वर्ष बोल बम सेवा समिति खरसिया के 70 से अधिक कावड़ियों के जत्थे के साथ घनश्याम बिरला, रामोतार अग्रवाल, सुशील डिंपल अग्रवाल, आलोक पुसू अग्रवाल, पार्षद सोनू अग्रवाल, कैलाश शर्मा (पत्रकार), अज्जू शर्मा, नरेंद्र अग्रवाल, कमलेश नायडू, के नेतृत्व में आज 30 जुलाई को साउथ बिहार एक्सप्रेस से रवाना हुआ । 31 जुलाई को सुल्तानगंज से गंगाजल उठाकर बोल बम सेवा समिति खरसिया के बम 110 किलोमीटर की पैदल यात्रा करते हुए 04 अगस्त को बाबा बैजनाथ के दरबार पहुंचेंगे एवं बाबा को रिझाएंगे तथा 05 अगस्त को बाबा बासुकीनाथ धाम पहुंचकर बम बासुकी का जलाभिषेक करेंगे। बाबा बैजनाथ की यह पैदल कांवर यात्रा ऐसी आलौकिक यात्रा है कि जो बाबा को निस्वार्थ भाव से कावड़ चढ़ाता है उसकी सभी मनोरथ बाबा पूर्ण करते हैं एवं उसके पश्चात उनके मन में जो अनुभूति होती है उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। आप सभी से निवेदन है की जीवन में एक बार बाबा बैजनाथ एवं बाबा बासुकीनाथ की कावड़ अवश्य चढ़ाएं।
कावड़ यात्रा का इतिहास किसने चटाई सबसे पहली कांवड़
लेकिन क्या आप जानते हैं कावड़ यात्रा का इतिहास, सबसे पहले कावड़िया कौन थे। इसे लेकर अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग मान्यता है आइए जानें विस्तार से
परशुराम थे पहले कावड़िया- कुछ विद्वानों का मानना है कि सबसे पहले भगवान श्री परशुराम ने उत्तर प्रदेश के बागपत के पास स्थित ‘पुरा महादेव’का कावड़ से गंगाजल लाकर जलाभिषेक किया था।
भगवान श्री परशुराम, इस प्रचीन शिवलिंग का जलाभिषेक करने के लिए गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जी का जल लाए थे। आज भी इस परंपरा का पालन करते हुए सावन के महीने में गढ़मुक्तेश्वर से जल लाकर लाखों लोग ‘पुरा महादेव’ का जलाभिषेक करते हैं। गढ़मुक्तेश्वर का वर्तमान नाम ब्रजघाट है।