गौरेला पेंड्रा मरवाही: मरवाही वन मंडल के गौरेला वन परिक्षेत्र में महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना के तहत स्वीकृत हुए लगभग 7 करोड़ के काम में गंभीर अनियमितता सामने आई है। जिसकी शिकायत के बाद जांच के लिए गठित 4 सदस्य तकनीकी कमेटी जिसमें महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना के मुख्य अभियंता, उपायुक्त मनरेगा, सांख्यिकी अधिकारी मनरेगा, प्रोग्रामर मनरेगा, की संयुक्त टीम ने जिला प्रशासन की टीम एवं वन कर्मियों के समक्ष जांच की है।
जांच में यह पाया गया कि सभी 33 कामों में सामग्री आपूर्तिकर्ता को अनुचित लाभ देते हुए आवश्यक समस्त सामग्रियों का एकमुश्त भुगतान कर दिया गया। जो मनरेगा कानून में नियमों का खुला उल्लंघन है। इसके साथ ही कार एजेंसी और आपूर्तिकर्ता के बीच मिली भगत कर गंभीर आर्थिक अनियमितता शासकीय राशि के दुरुपयोग को भी दर्शाता है।टीम ने जब जांच की तो मौके पर अन्यत्र कहीं और पर भी सामग्री नहीं पाई गई। इतना ही नहीं मनरेगा की जांच टीम ने मौके पर हुए निर्माण कार्यों को तकनीकी रूप से पूरी तरह अयोग्य ठहराया है। जांच के बाद टीम ने संबंधित अधिकारियों कर्मचारियों पर वसूली के साथ-साथ दंडात्मक कार्यवाही की भी अनुशंसा की है। इतना ही नहीं टीम ने न सिर्फ विभागीय जांच की अनुशंसा की बल्कि मनरेगा कानून के तहत उल्लंघन हुए सभी कानूनों के तहत दोषी अधिकारी कर्मचारियों के साथ सप्लायर पर भी कार्यवाही अनुशंसित की है।
पिछले विधानसभा सत्र में मामला उठने के बाद डीएसपी देव ने मामले को गंभीर बताते हुए स्वीकार किया कि अनियमितता हुई है। जिस पर विधानसभा अध्यक्ष की अनुशंसा के बाद अधिकारियों कर्मचारियों को निलंबित करने की घोषणा की गई, विधानसभा में हुई इतनी बड़ी कार्यवाही के बावजूद निलंबित अधिकारी कर्मचारियों ने चोरी छिपे अधूरे कार्यों को पूरा कराने का प्रयास शुरू कर दिया।
सवाल यह उठता है कि जब काम मनरेगा के तहत ही होना है और मनरेगा में मस्टररोल जारी करने पर प्रशासन ने रोक लगा रखी है। इसका मतलब मजदूरों ने कोई काम नहीं किया और जब मजदूरों ने काम नहीं किया तो काम कैसे हो सकता है। मामले में दूसरा पहलू यह है कि जब मनरेगा की तकनीकी टीम ने काम को तकनीकी रूप से अस्वीकृत कर दिया तो उसके ऊपर काम कैसे हो सकता है। इस मामले को लेकर पर्यावरण प्रेमी और सामाजिक कार्यकर्ता ने अंधा बांटे कुत्ता खाए की स्थिति बताया है। उन्होंने स्थानीय प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि विधानसभा में हुई इतनी बड़ी कार्यवाही के बाद कर्मचारियों पर एफआईआर करना था, लेकिन उन्हें सस्पेंड कर उन्हीं कर्मचारियों से काम लिया जा रहा है।
वहीं इस मामले पर वन मंडल अधिकारी से बात की गई तो उन्होंने कहा कि न तो वन मंडल स्तर से न ही कलेक्टर स्तर से किसी भी प्रकार का मस्टरोल या कोई भी पैसा रोक के बाद जारी किया गया, वही बिना मस्टरोल जारी हुए काम होने को लेकर वन मंडल अधिकारी का कहना है कि कर्मचारी इसके लिए सवतः जिम्मेदार हैं हालांकि उन्होंने इसे गंभीर अनियमितता भी स्वीकार किया है। इधर मरवाही विधायक चोरी छुपे काम पूर्ण कराने की बात को गंभीर मान रहे हैं। इसके साथ ही उन्होंने जांच की बात कही है। विधायक ने जनहित की इस तरह की योजनाओं में पारदर्शिता बरतने की भी बात कही है।
यह भ्रष्टाचार का अपने आप में अनूठा मामला है, जब विधानसभा में कार्यवाही की अनुशंसा भी की गई कर्मचारियों को निलंबित भी किया गया पर निलंबित कर्मचारी चोरी छुपे वन मंडल में काम करा लें और वन मंडल अधिकारी को इसकी जानकारी ही ना हो ऐसा होना कैसे संभव है? इसके अलावा, अगर काम करने के लिए मजदूरों का मास्टर रोल जारी नहीं हुआ तो काम किसने किया? जबकि मनरेगा में मजदूरों से काम होना है और भुगतान खाते में होना है तो मजदूरों को भुगतान किसने किया?