प्रांतीय वॉच

किसानी में भारी पड़ रहा महंगाई, खाद बीज से लेकर ट्रैक्टर भी खा रहा भाव

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( रोहित वर्मा )
खरोरा:______ मानसून के दस्तक देते ही खेती किसानी का काम चालू हो गया है। किसान धान की बोंवाई शुरू कर दिए है। लेकिन दिनों दिन बढ़ रही बेलगाम महंगाई किसानों के चेहरें की रौनक छीन ली है। कभी अल्पवर्षा, कभी खंडवर्षा तो कभी बदरा की दगाबाजी से हलाकान रहने वाले किसान इस साल महंगाई की मार से परेशान है। महंगाई से अन्नदाता की किस्मत दांव में तो है ही अब उनके उम्मीदों पर भी दरार पड़ने लग गया है। अंचल में मानसूनी बारिश के साथ खेतों में हलचल बढ़ गई है। किसान ट्रैक्टर से खेत की जुताई कर धान बोंवाई कर रहे है। रोपा रखने वाले किसान भी थरहा देनें का काम चालू कर दिए हैं। प्रदेश में चल रहे डीजल संकट के बीच भी ग्रामीण क्षेत्रों में ट्रैक्टरों की मारामारी देखने को मिल रही है। इस साल आठ सौ रूपए से लेकर नौ सौ रूपए प्रति घंटा ट्रैक्टर का किराया हो गया है। इसके बावजूद किसान ट्रैक्टर की बढ़े किरायों में भी ट्रैक्टर से ही बोनी करने मजबूर है। महंगाई का असर खेती किसानी पर पड़ने से गरीब तबके का किसान अब अधिया और रेगहा जैसी पुरानी परंपरा से दूर हो रहे हैं। तंग आकर किसान अपने खुद के ही खेतों में रूखा सुखा खेती कर जीवनयापन करने मजबूर हैं।किसान संतोष निर्मलकर का कहना है कि पहले से ही संकट झेल रहे किसान अब महंगाई की चौतरफा मार से घायल हो रहे है। ट्रैक्टर किराया, मजदूर, खाद, बीज, कीटनाशक दवा और पेट्रोल, डीजल के दामों में हो रहे बेतहाशा वृद्धि ने किसानों की बचत को कम कर दिया है। किसानी लागत में भारी भरकम बढ़ोतरी से किसान मायूस है। अनियंत्रित महंगाई से किसानों को प्रति एकड़ तीन से चार हजार रुपए अतिरिक्त खर्च करना पड़ रहा है। यानी बुवाई से लेकर मिंजाई तक करीब चालीस हजार रुपए प्रति एकड़ खर्च करना पड़ेगा। किसानों ने बताया कि इस साल खेती में डेढ़ से दोगुना तक ज्यादा खर्च करना पड़ रहा है।जिससे उन पर उधारी का बोझ बढ़ रहा है। तमाम तरह की विसंगति झेल रहे किसानों का किसानी से मोह भंग हो रहा है। मजबूरन वे खेती करना छोड़कर अन्य कामों की तरफ रूख कर रहे है। क्योंकि महंगाई बढ़ने से अब खेती में लागत ज्यादा और मुनाफा कम हो रहा है साथ ही उनकी रोजमर्रा की जिंदगी भी प्रभावित हो रही है।

बैल नांगर पद्धति विलुप्ति के कगार पर

आधुनिकता के चकाचौंध में परंपरागत बैल नांगर पद्धति अब विलुप्ति के कगार पर पहुंच गई है। खोजने पर भी बैल नांगर से खेती करते किसान दिख नहीं रहे है। ऐसे में ट्रैक्टर ही किसानों के लिए एकमात्र सहारा बन गया है। किसानों की मानें तो डीजल की कीमत में वृद्धि से इस साल अन्य साल की अपेक्षा खेती में खर्च ज्यादा करना पड़ रहा है। खेत की जुताई, मताई से लेकर कटाई मिजाई तक किसानों की जेब खाली हो जाती है। ऐसे में खरीफ सीजन की खेती किसी चुनौती से कम नहीं है। रोपा लगाने वाले श्रमिक मजदूर भी पैंतीस सौ से लेकर चार हजार रूपए प्रति एकड़ के हिसाब से ठेका ले रहे है। बांस नापा से रोपाई करने में समय और पैसा और भी ज्यादा लगता है। किसानी में अतिरिक्त खर्च करना मानों किसानों की नियति बन गई है।

*महंगाई का खेती पर पड़ रहा असर*

किसान विनोद वर्मा का कहना है कि महंगाई दिनों दिन बढ़ती जा रही है। महंगाई से खेती किसानी में अब पहले से ज्यादा खर्च आ रहा है। बिना कर्ज लिए अब खेती करना संभव ही नहीं है। चाहे रोपा पद्धति हो या बोनी दोनों में लागत ज्यादा आ रही है। कंपनियों की अधिकता से अब मजदूर भी नहीं मिल रहा है ऐसे में मजबूर किसान महंगा दाम देकर खेतों तक मजदूर लाने विवश है। किसान बल्ला पांडे़ ने बताया कि इस साल जैविक खाद की अनिर्वायता से किसान बेहद परेशान है। प्रति एकड़ तीन बोरी यानी 90 किलो जैविक खाद लेने पर ही रासायनिक खाद देने की सोसाइटियों की तुगलकी फरमान से किसानों में भारी आक्रोश व्याप्त है। किसानों का आरोप है कि ईट पत्थर मिलाकर जैविक खाद बेचा जा रहा है और खरीदी करने दबाव बनाया जा रहा है।

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