प्रांतीय वॉच

यहां मुर्गियों को दी जाती है विशेष सुरक्षा, जिसे जानकर आप हो जाएंगे हैरान

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Jagdalpur News : छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh)के बस्तर (Bastar)वैसे तो आदिवासियों की परंपरागत (tribal tradition)और उनके अनोखे तरीकों से हर कोई वाकिफ है। लेकिन आज आपको हम एक अनोखे तरीके से रूबरू करवाने जा रहे हैं। हम बात कर रहे हैं आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र की जहां बस्तर में ग्रामीण, खासकर आदिवासी समुदाय (tribal community)के लोग, पांरपरिक पद्धति से देसी कुक्कट पालन करते हैं।

यहाँ सदियों से पाई जाने वाली मुर्गी नस्लों में प्रमुख है देसी मुर्गियाँ आदिवासियों कि संस्कृति एवं जीवन शैली में मुर्गियों का एक विशिष्ट स्थान होता है। यह एक सर्वविदित तथ्य है कि अधिकांश गरीब परिवार मुर्गी पालन पर आंशिक निर्भरता रखते हैं।

यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि प्रदेश की कुल 81 लाख कुक्कट संख्या में लगभग 30% की संख्या देसी घरेलू मुर्गियों की है। आमतौर पर प्रत्येक आदिवासी परिवार में 5-10 मुर्गियां पाली जाती हैं। अप्रत्यक्ष रूप से यह आदिवासी गरीब परिवारों के लिए नियमित आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। रंगीन मुर्गी परिवेश में रंगों की अनुकूलता के करण शिकारी जानवरों एवं परभक्षी पक्षियों का शिकार होने से बच जाती है। आप तस्वीरो में घर पर एंगल में ढंके हुए कपड़ो की तरह इन लाल और अन्य कलर के कपड़ो को रस्सी के सहारे पेड़ के वृक्ष में हवा में ढंके हुए देख रहे होंगे। जब हमने देखा तो हमें लगा इसके पीछे के कारण को जाने।

हमने गॉव के ग्रामीण से रस्सी में ढंके कपड़ों को विशाल पेड़ के नीचे इस तरह ढंके जाने को लेकर सवाल किया तो उन्होंने बताया कि यह मुर्गियों की सुरक्षा में कपड़ो को इस तरह रस्सी डंडे के सहारे लटकाया गया है। मुर्गियों की सुरक्षा कर सके। यह अनोखा तरीका ग्रामीणों ने अपने घरों में पाले हुए मुर्गियों की सुरक्षा के लिये अपनाया है। दरसल इस विशाल वृक्ष में रात को मुर्गियां सोती हैं सोती हुई मुर्गियों का शिकार अक्सर शिकारी जानवर, जंगली बिल्लियां रात के अंधेरे में शिकार किया करते हैं। इस विशाल पेड़ पर मुर्गियां सोती हैं इनकी सुरक्षा के लिए यह कपड़ें रस्सी डंडे के सहारे हवा में लटकाए हैं। ताकि जंगली शिकारी जानवरों को यह लगे कि इंसान खड़ा है जिसके डर से उस पेड़ के नीचे नहीं आते ताकि मुर्गियां सुरक्षित तरीके से सो सके और इनका शिकार जानवर न कर सकें।

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