रायपुर वॉच

तिरछी नजर : मेयर-संसदीय सचिव ने बचाई कुर्सी

रायपुर स्मार्ट सिटी के अफसर आशीष मिश्रा समेत चार कर्मचारियों ने एमडी से झगड़े के बाद तैश मे आकर नौकरी से त्याग पत्र दे दिया था। ये सभी संविदा पर रहे हैं। एमडी ने अफसर का काला-पीला पकड़ लिया था। वो इस्तीफा स्वीकृत कर ही रहे थे कि कुछ दिन बाद उनका तबादला हो गया।

बताते हैं कि जीएम और अन्य ने अपनी नौकरी वापसी के लिए मेयर और संसदीय सचिव के समक्ष गुहार लगाई। ये सभी सेवा सत्कार में तो लगे रहते थे। संसदीय सचिव और मेयर की कोशिश का नतीजा यह रहा कि चारों की वापसी हो गई। सांसद सुनील सोनी ने केन्द्र सरकार को चि_ी लिख कर स्मार्ट सिटी में गड़बडिय़ों की जानकारी दी है। चुनावी साल में जांच शुरू हो सकती है। देर सबेर यहां की गड़बडिय़ों का सामने आना तय है। तब जीएम और अन्य लोग बच पाते हैं या नहीं, देखने वाली बात होगी।

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बिष्णु बने रहेंगे, दो कार्यकारी अध्यक्ष और?

प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदेव साय पद पर बने रहेंगे या नहीं, इसको लेकर पार्टी के भीतर बहस चल रही है। अंदर की खबर यह है कि साय अध्यक्ष बने रहेंगे। जबकि उनके सहयोग के लिए दो कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया जा सकता है। इनमें एक साहू समाज से होगा। साहूू समाज से कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर पिछड़े वर्ग में सबसे बड़ी आबादी वाले साहू मतदाताओं को साधने की कोशिश हो रही है। इसके लिए मोतीलाल साहू और बिलासपुर सांसद अरूण साव का नाम चर्चा में है। एक अन्य कार्यकारी अध्यक्ष पद के लिए नारायण चंदेल और संतोष पाण्डेय व विजय बघेल का नाम चर्चा में है। कहा जा रहा है कि विजय या चंदेल बने तो नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक को बदला जा सकता है। ऐसे में नेता प्रतिपक्ष के लिए अजय चंद्राकर को मौका मिल सकता है। यह सब बदलाव जल्द होने के संकेत हैं।

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बोधघाट ठंडे बस्ते में

भूपेश सरकार ने बोधघाट परियोजना को अंदरूनी तौर पर ठंडे बस्ते में डालने का फैसला ले लिया है। वैसे इस पर सार्वजनिक तौर पर कुछ नहीं कहा जाएगा लेकिन सरकार के रणनीतिकारों को आशंका है कि परियोजना के चलते बस्तर के कम से कम तीन विधानसभा पर पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है। सर्व आदिवासी समाज का एक तबका पहले ही इस परियोजना के खिलाफ चल रहा है। स्थानीय विधायकों ने भी सरकार को फिलहाल परियोजना का काम आगे न बढ़ाने की सलाह दी है। ऐसे में चुनावी साल में सरकार कोई जोखिम नहीं उठाना चाहती है। यही वजह है कि बोधघाट को ज्यों का त्यों छोड़ दिया गया है।

सहारा की जमीन की अलटी -पलटी

सहारा के निवेशकों को भले ही उनकी जमा राशि नहीं मिल पायी है लेकिन कंपनी की प्रापर्टी को बड़े कारोबारियों ने खरीद लिया है। एयर पोर्ट के पास ही सहारा ग्रुप ने सहारा सिटी बनाने के लिए करीब सवा सौ एकड़ जमीन खरीदी थी। यह हाऊसिंग प्रोजेक्ट अधूरा ही रह गया । कुछ महीने पहले सरकार के एक प्रभावशाली मंत्री के करीबी अरोरा उपनाम के और उनके साथियों ने 105 करोड़ में जमीन खरीद ली थी और अब इस जमीन के दूसरे खरीददार भी आ गये हैं। प्रदेश के एक सबसे बिल्डर और एक बड़े कोयला कारोबारी ने अरोरा और उनके साथियों से तीन चौथाई जमीन खरीद ली है। यह सौदा भी सवा सौ करोड़ के आसपास में होने की खबर है। सहारा के निवेशक भटक रहे हैं लेकिन कंपनी की प्रापर्टी को बेचकर कारोबारी मालामाल हो गये हैं। खास बात यह है कि बांकी चिटफंड कंपनियों की तरह सहारा की प्रापर्टी कुर्क करने की दिशा में कोई एक्शन नहीं लिया गया।

रेरा में रिटायर्ड जज को मौका

रेरा के सदस्य एनके असवाल का कार्यकाल खत्म हो गया है। नये सदस्य की नियुक्ति की कार्रवाई चल रही है। रेरा सदस्य का पद हाईकोर्ट जज के समकक्ष माना जाता है। वैसे तो सदस्य के लिए कई रिटायर्ड आई ए एस, और आई एफ एस अफसरों के नाम चर्चा में है मगर संकेत है कि इस बार सदस्य के रुप में किसी रिटायर्ड जज को मौका मिल सकता है।

 

पीडब्ल्यूडी में एक और ईएनसी का पद बना, तो प्रशासनिक जानकार चौंक गए। बताते हैं कि यह पद सिर्फ इसलिए बना है कि मौजूदा ईएनसी विजय भतप्रहरी की कुर्सी सलामत रहे। दरअसल, भतप्रहरी वरिष्ठता क्रम में काफी नीचे हैं। इसके बाद भी उन्हें ईएनसी बना दिया गया।

एक और ईएनसी का राज

भतप्रहरी के प्रमोशन को सबसे वरिष्ठ पीडी साय ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। कोर्ट ने साय की याचिका पर सरकार को नोटिस जारी किया था। जवाब न मिलने पर अवमानना नोटिस भी जारी किया। इसके बाद भतप्रहरी को बचाने की कोशिश शुरू हुई, और एक ईएनसी का पद और बना दिया गया। इसी बीच साय रिटायर हो गए। एक अन्य पद में के के पिपरी को ईएनसी बनाया जाएगा। जो कि साय के बाद आते हैं। कुल मिलाकर नया पद बनने के बाद ईएनसी पद पर पदस्थापना को लेकर विवाद शांत हो गया है। यह भी साफ है कि नया पद बनने के बाद भी मलाई भतप्रहरी के पास ही रहेगी।

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