जानिसार अख्तर/अम्बिकापुर/ प्रख्यात बाल मनोविज्ञान विशेषज्ञ डी के जैन का कहना है कि आज के मौजूदा सामाजिक परिवेश में बच्चों को सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों के शिक्षा की आवश्यकता अधिक है।देश में अधिकतर बच्चे दोहरे दबाब में जीने के लिए विवश है एक अविभावकों की आकांक्षा दूसरी तरफ स्कूली दबाब।इन दोनों के मध्य बच्चों का जीवन अवसाद और मायूसी को भेंट चढ़ रहा है।
जैन ने चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन की 80 वी ई कार्यशाला को संबोधित करते हुए यह बात कही।
जैन के अनुसार 400 साल की दासता के चलते हमारे अवचेतन में पाश्चत्य जीवन दृष्टि स्थाई रूप से घर कर गई है इसी कारण हमारे पारिवारिक वातावरण अंग्रेजियत की चाहना में बुरी तरह फंसे हुए है।
जैन ने कहा कि हमारी विरासत इतनी सम्रध है कि हमें जीवन मूल्यों के लिए किसी बाहरी दर्शन की कभी आवश्यकता नही पढ़नी चाहिये थी लेकिन पाश्चात्य जीवन की जकड़ ने हमारे दिमाग में अंग्रेजियत को इस कधर बशीभूत कर दिया है कि हम अपनी मूल संस्क्रति,संस्कार, और जीवन शैली को भूला बैठें है।श्री जैन ने कहा कि बच्चे अपने परिवार के परिवेश से ही सुग्राही होकर सीखते हैं।अगर हम अंग्रेजियत के लोभ में अपने माता पिता की सीख को अपनी मौजूदा पीढ़ी के लिए हस्तांतरण नही करते है तो इसका खामियाजा हमें खुद पारिवारिक रूप से उठाना पड़ेगा।
जैन ने कहा कान्वेंट कल्चर और भारतीय पारिवारिक परिवेश में बड़ा ही बुनियादी अंतर है।इस अंतर के बीच पिसते हुए बच्चों के मनोभावों को आज के अधिकतर अविभावक समझने का प्रयास नही करते है।
फाउंडेशन के सचिव डॉ कृपाशंकर चौबे ने कार्यशाला को सम्बोधित करते हुए कहा कि प्रतिस्पर्धी मस्तिष्क और अंग्रेजियत में निपुणता बेमानी है अगर बच्चा पारिवारिक मूल्यों को आत्मसात नही कर पाता है।किशोरावस्था में बढ़ती हिंसात्मक गतिविधियों के मूल में संस्कार न्यूनता की परिस्थिति ही जिम्मेदार हैं। चौबे के अनुसार अविभावकों का बच्चों के सामने कारित आचरण एक स्थायी पाठ होता है इसलिए जीवन मूल्यों और संस्कृति के सातत्य के लिए हमें खुद के आचरण मे अपनी सांस्कृतिक विरासत के प्रति गौरवबोध धारण करना चाहिये।
कार्यशाला में अतिथियों का आभार प्रदर्शन राकेश अग्रवाल कटनी ने किया।
ई कार्यशाला में बंगाल,यूपी,बिहार,उत्तराखण्ड,रा जस्थान,छतीसगढ़, हरियाणा के बाल अधिकार कार्यकर्त्ताओं ने भाग लिया।