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कवर्धा में बिगड़े हालात, सांप्रदायिक सदभाव जरूरी

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  • प्रशासन के समक्ष कानून-व्यवस्था बहाल करने और लोगों में शासन और प्रशासन के प्रति विश्वास बहाली करना बड़ी चुनौती है।

रायपुर: समाज के बीच ही कुछ असामाजिक तत्व भी सक्रिय रहते हैं। ऐसे तत्व मौका मिलते ही सामाजिक और सांप्रदायिक सदभाव को पलीता लगाने से नहीं चूकते। नतीजा यह होता है कि लोग भावावेश सही-गलत सब भूल जाते हैं। उन्माद की आग में कस्बा, गांव, शहर, जिला और प्रदेश तक जलने लगते हैं। कल-तक जो पड़़ोसी, मित्र, सहयोगी, सहपाठी और हमनिवाला थे, वे ही जान के दुश्मन बन जाते हैं। सरकारी और गैर-सरकारी संपत्तियां नष्ट कर दी जाती हैं या आग के हवाले कर दी जाती हैं। ऐसे तत्वों से सचेत रहने की आवश्यकता है। सामाजिक ताना-बाना मजबूत रहे इसके लिए सांप्रदायिक सदभाव जरूरी है।

गत रविवार को ऐसे असामाजिक तत्वों ने कबीरधाम जिले के कवर्धा शहर का माहौल खराब कर दिया। पिछले तीन दिनों से शहर सांप्रदायिक हिंसा की आग में झुलस रहा है। यहां एक संप्रदाय के चंद लोगों ने दूसरे संप्रदाय का झंडा हटाकर अपना झंडा लगा दिया। पुलिस को इस बारे में जानकारी हुई तो ऐसे तत्वों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई करने की बजाय आदतन लचर रवैया अपनाया। इसका परिणाम यह हुआ कि हिंसा भड़़क गई। वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने संयम से काम लिया।

विवाद को शांतकरने का प्रयास किया, लेकिन लोगों में पुलिस के खिलाफ गुस्सा बना रहा। जाहिर है लोग इस मामले में प्रशासन की कार्यप्रणाली असंतुष्ट और नाराज थे। स्थिति को नियंत्रण में करने के लिए लगाई गई धारा 144 बेअसर रही और मंगलवार को फिर हिंसा भड़क गई। मामले की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रशासन को कर्फ्यू लगाना पड़ा और तीन जिलों कवर्धा, बेमेतरा और राजनांदगांव में इंटरनेट सेवा तक बंद करनी पड़ी।

सांप्रदायिक हिंसा की इस आग की तपिश गांवों तक पहुंच गई। कवर्धा का मामला बहुत ही गंभीर और संवेदनशील है। पूरे मामले में स्थानीय पुलिस का रवैया गैरजिम्मेदाराना रहा। यह जांच का विषय है कि शहर में इस तरह की अप्रिय घटना की आशंका की जानकारी अगर पुलिस और प्रशासन को थी तो समय रहते उचित कदम क्यों नहीं उठाया गया।

फिलहाल इस मामले में प्रशासन के समक्ष तीन चुनौतियां है। पहला कानून-व्यवस्था को बहाल करना, दूसरा सांप्रदायिक हिंसा के लिएजिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई करना। उन लोगों पर भी कार्रवाई होनी चाहिए, जिन्होंने उदासीनता बरती और समय रहते कदम नहीं उठाया। ऐसे ही जिम्मेदारों के कारण प्रशासन पर पक्षपात का आरोप लगा।

तीसरी और अंतिम चुनौती दोनों संप्रदायों के लोगों में शासन और प्रशासन के प्रति विश्वास बहाली करना है। आशा की जानी चाहिए कि प्रशासन में बैठे जिम्मेदार लोग अपनी जिम्मेदारी समझेंगे और राज्य में इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति नहीं होगी।

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