प्रांतीय वॉच

अपने ही जमीन के लिए 15 वर्षों से दर-दर भटक रहे हैं ईश्वर एवं उनके परिवार

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  • न्यायालय के अधीन अटका है मामला
  • शासन प्रशासन का मिली भगत होने का आरोप 

तिलकराम मंडावी/डोंगरगढ़ । समीपस्थ ग्राम बिच्छीटोला का यह मामला है जहां पर अपने ही पूर्वजों के जमीन का मालिकाना हक तथा वर्तमान समय में कास्तकारी कार्य करते रहने के बाद भी जमीन में नाम न होने का दावा किया जा रहा है। ईश्वर सिंह का कहना है कि राजस्व रिकार्ड में 70 से 80 वर्षों से काबिज जमीन है जिसका साक्ष्य होने के बाद भी जमीन के राजस्व रिकार्ड में दर्ज तत्कालीन हिस्सेदारों को बिना सूचना, बिना किसी की उपस्थिति के हिस्सेदारी से नाम मिटा दिया गया। जिसका खाता क्रमांक 56 ऋण पुस्तिका क्रमांक सी.211271, खसरा नंबर क्रमशः 296, 64, 66, 282 कुल खसरा 4 रकबा 2.07, 0.64, 0.40, 0.51 एकड़ कुल रकबा 3.62 एकड़ सन 1961 से 1989 तक हिस्सेदार नानुक सिंह (परदादा) तथा मोहन सिंह (दादा) का नाम दर्ज था। फौत नामांतरण के बाद त्रिभुवन सिंह (पिता) एवं झाडू सिंह (चाचा) बतौर हिस्सेदार नाम दर्ज होना चाहिए था। किन्तु नम्बरदार प्रताप सिंह द्वारा तत्कालीन तहसीलदार एवं पटवारी से मिलीभगत कर अपने परिवार एवं चाचा परिवार के बीच फर्द बंटवारा करवा दिया गया तथा हमारे परिवार के हिस्सेदारों का नाम विलोपित करवा दिया गया। जबकि हमारे द्वारा उस समय उक्त जमीन पर न्यायालय के माध्यम से केस दायर कर स्टे लगा हुआ था। उसके बाद भी नामांतरण की कार्यवाही हुआ है तथा वर्तमान में श्रीमान् न्यायालय के अधीन कार्यवाही लंबित है, जिसके बाद भी उक्त जमीन को नम्बरदार द्वारा विक्रय हेतु ग्राहक खोजा जा रहा है। जो न्यायोचित नहीं है।
नम्बरदार प्रताप सिंह पिता प्रहलाद सिंह जो वसीयत नामा अपने पुत्र राजेश सिंह के नाम किया। पटवारी एवं तहसीलदार द्वारा वर्तमान किसान किताब के अनुसार राजेश सिंह का मालिकाना हक बताया जा रहा है। उक्त जमीन पर त्रिभुवन सिंह सुपुत्र चिन्तामणी सिंह एवं अन्य 10 का नाम दर्ज होना था।
जबकि ईश्वर सिंह का कहना है कि उक्त जमीन के मामले में श्रीमान् जिला दण्डाधिकारी, श्रीमान् राजस्व अधिकारी (एस.डी.एम.) व श्रीमान् तहसीलदार के समक्ष बार-बार आवेदन देने के बाद तथा आर.टी.आई. आवेदन में नामांतरण दस्तावेज पंजी की मांग किये जाने पर भी किसी प्रकार की जानकारी नहीं दिया गया एवं कार्यवाही नहीं किया गया। तत्कलीन तहसीलदार के समक्ष पुराना ऋण पुस्तिका साक्ष्य के रूप में दिखाये जाने पर तहसीलदार का कहना है कि इस प्रकार के कितने किसान किताब मैं बनवा सकता हूँ। क्या यह संभव है ?
इस प्रकार यदि भ्रष्टाचार, घुसखोर अधिकारी तथा मिलीभगत के चलते स्वयं के जमीन की पूरी दस्तावेज साक्ष्य होते हुए भी एक किसान अपने हक के लिए दर-दर भटक रहा है।

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