टीकम निषाद/देवभोग : अमूमन 90 दिवस के भीतर निलंबित कर्मचारियों को बहाल किया जाता है। बकायदा इसके लिए माननीय न्यायालय द्वारा सख्त आदेश भी जारी है। बावजूद इसके दीवान मुडा धान खरीदी समिति के दलित एवं पिछड़ा वर्ग के कर्मचारियों को 240 दिन बितने के बाद भी अब तक बहाल नहीं किया गया है। ऐसे में निलंबित कर्मचारी अपना परिवार के भरण पोषण में असक्षम होकर मानसिक प्रताड़ना का शिकार हो रहे हैं। गौरतलब हो कि दीवानमुड़ा समिति प्रभारी प्रबंधक नरेंद्र कुमार तांती और बारदाना प्रभारी नीलांबर बिसी को स्टंपिंग में लापरवाही बरतने को लेकर जिला अधिकारियों ने बीते 12 जनवरी को निलंबित कर दिया है। तब से लेकर आज तक बहाल की प्रक्रिया शुरू नहीं हो पाई है। हालांकि स्थानीय प्रबंधन द्वारा प्रभारी नीलांबर बीसी से प्रबंधक का काम लिया जा रहा है। जिससे किसी तरह परिवार चलाने में राहत मिल रही है। लेकिन दलित वर्ग से ताल्लुक रखने वाले नरेंद्र कुमार तांती की स्थिति पूरी तरह डामाडोल हो चुकी है। क्योंकि बीते 8 माह से वेतन का एक पैसा नहीं मिल पाया है। जिसके चलते नरेंद्र तांती को राशन सामग्री उधारी में लेकर परिवार का भरण पोषण करना मजबूरी हो गया। सिर्फ राशन सामग्री के लिए 60 हजार से ज्यादा का कर्ज लेने की बात कही जाती है। जिससे निजात पाने के लिए अनुविभागीय अधिकारी से लेकर मुख्यमंत्री तक अपनी गुहार लगा चुके हैं। मगर अफसोस की बात है कि निलंबित कर्मचारी को हर चौखट पर सिर्फ और सिर्फ दिलासा मिल रहा है। नरेंद्र की आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत भी नहीं की वह कलेक्टर मुख्य सचिव सहित मुख्य पंजीयक से मुलाकात कर पीड़ा को बता पाए । मगर स्थानीय अधिकारियों के समक्ष सप्ताह में अधिकांश दिन बहाल के लिए चक्कर लगाते हैं। लेकिन अपने हाथ में कुछ नहीं होना बताकर ऊपरी अधिकारियों के ऊपर डाल देते हैं। जबकि नरेंद्र कुमार की आर्थिक वस्तुस्थिति से अच्छी तरह अवगत हैं। बावजूद इसके बहाली के लिए कोई पहल नहीं हो पा रहा है। आश्चर्यजनक बात तो यह है कि निलंबित की प्रक्रिया को बरकरार रखने के लिए अब तक कोई ठोस कारण नहीं बताया है। जबकि नियमानुसार 90 दिन से अधिक समय तक निलंबित रखने के लिए ठस कारण होना अति आवश्यक माना जाता है। लेकिन विभागीय अधिकारियों को नियमों के विरुद्ध कर्मचारियों को निलंबित रखने का कारण निलंबित कर्मचारियों के अलावा आम लोगों के समझ से भी परे है।
240 दिन से निलंबित दलित पिछड़ा वर्ग के कर्मचारी बहाल नहीं जिम्मेदारों पर सवाल
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