सुनील नार्गव/मुंगेली : छत्तीसगढ़ का पारम्परिक त्यौहार हलषष्टी ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में श्रद्धा व उत्साह से मनाया गया। इस अवसर पर माताओं ने अपने संतान की लंबी आयु की कामना के लिए निर्जला व्रत रखी। इस पूजा में भैंस के दूध, दही घी तथा छः प्रकार के भाजी का भोग लगाकर विधिवत पूजापाठ किया गया। शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं व्रत रखकर अपने संतान कि सुख समृद्धी सफल जीवन की मंगल कांमना की वहीं परमहंस वार्ड की माताओं ने सगरी बनाकर उसमें जल डालकर पूजा अर्चना किया गया। वार्ड के सभी माताओं अंजना पांडे, ललिता जयसवाल, पूर्णिमा यादव, मीनू वर्मा एवं वार्ड की सभी माताओं ने पुत्र की लंबी आयु की कामना करते हुए हलषष्टि का पर्व मनाया। वहीं गांव में माताओं के द्वारा अपने घर के आंगन में ही सगरी बनाकर झरवेरी, ताश, पलाश की शाखाएं रखकर सुबह से ही महिलाएं उपवास रखकर दोपहर में सामूहिक रूप से श्रद्धाभक्ति एवं विधि-विधान से पूजा-अर्चना किया गया। चना, गेंहू, धान, अरहर, मूंग, मक्का, जौ एवं महुवा के साथ नारियल, वस्त्र एवं श्रृगार सामग्री चढ़ाकर हलषष्ठी की कथा सुनी। हलषष्ठी पूजा में भैंस के दूध, दही, घी तथा लाल रंग वाले पसहर चावल का अत्यधिक महत्व है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था लिहाजा एक तरह से यह श्री बलराम के जन्मोत्सव का त्यौहार भी माना जाता है। इस दिन बिना हल चले अनाज एवं सब्जी तथा मिट्टी जिससे छोटे रूप में दो तालाब बनाने का विशेष महत्व है। हलशष्ठी की पूजा में बिना हल चला अनाज ही चढ़ाया जाता है वहीं महिलाएं भी इस दिन बिना हल चले अनाज पसहर चावल तथा बिना काटी सब्जी जैसे भाजी को ही भोजन के रूप में ग्रहण करती हैं। क्षेत्र में हलशष्ठी पूजा धूमधाम से मनाया गया।
ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में श्रद्धा व उत्साह से मनाया गया हलषष्टी
