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छत्तीसगढ़ का पारंपरिक लोकपर्व भोजली को जिले के हर क्षेत्र में हर्षोल्लास से मनाया गया

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सुनील नार्गव/मुंगेली : छत्तीसगढ़ का पारंपरिक लोकपर्व भोजली को जिले के हर क्षेत्र में हर्षोल्लास से मनाया गया। आगर नदी पुल घाट पर देर शाम तक भोजली विर्सजन होते रहा। भोजली विसर्जन जुलूूस बाजे-गाजे के साथ नगर भ्रमण कर पुल घाट पर भोजली विर्सजन किया गया।

दोस्ती एवं मितान बदने का दिन– छत्तीसगढ़ी लोक पर्व भोजली दोस्ती करने एवं छत्तीसगढ़ में इसे मितान बदने का दिन भी कहते है। क्षेत्र में भोजली का विशेष महत्व है ग्रामीण क्षेत्रों में भोजली विसर्जन के पश्चात दोस्ती निभाने के लिए एक-दूसरे के लिए कानो में भोजली खोचकर मितान बदा जाता हैं। छत्तीसगढ़ का यह फ्रेंडशिप का त्यौहार परंपरागत रूप से दोस्ती निभाने का पर्व हैं।

विसर्जन के लिए निकली भोजली- जिला में भोजली उत्सव धूमधाम के साथ मनाया गया। मल्हापारा स्थित शंकर मंदिर से बच्चे, युवतियां एवं महिलाएं सिर पर भोजली लेकर निकली। भोजली जुलूस मेन रोड पुराना बस स्टैण्ड होते हुए आगर नदी पुल घाट पहुचीं। पुल घाट में भोजली का पूजा-अर्चना कर देवी गंगा-देवी गंगा लहर तुरंगा, जय हो देवी गंगा…… कहते हुए भोजली विसर्जन किया गया। दाऊपारा से भी जुलूस निकालकर पुलघाट पर भोजली विसर्जन किया गया।

मेले जैसा माहौल- पुलघाट पर भोजली विसर्जन के समय मेले जैसा माहौल था। बच्चों से लेकर सभी वर्ग के लोग पुलघाट पर उपस्थित थे। बाजे-गाजे एवं नए कपड़े पहनकर लोग उत्सव का आनंद लेते रहे। पुलघाट के दोनों ओर विसर्जन करने वालों की भारी भीड़ देखी गई।
ग्रामीण क्षेत्र का लोकप्रिय त्यौहार- रक्षाबंधन के दूसरे दिन ग्रामीण क्षेत्र का लोकप्रिय पर्व भोजली मनाया जाता है। खासकर गांवों में इस त्यौहार को लेकर विशेष उत्साह देखने को मिला। जहां बाजे-गाजे के साथ भोजली विसर्जित की गई। गांवों के अलावा शहर के कई घरों में बच्चियां, युवतियां लगभग 21 दिन पहले भोजली बोती हैं, जिन्हें रक्षाबंधन के दूसरे दिन विसर्जित किया जाता है।

सुख-समृद्धि का प्रतीक है भोजली- भोजली को छत्तीसगढ़ की सुख-समृद्धि हरियाली का प्रतीक माना जाता है। इसके वैज्ञानिक महत्व भी हैं। माना जाता है कि जब तक घर में भोजली है, तब तक वहां की आबो-हवा शुद्ध रहती है। भोजली वास्तव में गेहूं का पौधा है, जिसे सावन मास के दूसरे पक्ष की पंचमी से नवमी के बीच किसी पात्र में बोया जाता है। इस पौधे को सूर्य से बचाकर दीपक की रोशनी में रखा जाता है। हल्दी-पानी सींचकर भोजली के पौधे की देखरेख रक्षाबंधन के दिन तक की जाती है। इसके दूसरे दिन भोजली का विसर्जन पारंपरिक उल्लास के साथ किया जाता है।

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