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चिकित्सा दिवस पर डॉक्टरों को सम्मानित कर संसदीय सचिव विकास उपाध्याय ने कहा- डाॅक्टरों की सुरक्षा के लिए मजबूत कानून की जरूरत

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  • भारत में डाॅक्टर-मरीज का अनुपात दुनिया में सबसे कम, 01 लाख लोगों के लिए मात्र 90 डाॅक्टर: विकास उपाध्याय

रायपुर। संसदीय सचिव एवं विधायक विकास उपाध्याय आज राष्ट्रीय चिकित्सा दिवस पर विभिन्न चिकित्सकों को सम्मानित करते हुए उनकी सुरक्षा को लेकर एक मजबूत कानून बनाए जाने की पैरवी की है। उन्होंने कहा, कोरोना काल के बीच पूरे देश भर में अभी तक डाॅक्टरों पर 58 हमले हो चूके हैं, जो चिंता का विषय है। साथ ही उन्होंने कहा, विश्व बैंक के आँकड़ों के मुताबिक भारत में 01 लाख लोगों के लिए 90 डाॅक्टर उपलब्ध हैं जो अपेक्षा से बहुत कम हैं। उन्होंने स्वास्थ्य सेवाओं पर जोर देते हुए भारत में डाॅक्टर-मरीज के अनुपात को बढ़ाए जाने पर जोर दिया है।

विकास उपाध्याय आज राष्ट्रीय चिकित्सा दिवस पर चिकित्सकों को पृथ्वी पर मानवों का भगवान की संज्ञा दी है। उन्होंने आज के दिन को चिकित्सकों के नाम समर्पित करते हुए कहा, प्रख्यात समाज सेवी व स्वतंत्रता सेनानी भारत रत्न डाॅ. बिधान चन्द्र राय के स्मृति में आज के दिन को राष्ट्रीय चिकित्सा दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसकी शुरूआत कांग्रेस के शासन काल में 1991 में शुरू हुई थी। उन्होंने कहा, वर्तमान में कोविड-19 पूरी दुनिया के लिए खतरा बना हुआ है। इसे उबारने में देश के डाॅक्टरों ने अपना सबकुछ दाँव पर लगा दिया और सेवा भाव से लोगों के लिए काम किया। बावजूद इस काम में डाॅक्टरों पर देश के अनेक जगहों में कम से कम 58 हमले हुए, जो चिंता जनक है। इसके लिए मौजूदा कानून कारगर नहीं है, बल्कि एक मजबूत कानून की जरूरत है ताकि लोग ये समझें कि डाॅक्टरों पर हमला का बुरा परिणाम भुगतना पड़ सकता है।

विकास उपाध्याय ने कहा, भारत में डाॅक्टर और मरीज का अनुपात दुनिया में सबसे कम है। साल 2018 के विश्व बैंक के आँकड़ों के मुताबिक यहाँ 01 लाख लोगों के लिए 90 डाॅक्टर थे, जो चीन में 200, अमेरिका में 260 और रूस में 400 से कहीं कम हैं। सरकारों को इस दिशा में ठोस पहल कर डाॅक्टरों की नई भर्ती करनी चाहिये। उन्होंने कहा, महंगे ईलाज के बावजूद कोविड से हो रही मौतों से व्यवस्था पर विश्वास कमजोर हुआ है। साथ ही मीडिया में डाॅक्टरों की चुनौतियों की जगह ईलाज में लापरवाही की खबरें ज्यादा दिखाए जाने से भी लोगों के मन में शक पैदा हुआ है। इसके लिए उन्होंने डाॅक्टरों को सुझाव भी दिया कि उन्हें मरीज और उनके परिवार के साथ समय बिताना होगा ताकि ये समझा पाएँ कि हम क्या कर सकते हैं और क्या नहीं। इस बात को ध्यान देने की जरूरत है कि परिजनों की शिकायत सामान्यतः जो होती है, उनके मरीज को ठीक से ईलाज नहीं मिला, वक्त पर आईसीयू बैड नहीं दिया गया और डाॅक्टर ने वो सब नहीं किया जो जान बचाने के लिए जरूरी था और जब ये गुस्सा होने की शक्ल ले लेता है तो अस्पतालों में उसकी कोई तैयारी नहीं होती। इसे भी गंभीरता से लेने की जरूरत है।

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