प्रांतीय वॉच

आक्सीजन बढ़ानें में कारगार पीपल, बरगद, नीम जैसे पेड़ो को महत्व देने आध्यात्म से जोड़ा, रिटायर्ड षिक्षक ने 39 साल पहलें षुरू की पौधरोपण की मुहिम। अब तक 5000 से अधिक पौधे तैयार कर बांट चुके

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तिलकराम मंडावी/डोंगरगढ़ : जल को जीवन कहा गया है। तो वहीं पेड़ भी हमारी सांस है। दोनों के बिना हमारा जीवन कुछ भी नहीं है। आज भी लोग दोनों को बचानें के लिए गंभीर नहीं है। लेकिन कुछ ऐसे भी लोग है जिन्होंने अपनें जीवन का उद्देष्य अधिक से अधिक पौधरोपण करनें व करानें का लक्ष्य बना लिया है। हम बात कर रहे है मिसिया बाड़ा में रहनें वालें 67 वर्शीय रिटायर्ड षिक्षक बलवंत देवधर की। जिन्होंने अपनें जीवनकाल में 100 से अधिक पौधरोपण किया है। वे अब तक 5000 से अधिक पौधें तैयार कर निःषुल्क बांटे चुके है और यह सिलसिला आज भी जारी है। बलवंत देवधर ने षुरूआत से ही ऐसे पौधों को बढ़ावा दिया है, जिनसें हमें षुद्ध वातावरण व हवा मिलती है। आॅक्सीजन लेवल बढ़ानें में कारगार पीपल, बरगद व नीम जैसे पौधों को ज्यादा से ज्यादा तादात में रोपनें के लिए उन्होंने हर साल घर में ही पौधें तैयार करना षुरू किया। बारिष के पूर्व वे अपनें घर के आंगन में करीब 100-150 पौधे तैयार करतें है। जिसे वे समितियों व पर्यावरण प्रेमियों को निःषुल्क बांट देते है। लेकिन पौधा देनें से पहलें वे संकल्प जरूर करातें है कि पौधा लगानें के बाद वे करीब साल भर देखभाल व निगरानी अवष्य करें ताकि मेहनत रंग ला सकें। देवधर ने पौधरोपण की मुहिम 39 साल पहलें षुरू की थी। लेकिन विडंबना यह भी है कि बढ़ती आबादी व अतिक्रमण के चलतें उनके द्वारा लगाएं गए पौधे जो पेड़ बन चुके थे उनमें से कई कट गए।

पेड़ों को महत्व देनें आध्यात्म से जोड़ा- रिटायर्ड षिक्षक देवधर बतातें है कि पीपल, बरगद व नीम के पेड़ों को हिंदु धर्म में विषेश महत्व दिया जाता है। इन पेड़ों के नीचे ध्यान करनें से अलग ही अनुभूति व ज्ञान मिलती है। वहीं अन्य वृक्षों की तुलना में तीनों आॅक्सीजन लेवल बढ़ानें में ज्यादा सहायक है। 1982 में जब वे भिलाई में अपनें मामा को पीपल के पेड़ के नीचे ध्यान करतें देखा तो उन्हें वहां से प्रेरणा मिली और तब से वे भी पीपल, बरगद, गुलेर व नीम के पौधों का रोपण षुरू कर दिया।

वेस्ट से बेस्ट का फाॅर्मूला भी निकाल कर तैयार कर रहे पौधें- मिसिया बाड़ा निवासी बलवंत देवधर ने वेस्ट से बेस्ट का फाॅर्मूला अपनाया है और अपनें घर में हर साल करीब 150 पौधें तैयार कर रहे है। मां बम्लेष्वरी मंदिर में नवरात्र पर्व के दौरान जलनें वालें ज्योति कलषों को ट्रस्ट फेंक देती है। जिसे वे एकत्रित कर अपनें घर लाएं और कलष में मिट्टी डालकर गमलों की तरह उपयोग करके पौधा तैयार किया है। बारिष में सभी पौधों का रोपण षहर के अलग-अलग जगहों में किया जाएगा।

निर्माण के चलतें कट गए उनके लगाएं कई पेड़- बलवंत देवधर के लगाएं पीपल, बरगद व नीम के कई पौधें अब पेड़ बन चुके है। इनमें नीचे मंदिर के समीप स्थित विषालकाय पीपल पेड़ जिसे मंदिर सौंदर्यीकरण के दौरान कांटना पड़ा। इसे देवधर ने लगाया था। ऐसे ही कई जगहों पर निर्माण के चलतें आॅक्सीजन देने वालें पेड़ कांटने पड़ गए। लेकिन उन्होंने अपनें जीवन का उद्देष्य बना लिया है कि जब तक सांस चलेगी तब तक अधिक से अधिक पौधरोपण की मुहिम को जारी रखेंगे। देवधर ने बताया कि जून-जुलाई में पौधा लगानें 4 माह तक पानी देनें की जरूरत नहीं होती। लेकिन सुरक्षा को लेकर रोज वे पौधों को देखनें जातें है और 4 माह बाद पानी देना जरूरी हो जाता है।

देवधर से प्रेरणा लेकर मुहिम में ट्रस्टी ठाकुर भी जुड़े- मां बम्लेष्वरी मंदिर ट्रस्ट समिति के ट्रस्टी व पर्यावरण प्रेमी अजय सिंह ठाकुर भी देवधर से प्रेरणा लेकर उनकी इस मुहिम को आगें बढ़ानें में जुड़ गए है। अजय पाॅलीथिन के उपयोग को लेकर षुरूआत से ही विरोध में है। नवरात्र पर्व के दौरान वे दुकानदारों को इसका उपयोग न करनें के लिए प्रेरित करतें हुए मुहिम चलातें है। उन्होंने बताया कि रिटायर्ड षिक्षक से प्रेरणा लेकर वे भी अपनी टीम के साथ पौधरोपण के लिए

काम कर रहे है। देवधर के घर में तैयार पीपल, बरगद, गुलेर व नीम के पौधों को सुरक्षित स्थानों में लगानें की तैयारी है। आम की गुठलियों को मेन रोड किनारें फेकेंगे- गर्मी में आम की जमकर डिमांड रहती है। लेकिन लोग आम खानें के बाद गुठली (बीज) को कचरें में डाल देते है। लेकिन षिक्षक देवधर ने अपनें घर में आम की गुठलियों को एकत्रित करके रखा है। जुलाई में वे इन गुठलियों को मुख्य मार्ग के किनारें फेकेंगे ताकि पौधा तैयार हो और पेड़ बन सकें। उन्होंने बताया कि वे हर साल मेहनत कर रहे है, लेकिन कुछ असामाजिक तत्वों के द्वारा पौधों को नुकसान पहुंचा दिया जाता है।

 

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