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करोंना ने बदला खेती का तरीका,औषधीय फसल लेने लगें किसान

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संजय महिलांग/ नवागढ : कोरोना संक्रमण के मौजूदा दौर में खेती का तरीका भी बदलने लगा है। किसान धान के बजाय अब औषधीय फसल में भी रुचि लेने लगे हैं। नवागढ़ के युवा किसान किशोर राजपूत 5 एकड़ के रकबे में औषधीय पौधों की खेती की शुरुआत की है।अकेले 2एकड़ में शतावर लगाया है। 50 डिसमिल में चित्रक, 1 एकड़ में लेमनग्रास,1एकड़ में पाषाण भेद, खस 10 डिसमिल, और बाकी के रकबे में अन्य औषधियों की खेती की जा रही है। लिहाजा, रोहित श्रीवास्तव ने किशोर राजपूत से औषधीय पौधों को खरीदने का अनुबंध किया हैं।

कोरोना संक्रमण से बचने शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने की कवायद इन दिनों चल रही। इसी वजह से देश-दुनिया में औषधीय उत्पादों की मांग बढ़ गई है। अब करोंना संक्रमण के कारण किसानों का परंपरागत खेती के अलावा औषधीय और जड़ी-बूटियों की तरफ रुझान बढ़ा हैं। किशोर राजपूत ने संकट के इस दौर में समृद्घि की राह पकड़ ली है। बरसात में पीपली की खेती के लिए केरल से पिपली की बेलनुमा पौधे 2000 हजार पौधें और काली मिर्च के 1हजार पौधें ऑडर किया हैं जिसे खेत के मेड पर लगाएंगे पिपली इसी वर्ष तैयार हो जाएगी तथा काली मिर्च की फसल तीन साल में तैयार होगी। 2टन शतावर तैयार हो चुका है, चित्रक,सर्पगंधा, अश्वगंधा,लेमनग्रास पत्ती,तुलसी, पाषण भेद,चिया बीज,बच, कालमेघ(चिरायता), केवाँच, समेत अन्य औषधि बिक चुके हैं।

वर्तमान में एक एकड़ में 30 हजार की धान उपज होती है, इस हिसाब से औषधीय खेती में चार गुना अधिक लाभ होगा। फसल के लिए अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती। बारिश के पानी से ही यह फसल तैयार हो सकती है फसल विविधता के लिए औषधीय खेती की शुरुआत कृषि क्षेत्र के लिए अच्छा संकेत है।

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