प्रांतीय वॉच

अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के उदासीनता के चलते शीतल पेयजल के लिए जाने वाले कुआ के अस्तित्व पर मंडरा रहा है खतरा

  • कभी लोगों की प्यास बुझाने वाले कुएं बनते जा रहे हैं कचरा डालने की जगह पूजा पाठ में महत्व हुआ कम

यामिनी चंद्राकर/ छूरा :  विशेष रुप से हिंदू रीति-रिवाजों और धार्मिक मान्यताओं को पूरा करने के लिए कुओ की अनिवार्यता किसी से छिपी नहीं है लेकिन अब बदलते स्वरूप के साथ कुएं केवल कचरा डालने की लिए ही उपयोग में आ रहे हैं किसी जमाने में पेयजल के लिये सबसे अधिक प्रयोग में आने वाले कुआं के अस्तित्व पर ही अब संकट उत्पन्न हो गया है। अब लोग सुविधाभोगी हो गए हैं। रस्सी के सहारे बाल्टी से पानी का खींचा हबजाना अब लोगों को दुरूह लगने लगा है। अधिकांश लोग बोर और नल पर निर्भर हैं। शहर की बात तो दूर गांव में भी अब लोग चापाकल से भी दूर होकर सुविधा के लिये नल पर निर्भर होने लगे हैं। छूरा नगर सहित क्षेत्र के विभिन्न पंचायतों में अवस्थित दर्जनों कुआं मृतप्राय हैं। लेकिन इनके जीर्णोधार की ओर न तो जनप्रतिनिधि और न ही पदाधिकारियों का ही ध्यान जा जा रहा है। एक जमाने में कुआं जल संरक्षण का महत्वपूर्ण साधन था। तपती धूप में कुआं मुसाफिरों के लिए पानी पीने का बढि़या जरिया हुआ करता था। जानकारों की मानें तो कुआं में आयरन की मात्रा लेस मात्र भी नहीं होती है। लोगों की मानें तो फ्रिज युग से पहले कुआं के पानी को ठंडा जल का स्त्रोत माना जाता था। वहीं कपड़ा धोने के लिए भी लोग कुआं के पानी प्रयोग करते थे। वर्षो पहले लोग कुआं जनहित में खुदवाते थे। पूरे गांव के लोगों के लिए कुआं स्नान व पानी पीने के लिए महत्वपूर्ण साधन था। वहीं आज के जमाने में कुआं का अस्तित्व मिटते जा रहा है।सरकार द्वारा जनप्रतिनिधियों के माध्यम से जनहित में कई लाभकारी योजनाएं चलाई जा रही है। लेकिन इस ओर किसी का भी ध्यान नहीं जा रहा है। जिससे कुआं का अस्तित्व संकट में है। लोगों का कहना है कि पहले एक कुआं बनाने में हजारों रुपये खर्च होते थे, वहीं आज लाखों रूपये खर्च करना पड़ रहा है। समय रहते अगर अधिकारीयो एवं जनप्रतिनियो द्वारा ध्यान नही दिया गया तो वो दिन दूर नही की नगर सहित क्षेत्र के कुएं कचरा दान में तब्दील हो जाएगा अधिकारियो के उदासीनता के चलते छूरा नगर में ही कई कुए अपनी अस्तित्व खो चुके है जिसकी चिंता न ही अधिकारियों को है न ही जनप्रतिनिधियों को है। कुआं से जो मीठा पानी एक समय में गले की प्यास बुझाता था अब वह कचरा में तब्दील हो चुका है जिसके लिए जिम्मेदार कौन क्या अधिकारी व जनप्रतिनिधि को ये जीर्ण शिर्ण कुआ नजर नहीं आ रहा है या तो देखकर भी अनदेखा लिया जा रहा है। अगर यही हाल रहा तो वो दिन दूर नहीं की आने वाली पीढ़ी को कुआं क्या होता है बस किताबो और कहानियों में सुनने मिलेगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *