कमलेश रजक/ मुंडा : ग्रामीण अंचल के गांव कोरदा, डोंगरा, सरखोर, बरदा मुंडा कुम्हारी धाराशिव जुडा लाहोद सहित अन्य गांव में गुरुवार को छत्तीसगढ़ का पारंपरिक त्यौहार छेरछेरा मनाया गया। पर्व को लेकर इस वर्ष बड़े बुजुर्गों के अलावा खास कर बच्चों एवं लड़कियों में भी काफी उत्साह देखने को मिला। शहर क्षेत्र के लोग पर्व को ज्यादा रूचि नहीं लेते। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इस त्यौहार को बड़े धूमधाम से उत्साह पूर्वक मनाते हैं। इस दिन बच्चों से लेकर बड़े बुजुर्ग घर-घर जाकर छेरछेरा के रुप में धान मांगते हैं। लोग छेरछेरा के रुप में धान के साथ यथासंभव रुपए तथा चॉकलेट, घरों में बनाए पकवान भी देते हैं। यह पर्व फसल मिसाई के बाद खुशी मनाने से संबंधित है। पर्व में अमीरी गरीबी के भेदभाव से दूर एक-दूसरे के घर जाकर छेरछेरा मांगते हुए कहते हैं छेरछेरा माई कोठी के धान ल हेरहेरा। मान्यता है कि धान के कुछ हिस्से को दान करने से अगले वर्ष अच्छी फसल होती है। इसलिए इस दिन किसान अपने दरवाजे पर आए किसी भी व्यक्ति को निराश नहीं करते। प्राचीन काल में राजा महाराजा भी इस पर्व को मनाते थे। छत्तीसगढ़ में प्राचीनकाल से छेरछेरा पर्व की संस्कृति का निर्वहन होते आ रहा है। दिनभर अंचल में छेरछेरा के कारण एक ओर जहां बच्चों की टोली छेरछेरा मांगते दिखे। वहीं दूसरी ओर ग्रामीण भी उत्साह के साथ इस पर्व को मनाते देखे गए। छत्तीसगढ़ का लोक जीवन प्राचीन काल से ही दान परंपरा का पोषक रहा है। इसी परंपरा पर आधारित अन्नदान का महापर्व छेरछेरा पौष माह की पूर्णिमा को मनाया जाता रहा है। इस वर्ष भी 28 जनवरी को छेरछेरा के दिन सहित ग्रामीण अंचल में कूल देवताओं की पूजा अर्चना की गई साथ ही बिना भेदभाव के मालिक-मजदूर, छोटे-बड़े सभी ने एक दूसरे के घर जाकर छेरछेरा मांगे । दिन भर छेरछेरा हो छेरछेरा, कोठी के धान ल हेर हेरा की आवाज गूंजती रही लोगों ने भी खुश होकर अपनी-अपनी हैसियत के हिसाब से छेरछेरा मांगने वालों को अन्नदान किया।
अंचल में धूम धाम के साथ मनाया गया छेरछेरा का पर्व
