प्रांतीय वॉच

बिना-लेनदेन खाताधारक सहित एजेंट का होता नहीं काम,पोस्ट बाबू ऊपरी कमाई से हो रहे मालामाल

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ग्राम-पंचायत के “एसपी” की तरह कोटा पोस्ट-आफिस में भी “एपी” की भूमिका निभा रहे हैं,,,कुछ पोस्ट-आफिस एजेंट।

करगीरोड -कोटा | 22-जुलाई को सुबह के वक़्त हुई कोटा पोस्ट आफिस में खाताधारक-एजेंट-पोस्टमास्टर के तू-तू मैं-मैं के बाद हुए जोरदार हंगामे के बाद पोस्ट आफिस कार्यालय के अंदर व बाहर के तूफान के बीच मीडिया की एंट्री के कुछ देर बाद तूफान शांत होने के बाद खाताधारक को तो उसके रुपए मिल गए पर इस घटना के बाद दूसरे दिन अखबारों में खबरे सुर्खियां बनी रही वही दूसरे दिन पोस्टमॉस्टर जो कि हो-हंगामे वाले दिन काफी विनम्र थे-? पता नही किस कारण से विनम्र थे-? ये तो वही बता सकते हैं-? पर घटना के दूसरे दिन काफी नियम-कानून के प्रति सख्त दिखाई दिए पोस्ट-आफिस के दरवाजे पोस्ट-आफिस के एजेंटो के लिए लॉक कर दिया गया, एजेंट के लिए एक नियम-कानून का बोर्ड लगा दिया गया अधिकतर पोस्ट-आफिस एजेंट खिड़की की लाइन में लगकर रुपए जमा करते दिखाई दिए, इसके अलावा कुछ पोस्ट-आफिस एजेंट तो अपनी पत्नियों को लेकर रुपए जमा करने पहुचे जिसके बाद लगने लगा कि 22-जुलाई को हुई तकरार के बाद विनम्र रहने वाले पोस्टमॉस्टर साहब अचानक नियम-कानून को लेकर एजेंटो के प्रति कड़क हो गए, पोस्ट-आफिस का कार्यालय काफी अनुशासीत लगने लगा, पोस्ट मास्टर साहब जिस कुर्सी पर बैठकर घटना वाले दिन खामोश होकर हंगामा देखते रहे वही कुर्सी घटना के दूसरे दिन सवैधानिक हो गई, पहले भी थी पर घटना वाले दिन कुर्सी व कुर्सी में बैठने वाले साहब ने चुप्पी साध ली थी, घटना के दूसरे दिन ऐसा लगा की साहब की कुर्सी राजा विक्रमादित्य की सिंहासन बत्तीसी की कुर्सी हो गई, पोस्ट-आफिस के एजेंट भी घटना के दूसरे दिन व उसके बाद काफी विनम्र दिखाई दिए, पोस्ट-आफिस के अंदर व बाहर काफी शांति दिखाई पड़ी शांति व सदभाव के साथ व्यवस्था सुधार के पड़ताल के लिए सोमवार 27-जुलाई को “हरित-छत्तीसगढ़” सहित इलेक्ट्रॉनिक प्रिंट मीडिया के अन्य पत्रकार भी पोस्ट-आफिस कार्यालय पहुचे जहा पर सामने वाले टेबल पर परिवर्तन दिखाई दिया, हंगामे वाले दिन वाले सामने टेबल पर बैठने वाले पोस्ट मास्टर बीएल तिवारी की कुर्सी बदल चुकी थी, अब उस कुर्सी पर अधिकृत रूप अधिकारी के रूप में एस.के.मिश्रा जी विराजमान थे, थोड़ा समझने में भी दिक्कत हुई कि घटना दिन वाले दिन अधिकृत-अधिकारी बीएल तिवारी अचानक आनाधिकृत कैसे हो गए-? जबकि घटना वाले दिन वो नियमो के तहत कार्यवाही करने की बात कर रहे थे-?या शुरू से ही अधिकृत-अधिकारी के रूप में एस. के. मिश्रा जी ही थे, तो घटना वाले दिन अनाधिकृत-अधिकारी बीएल तिवारी अधिकृत कैसे हो गए-? ऐसी क्या आवश्यकता आन पड़ी की बी.एल. तिवारी को उस कुर्सी पर बैठना पड़ा या फिर बैठा दिया गया ये टेबल-टेनिस का खेल भी पाठकों को आगे समझ आने लगेगा।

खाताधारक के रुपए निकालने को लेकर एजेंट व पोस्टमास्टर के बीच हुए हो हंगामे के दिन एस.के.मिश्रा जी जो कि दूसरे टेबल पर बैठकर मामले को संभालने में लगे हुए थे, मामला शांत करने में लगे हुए थे, जिस पर मीडिया के लोगो के पहुचने पर पोस्टमॉस्टर की टेबल व कुर्सी की अदला-बदली हो चुकी थी, पहला ये परिवर्तन दिखाई दिया, दूसरा परिवर्तन ये दिखाई दिया, पहले की अपेक्षा जो कार्य रुक-रुककर होते थे उसमे आज तेजी दिखाई दी, पोस्टमॉस्टर साहब काम को लेकर काफी गंभीर दिखाई दिए, पर जब कुर्सी बदली दिखाई दी तो मीडिया-कर्मियों ने इसका कारण पूछा, जिस पर बी.एल.तिवारी कुछ देर खामोश दिखाई दिए, दुबारा जोर देकर पूछने पर उन्होंने अधिकृत-अधिकारी का आदेश बताया, फिर अधिकृत-अधिकारी के बारे में पूछा गया तो, पता चला कि अधिकृत-अधिकारी तो एस के मिश्रा जी है, जिसके बाद एस.के. मिश्रा जी से सवाल दागा की तब और अब का क्या मतलब है- जब अधिकृत अधिकारी आप थे तो,अनाधिकृत अधिकारी को घटना वाले दिन क्यो बैठा दिया गया-?जिसके बाद अधिकृत अधिकारी ने उच्च अधिकारियों के निर्देशों का हवाला दिया गया, उसके बाद पोस्ट आफिस से जुड़े गतिविधियों के बारे में खाताधारकों सहित पोस्ट आफिस के एजेंटो के क्रियाकलापों-खाताधारकों की पोस्ट आफिस से संबंधित शिकायतों के बारे में सुधार के बारे में पूछा गया तो, अधिकृत-अधिकारी ने सवाल को टालते हुए कहा कि मैं काउंटर कार्य मे थोड़ा व्यस्त हु, कृपया इसके लिए अलग से किसी समय किसी दिन आपसे बात करूंगा, जिसके बाद मीडिया कर्मियों ने पुनः निवेदन करते हुए कहा कि 2 मिनट में बात खत्म हो जायेगी, जिसके बाद अधिकृत-अधिकारी ने मीडिया-कर्मियों से आवेदन मांगा गया-? ये पहली बार हुआ कि किसी विभाग के अधिकृत अधिकारी के द्वारा मीडिया कर्मियों के सवाल का जवाब देने के लिए मीडिया-कर्मियों से आवेदन मांगा गया-? जिसके बाद “हरित छत्तीशगढ़ सवांददाता” ने अधिकृत-अधिकारी से कहा कि आपसे सूचना के अधिकार के तहत जवाब नही मांगा जा रहा है, वर्तमान में हुई घटना की पुनरावृत्ति न हो इसके लिए व्यवस्था सुधार से संबंधित सवाल के जवाब आपसे मांगा जा रहा है, जिसके बाद अधिकृत अधिकारी ने कुछ सवालों पर जवाब दिया कुछ पर खामोश रहे, कुछ सवालों पर उच्च-अधिकारियों का हवाला देते हुए सवालो से बचने की कोशिश की गई, कुछ पोस्ट आफिस एजेंटो की कार्यप्रणाली पर सवाल सहित विभागीय सवाल भी किए गए, पर सवालो की बौछार देखते हुए अधिकृत अधिकारी एस.के.मिश्रा ज्यादातर बुनियादी व सुलगते सवालो के जवाब देने से बचते रहे।

पोस्ट आफिस कार्यालय कोटा कि वर्तमान-कार्यप्रणाली सहित पोस्ट आफिस में कुछ पोस्ट आफिस एजेंटो के वर्तमान क्रियाकलापों के बारे में पोस्ट आफिस के अधिकृत अधिकारी जो कि काफी सारे सुलगते सवालो का जवाब नही दिए, जिसके बाद वर्तमान अधिकृत अधिकारियों सहित कुछ पोस्ट आफिस एजेंटो की भूमिका संदिग्ध दिखाई पड़ती है, इस पूरी घटना के बाद सूत्रों के हवाले से कुछ खाताधारकों ने नाम नही छापने की शर्त पर बताया कि कुछ गरीब-मजदूर वर्ग चना-मुर्रा, फल दुकान खाताधारकों के खाते जो कि शुरुआत में कुछ महीने तक ही जमा कर पाते हैं, आगे जमा नही कर पाते ऐसे खाताधारकों के रुपए कुछ तथाकथित एजेंटो के द्वारा डुबान के नाम पर डकार लिया जाता है, कुछ खाताधारकों के खाते तो 5 साल तक नही खोले जाते, अगर कोई जागरूक खाताधारक खाते देखने की मांग कर बैठा तो, कुछ तथाकथित पोस्ट आफिस एजेंटो को ऐसा लगने लगता है, मानो उस खाताधारक ने उसके स्विस बैंक के खाते का न. मांग लिया हो, अंततः टालमटोल करते हुए खाताधारक को खाता नही दिखाया जाता-?कुछ तथाकथित पोस्ट आफिस एजेंटो पर पोस्ट आफिस के सील-मुहर रखने का भी आरोप लग रहा है,जो कि ज्यादा जागरूक खातेदार के मांगने पर सील मुहर मार कर घर से ही दे देते हैं, इस बारे में जब पोस्ट-आफिस के अधिकृत अधिकारी से पूछने पर अधिकारी के द्वारा भी चुप्पी साध ली गई-? अधिकृत-अधिकारी का अधिकांश बुनियादी सवालो पर मौन रहना, इस बात का भी संकेत है, कि कही न कही कुछ तथाकथित एजेंटो को अधिकृत अधिकारी का मौन-समर्थन प्राप्त है, जिसके कारण ये तथाकथित पोस्ट आफिस एजेंट धड़ल्ले से इस काम को अंजाम दे रहे हैं, साथ ही मेहनत-मशक्कत से जमा की जा रही खाताधारकों के रुपयों की मियाद खत्म हो जाने के बाद भी 1-से 2 माह के बाद खाताधारकों को दी जाती है, इसकी जानकारी कहि न कही संबंधित-विभागीय-अधिकारी को भी है,ऐसे ही अधिकृत-अधिकारी ऊपरी कमाई से लालमलाल नही हो रहे हैं, इसके अलावा सूत्रों के हवाले से ये भी खबर निकलकर सामने आई है, कि कुछ पोस्ट आफिस के एजेंट विभागीय अधिकारियों के रिश्तेदारी में भी आते हैं, जिसकी जानकरी कोटा पोस्ट आफिस के वर्तमान अधिकृत अधिकारी एस.के.मिश्रा से भी ली गई जिसका उन्होंने एक सिरे से खारिज करते हुए इंकार कर दिया, कोटा पोस्ट आफिस का इतिहास काफी पुराना रहा है, शुरुआत में ये पोस्ट आफिस पुराना बस स्टैंड के मेन रोड में हुआ करता था, जिसके कुछ वर्षों के बाद ये नए बस स्टैंड में ट्रांसफर हो गया, इससे पहले कभी भी इस प्रकार की बाते सुनाई नही देती थी, अधिकांश खाताधारकों को पोस्ट आफिस के कार्यप्रणाली पर कभी संदेह नही हुआ पर वर्तमान स्थिति में हम जितना डिजिटल होते जा रहे हैं, उतने ही उपभोक्ताओं के भरोसे को कमजोर कर रहे हैं, इस प्रकार की घटना से खाताधारकों में पोस्ट आफिस के साथ-साथ पोस्ट आफिस एजेंटो के तौर पर कार्य करने लोगो पर भी भरोसा कमतर होता जाएगा जो कि ठीक बात नही है, खाताधारकों के साथ पोस्ट आफिस के संबंधित अधिकारियों व एजेंटो का विश्वास बना रहे इसके लिए व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता के साथ साथ नियम कानून भी कड़े करने होंगे।

पोस्ट-आफिस में हुए इस प्रकार की घटना के बाद कोटा नगर के बुद्धिजीवी वर्ग, समाजसेवी सहित राजनीतिक दलों के नेताओ ने भी आपत्ति जताते हुए अपनी प्रतिक्रिया दी है, कोटा नगर कांग्रेस अध्यक्ष के तेजतर्रार नेता देवेंद्र कश्यप (कमलू) ने वर्तमान पोस्ट आफिस के अधिकृत-अधिकारियों की कार्यप्रणाली सहित पोस्ट आफिस के कुछ तथाकथित एजेंटो के तौर पर कार्य करने लोगो पर सवालिया निशान उठाते हुए कहा कि इससे पूर्व में भी पोस्ट आफिस में खाताधारकों के खाते के लेनदेन में गड़बड़ी हो चुकी है, पूर्व की घटनाओ का जिक्र करते हुए नगर कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि वर्तमान में कुछ तथाकथित पोस्ट आफिस एजेंट के द्वारा 5 वर्ष तक रोजाना राशि लेने के बाद भी खाता नही खोला गया था, ये जानकारी 5 साल पूर्ण होने पर मिला, इसके अलावा बस स्टैंड के एक फल विक्रेता के जानकारी के बगैर उसके खाते से राशि निकाल ली गई थी, जिसकी जानकारी बाद में हुई, इसके अलावा बस स्टैंड के ही एक मोबाइल विक्रेता के 5 वर्ष पूर्ण होने के 2-महीने बाद राशि प्रदान की गई, जिसकी शिकायत पोस्ट आफिस के विभागीय अधिकारियों से की गई, वर्तमान में पोस्ट आफिस के क्रियाकलापों से खाताधारकों का पोस्ट आफिस के प्रति विश्वास कम होते जा रहा है, और इस पूरे मामले में कहि न कही पोस्ट आफिस के पोस्टमॉस्टर की भी भूमिका संदिग्ध है, ऐसा कैसा हो सकता है, की पोस्ट आफिस का कार्य करने वाले कुछ तथाकथित एजेंटो कि कार्यप्रणाली की जानकारी विभागीय-अधिकारियों को न हो कहि न कहि इसमें लंबा लेनदेन का मामला है, जिसका इसमे पोस्ट आफिस के इंस्पेक्टर सहित उच्च अधिकारियों को निष्पक्ष जांच करना चाहिए साथ ही कुछ ही वर्षो में फर्श से अर्श तक पहुचने वाले विभागीय अधिकारियों सहित पोस्ट आफिस के तथाकथित एजेंटो की संपत्ति की भी जांच होनी चाहिए की इतने कम समय मे इतनी संपति कहा से आ गई, या फिर पोस्ट आफिस के विभागीय अधिकारियों सहित पोस्ट आफिस एजेंटो को अलादीन का चिराग मिल गया है,जिसको ये रोज-के-रोज घिस रहे हैं।

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