प्रांतीय वॉच

रासायनिक उर्वरक के बदले पैरा को बनाया खाद,लागत घटा जहर मुक्त कर रहे खेती

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  • किशोर राजपूत के नवाचार से रसायनिक खादों के प्रयोग से मिली मुक्ति

संजय महिलांग/नवागढ़ : वर्तमान समय में खेती में बढ़ती लागत और घटती जल किसानों के लिए सबसे बड़ी समस्या है।इस विकट समस्या का समाधान नवाचार करके दूर कर सकते हैं ।इसका ताजा उदाहरण नवागढ़ के प्रगतिशील युवा किसान किशोर कुमार राजपूत हैं।जिन्होंने धान के पैरा को खेत में सड़ाकर धान की रोपाई कर एक पंथ दो काज कर दिखाया है।

किशोर कुमार राजपूत बताते हैं कि रबी के सीजन में धान की फसल लेने के बाद किसान अवशेष को आग लगा देते है, आग से खेत मे उर्वरा शक्ति कम होती हैं।इस बार अवशेष जलाने के बजाय खेत में प्लाऊ के माध्यम से गहरी जुताई कर एक सप्ताह के बाद रोटोवेटर चलाकर उसे जमीन में ही नष्ट कर दिया।बारिश होने के बाद वही धान के पैरा धीरे धीरे डिकम्पोज होकर वर्तमान खड़ी धान की फसल को नाइट्रोजन एवं कार्बन देता हैं।जिससे धान की फसल बगैर रासायनिक खाद के बढ़ता रहता है।और रोग मुक्त रहता है।

दूसरे किसान भी हो रहे नवाचार से प्रेरित

इस नवाचार को करने वाले युवा किसान किशोर कुमार राजपूत ने खेती में होने वाले खर्च को बचत करने की विधि विकसित की हैं।इस तकनीक से खेती करने पर रसायनिक खाद पर होने वाले खर्च उन्हें वहन नहीं करना पड़ा।इस प्रयोग को देखकर अन्य किसान भी इस तरह के खेती करने प्रेरित हो रहे हैं।

जमीन की उर्वरा बढ़ती है फसल के अवशेष से

पैरा को फसल खेत में मिला देने से जैविक खाद बनकर सभी 16 प्रकार के पोषक तत्व बढ़ाकर जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ा देता हैं। 16 पोषक तत्व क्रमशः 1. हवा से 3 प्राप्त होते है – कार्बन , हाइड्रोजन, ऑक्सीजन
2. मुख्य पोषक तत्व (3) – नाइट्रोजन, पोटाश, फॉस्फोरस .
3. माध्यमिक पोषक तत्व 3 – कैलशियम, मैगनेशियम, सल्फर
4. माइक्रोन्यूट्रिएंट 7 – फेरस, जिंक, बोरोन, क्लोरीन, कॉपर, मोलिब्डेनम, मैंगनीजहोता
हैं जो पौधौ की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती हैं। जिसकी वजह से फसल पर बीमारियों का प्रकोप नही फैलता।

आग लगाने से जमीन में पाए जाने वाले सूक्ष्म जीवी नष्ट हो जाते हैं

फसल कटाई के बाद जो अवशेष खेतो में ही रह जाता हैं किसान उसे आग लगा देते है जिससे जमीन के अंदर रहने वाले करोड़ों सूक्ष्म जीव नष्ट हो जाते हैं।जिससे धीरे धीरे जमीन बंजर हो जाता हैं, इसलिए खेतों में अधिक मात्रा में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करना पड़ता हैं जो जल,जंगल, जमीन, और वनस्पति, जीव जंतु सबके लिए नुकसानदेह साबित हो रहा है।

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