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जैविक खाद के प्रयोग से भूरा माहो नियंत्रित करने किशोर ने किसानों से की अपील

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  • भूरा माहों लम्बी अवधि की धान में दिख रहा है

संजय महिलांग/नवागढ़/बेमेतरा : मध्यम से लम्बी अवधि की धान में इस समय भूरा माहो का प्रकोप दिख रहा है। जो कि वर्तमान समय में वातारण में उमस 75-80 प्रतिशत होने के कारण भूरा कीट के लिए अनुकूल हो सकती है। धान फसल को भूरा माहो से बचाने के लिए नवागढ़ के युवा प्रगतिशील किसान किशोर कुमार राजपूत ने जिले के किसानों को सलाह दी और अपील की है कि वे सलाह पर अमल करे

भूरा माहो का प्रकोप गोल काढ़ी पत्ते होने पर ही होता था

खेत में भूरा माहो कीट प्रारम्भ हो रहा है, इसके प्रारम्भिक लक्षण में जहां की धान घनी है, खाद ज्यादा है वहां अधिकतर दिखना शुरू होता है। जिसमें अचानक पत्तियां गोल घेरे में पीली भगवा व भूरे रंग की दिखने लगती है व सूख जाती है व पौधा लुड़क जाता है, जिसे होपर बर्न कहते हैं, घेरा बहुत तेजी से बढ़ता है व पूरे खेत को ही भूरा माहो कीट अपनी चपेट में ले लेता है। भूरा माहो कीट का प्रकोप धान के पौधे में मीठापन जिसे जिले में गोल काढ़ी आना कहते हैं तब से लेकर धान कटते तक देखा जाता है। यह कीट पौधे के तने से पानी की सतह के ऊपर तने से चिपककर रस चूसता है।

भूरा माहो क्या है

भूरा माहो को अंग्रेजी में बीपीएच ब्राउन प्लांट हार्पर या हिंदी में भूरा फदका भी कहा कहा जाता है। इस कीट की अंडा, शिशु व प्रौढ़ तीन अवस्था होती है। शिशु व प्रौढ़ दोनों अवस्था धान के पौधे के तने से रस चुसकर बहुत तेजी से फसल को नुकसान पहुचाती है। साल में इसकी 5 से 8 पीढिय़ा पाई जाती है एक कीट का जीवन चक्र 28 से 33 दिनों का होता है। शिशु का रंग मटमैला भूरा, वहीं प्रौढ़ का रंग हलका भूरा होता है। प्रौढ़ की तुलना में शिशु तेजी से पौधे का रस चुसता है। भूरा माहो कीट सीधा नहीं चलता है, तिरछा फुदकता है। इसके मलमूत्र पर फफूंद पैदा होती है व कई बार तना गलन बीमारी भी आ जाती है।

भूरा माहो नियंत्रण के उपाय

भूरा मोहो के शस्य नियंत्रण के लिए सलाह दी गई है कि खेतों में फसल के अवशेषों व खरपवारों को नष्ट करें और खेतों में पक्षी के बैठने के ठिकाने बनाएं। कीट के उग्र रूप धारण करने पर खेतों से पानी निकाल दें। देशी नियंत्रण के तहत घर व आसपास उपलब्ध गौमुत्र में जंगली तुलसी नीम, सीताफल, गराड़ी, बेशरम, धतुरा, बेल, इत्यादि की पत्तीयों को काटकर लगभग 20 दिन सड़ाए और हो सकें तो इसमें मिर्च व लहसून भी मिलाएं व फसल में प्रारम्भ से ही स्प्रै करते रहें। जैविक नियंत्रण के तहत खेत में मकड़ी, मिरीड बग, डेमस्ल फ्लाई, मेढक, मछली का संरक्षण करें जो इस कीट के प्रौढ़ व शिशु को शुरूआत में ही भक्षण करते हैं। नीम का तेल 2500 या ज्यादा पीपीएम वाला एक लीटर प्रति एकड़ की दर से हींग मिलाकर सुरक्षात्मक रूप से या कीट प्रारम्भ होते ही छिड़काव करें।

रासायनिक नियंत्रण के लिए

रासायनिक नियंत्रण के अंतर्गत बाजार में बहुत सी दवा उपलब्ध है। परन्तु दवा का उपयोग बहुत ही सोच समझकर करें क्योंकि इस कीट में दवा के प्रति बहुत जल्दी प्रतिरोधकता आती है। दवा का छिड़काव करने के पूर्व खेत में बांस की सहायता से निश्चित दूरी में धान के पौधे को लगाकर रास्ता बनाएं ताकि दवा पौधे के तने पर आसानी से पड़े और खेत में दवा के स्प्रै से कुछ भाग छुट ना पाएं। क्योंकि वहां के बचे कीट अपनी संख्या बहुत तेजी से बढ़ाते हैं।
इनमें से कोई एक दवा किसी भी कान्टेक्ट इन्सेक्टिसाइड के साथ मिलाकर डाल सकते हैं, जैसे इमिडाक्लोपिड, थायोमेथाक्जाम, बुपरोफेजिन की निश्चित मात्रा का छिड़काव करें। फफूंद होने की दवा के मिला कर कोई भी एक फफूंदी नाशक जैसे प्रोपिकोनोजाल या हैक्साकोनाजोल को संधि में डाल सकते हैं।
किसानों से अपील किया गया है कि वे दवा का पक्का बिल ले, खेत में दवा डालने वाले का पेट भरा हो। हवा की दिशा में दवा डाले और मुंह में कपड़ा अवश्य बांधे। दवा का छिड़काव करते समय पूरे कपड़े पहने रहे ।

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