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नक्सलियों ने केंद्र व राज्य सरकार पर लगाए कई बड़े आरोप: कहा- प्राकृतिक संसाधनों को बेचने का CM ने किया सौदा

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  • बोधघाट और रावघाट परियोजना से बर्बाद होंगे 28 गांव; नष्ट हो जाएंगे 1.14 करोड़ पेड़

जगदलपुर : नक्सलियों के दरभा डिवीजन कमेटी के सचिव और प्रवक्ता साईनाथ ने केंद्र व राज्य सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। साईनाथ ने प्रेस नोट जारी कर कहा कि सरकारें सार्वजनिक उपक्रमों को देश-विदेश के कॉरपोरेट घरानों को सौंपने में लगी हुई हैं। छत्तीसगढ़ के CM भूपेश बघेल राज्य के कई बेशकीमती प्राकृतिक संसाधनों को बेचने के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ सौदा कर चुके हैं। यह जनता के हित में नहीं है। बस्तर में प्रस्तावित बोधघाट व रावघाट परियोजना आदिवासियों के लिए विनाशक है। नक्सलियों का दावा है कि इंद्रावती नदी पर प्रस्तावित बोधघाट परियोजना से बस्तर के लगभग 1.14 करोड़ पेड़ नष्ट हो जाएंगे। यहां के 28 गांव भी पूरी तरह बर्बाद हो जाएंगे। जिस इंद्रावती नदी को बस्तर की जीवनदायिनी कहा जाता है वह भी पूरी तरह विलुप्त हो जाएगी। नक्सलियों ने कहा है कि इस परियोजना के शुरू होने से लाखों आदिवासियों को विस्थापित होना पड़ेगा। रावघाट परियोजना भी बस्तर के आदिवासियों को बर्बाद कर देगी। नक्सलियों ने इन दोनों परियोजनाओं को बंद करने को भी कहा है।

पेसा कानून के उल्लंघन करने का भी लगाया आरोप

नक्सलियों ने सरकार व पुलिस प्रशासन पर पेसा कानून के उल्लंघन का भी आरोप लगाया है। नक्सलियों का कहना है कि ग्रामीणों के विरोध के बाद भी उनकी जमीन पर सरकार व पुलिस प्रशासन कैंप स्थापित कर रही है। साथ ही मुठभेड़ के नाम पर निर्दोष ग्रामीणों को मार रहे हैं। नक्सलियों ने प्रेस नोट में सिलगेर कैंप का भी जिक्र किया है। नक्सलियों का कहना है कि सिलगेर में स्थापित पुलिस कैंप को हटाने के लिए आज भी ग्रामीण अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हुए हैं, लेकिन सरकार उनकी मांगों को नहीं मान रही है।

बोधघाट सिंचाई परियोजना?

वर्ष 1979 में पहली बार केंद्र सरकार ने बस्तर में इंद्रावती नदी पर बोधघाट हाइड्रो पावर परियोजना को मंजूरी मिली थी। यह बांध जगदलपुर से करीब 100 किमी दूर दंतेवाड़ा जिले के बारसुर के पास बनना था। 1980 में नया वन कानून लागू होने पर परियोजना को नए सिरे से अनुमतियों की जरूरत पड़ी। 1985 में इसके लिए फिर हलचल शुरू हुई, लेकिन स्थानीय आदिवासियों के विरोध के चलते इसका काम रुक गया। सरकार ने 2018 में इस पर काम शुरू किया। 2020 के बजट में सरकार ने इसको हाइड्रो पावर के साथ सिंचाई परियोजना बनाकर बजट आवंटित किया। इस परियोजना पर 22635 करोड़ रुपए खर्च होने हैं। सरकार का दावा है कि इस परियोजना से लगभग 3,66,580 हेक्टेयर में सिंचाई और 300 मेगावाट बिजली उत्पादन होगा। कुछ समय पहले ग्रामीणों ने भी इस परियोजना का विरोध किया था।

रावघाट परियोजना क्या है?

कांकेर और नारायणपुर जिले में स्थित रावघाट की पहाड़ियों में लौह अयस्क के छह ब्लॉक हैं। इनमें 712.48 मिलियन टन लौह अयस्क होने का अनुमान है। छत्तीसगढ़ सरकार ने 9 जून 2003 को 456 मिलियन टन क्षमता वाले एफ ब्लॉक के कोरेगांव की खदान को निजी कंपनी को देने की मंजूरी दे दी है। यहां से कच्चे लोहे की सप्लाई के लिए रेल लाइन भी बिछाने का काम किया जा रहा है।

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