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रियासतकालीन  कालीन से चलते आ रहे कांकेर मेले का 2 घंटे में उजड़ गया आशियाना कोरोना का अब भी वही रोना

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  • रियासतकालीन से चलते आ रहे वार्षिक मेले की परंपरा को भी लगा कोरोना का ग्रहण

अक्कू रिजवी/ कांकेर : महिने भर से असमंजस और सस्पेंस की स्थिति में चल रहा कांकेर मेला अंतत: कोरोनावायरस के बहाने पुलिस और पालिका की मेहरबानी से 2 घंटे में उजाड़ कर रख दिया गया । बाहर के व्यापारी तथा स्थानीय व्यापारी भी जिन्होंने बड़ी उम्मीद से दुकानें सजा रखी थी, मेले को उजड़ते देख अत्यंत उदास,  हताश तथा निराश हो गए । बताया जाता है कि विगत डेढ़ सौ वर्षों में पहली बार ऐसा हुआ है कि कांकेर मेला रद्द कर दिया गया अन्यथा यह मेला मौसम खराब होने अथवा राजा महाराजा की मृत्यु हो जाने पर भी रद्द नहीं होता था। उदाहरण के लिए राजा कोमल देव सन् 1925 में कांकेर मेले के दौरान ही दिवंगत हो गए थे किंतु बाहर से आए छोटे छोटे दुकानदारों एवं आदिवासी प्रजा के मिलन स्थल पर विचार करते हुए तत्कालीन दीवान  ने मेले को रद्द नहीं किया था। कांकेर का मेला उतना ही पुराना है, जितना बस्तर का, ऐसा बस्तर के गजेटि यर में उल्लेख है। अंतर यही है कि कांकेर का मेला जनवरी के प्रथम सप्ताह में देव मेला के रूप में शुरू होता है जबकि बस्तर का मेला दशहरे के अवसर पर होता है जिसमें सारे बस्तर की देवियां तथा देवता सम्मिलित होते हैं, जिनमें प्रमुखता रियासत की इष्ट देवी दंतेश्वरी माई की रहती है। कांकेर के मेले से यहां की आदिवासी जनता की भावनाएं जुड़ी हुई हैं और जो लोग वर्ष भर अपने मित्रों रिश्तेदारों से नहीं मिल पाते, वह भी मेले के दिन इस मिलन का अवसर निकाल ही लेते हैं । कई छोटे छोटे व्यापारी मड़ई मेलों की कमाई पर ही निर्भर रहते हैं और मेले के सीज़न में हर मेला करते हैं ,इन सभी की उम्मीदों पर पानी फिर गया है,जब 2 दिनों से आकर दुकान लगाए दुकानदारों को पालिका तथा पुलिस ने कोरोना का  रोना  रोते हुए मेला स्थल से निकाल बाहर कर दिया है । इससे ना केवल व्यापारियों में बल्कि काँकेर की जनता में भी रोष है।

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