अमित बघेल के विवादित बयान के बाद स्थानीय बनाम बाहरी का मुद्दा गांव तक पहुंच गया है। इस मामले को शांत कराने कोई सामने नहीं आ रहा है। आग में घी डालने की कोशिश ज्यादा हो रही है। भाजपा के कोर वोट बैंक अग्रवाल और सिंधी समाज का सरकार पर दबाव है कि अमित बघेल की तत्काल गिरफ्तारी की जाए। सरकार ने गिरफ्तार करने की कोशिश भी की लेकिन पार्टी को राजनीतिक नुकसान होने की आशंका में टाल दी गयी। अब अगला कदम किस तरह और कैसे उठेगा यह चर्चा का विषय है। सोशल मीडिया पर इस मामले को लेकर चल रही तीखी बहस प्रदेश के लिए नुकसानदायक हो सकती है।इस पूरे मामले पर प्रदेश के प्रमुख राजनीतिक दलों के नेताओं की चुप्पी भी रहस्य का विषय बना हुआ है।
थम्ब मशीन के पहले सक्रिय..
एक दिसम्बर से थम्ब का मशीन मंत्रालय में प्रारंभ होने के पहले अधिकारियों और कर्मचारियों ने समय पर आने की आदत डालने लगे हैं। मंत्रालय में पहले अधिकारी दोपहर बाद आते थे। कर्मचारी, अधिकारियों का मूड देखकर आते थे अब नई व्यवस्था लागू होने के बाद मंत्रालय में थम्ब मशीन की चर्चा ज्यादा है। चीफ सेकेट्री लगभग प्रतिदिन लगभग 10 बजे मीटिंग बुलाने लगे हैं और अंतिम मीटिंग 5-6 बजे के बीच रहती है। ऐसे में मंत्रालय के कर्मचारियों के इधर-उधर भटकने की संभावनाएं खत्म होती जा रही है। यह भी हवा उड़ा दी गई है कि केन्द्र सरकार की तरह यहां सुबह 9 बजे से आफिस लगने का फरमान आगामी दिनों जारी हो सकता है।
साव के पीछे कौन..
पीडब्ल्यूडी मंत्री अरुण साव के रिश्तेदार के तेरहवीं कार्यक्रम में पीडब्ल्यूडी का पैसा खर्चा होने की चर्चा में मंत्री और बेमेतरा जिले के कलेक्टर को परेशान करके रख दिया है। पीडब्ल्यूडी ने सोशल मीडिया में चलती खबरों का लंबा चौड़ा स्पष्टीकरण देकर पल्ला झाड़ा है। इस खबर के पीछे कौन है, इसकी तलाश भी की जा रही है। यह बात सामने आई है कि बेमेतरा में टेंट हाऊस का काम करने वाला एक अल्पसंख्यक का व्यवसायी ने सूचना के अधिकार के तहत यह मामला निकाला और सोशल मीडिया में वायरल कर दिया। ठेकेदार को हर सरकारी कार्यक्रम का लंबा-चौड़ा काम मिल जाता था। परंतु पिछले कुछ दिनों से ठेकेदार को दरकिनार कर दूसरे को काम दिए जाने लगा। फिर क्या था नाराज ठेकेदार ने मंत्री और कलेक्टर को घेर दिया। इस मामले में बेमेतरा कलेक्टर की भूमिका से नाराजगी देखी जा रही हैं। बेमेतरा कलेक्टर से जनप्रतिनिधि पहले ही नाराज चल रहे हैं। अब इस मामले से सीनियर अफसर नाराज हो गये हैं। इसका अगले फेरबदल में गाज गिर सकती है।
बंगाल जाएंगे नेता..
बिहार विधानसभा चुनाव निपटने के बाद लौटकर आने वाले सत्ता और संगठन के बड़े नेताओं को पश्चिम बंगाल चुनावी रणनीति बनाने भेजने की तैयारी है। भाजपा केन्द्रीय नेतृत्व बंगाल चुनाव को लेकर तैयारी में अभी से भिड़ गई है। इस चुनाव में छत्तीसगढ़ भाजपा के बड़े नेताओं को जिम्मेदारी दी जा सकती है। बंगाल के कुछ जिलों का प्रभार भाजपा संगठन व सरकार के नेताओं को दिए जाने के संकेत है। पिछले माह प्रदेश सरकार के प्रभावशाली मंत्री को बंगाल दौरे पर गुप्त एजेंडे में भी भेजा गया था। पार्टी को मजबूत करने संगठन की तरफ से कार्यक्रम चलाए जा रहें है। कुछ विशेष क्षेत्र में अभी से अंदरूनी तैयारी का टारगेट दिया गया है।
केदार का कद बढ़ा, लेकिन ….
संसदीय कार्यमंत्री केदार कश्यप का कद पार्टी संगठन व सरकार में बढ़ता जा रहा है। पार्टी के कार्यक्रम को पूरा करने की जिम्मेदारी केदार कश्यप को मिलती जा रही है। उसके बावजूद भी केदार कश्यप के असंतुष्ट होने की खबरें बाहर आ रही है। दरअसल, जल संसाधन विभाग के कामकाज को केदार कश्यप बखूबी समझकर दौड़ाने लगे थे कि अचानक विभाग बदल दिया गया। हालांकि परिवहन जैसा महत्वपूर्ण विभाग बदले में केदार कश्यप को दिया गया लेकिन मजा तो जल संसाधन विभाग में काम करने का आ रहा था। अब दुख-दर्द का बंटवारा ज्यादा जगह भी कर नहीं सकते । इसके पीछे का कारण बोधघाट परियोजना को आगामी दिनों अंतिम रुप देने की जोरदार कोशिश को माना जा रहा है।
प्रधानमंत्री की रमन प्रसंशा के राजनीतिक मायने
राज्य स्थापना दिवस के रजत जयंती मौके पर पीएम नरेंद्र मोदी आधा दर्जन कार्यक्रमों में शिरकत की। इस दौरान स्पीकर डॉ रमन सिंह की जमकर तारीफ की, इस प्रसंशा के कई राजनीतिक मायने निकल रहें हैं। एक तरफ भाजपा के भीतर डॉ रमन सिंह के समर्थक काफी खुश हैं, लेकिन दूसरी ओर राजनांदगांव में कई बड़े लोग नाखुश हैं।
बताते हैं कि उपराष्ट्रपति डॉ सीपी राधाकृष्णन राजनांदगांव गए, तो स्थानीय विधायक डॉ रमन सिंह के यहां भोजन पर गए। कई और लोगों को भी उपराष्ट्रपति के साथ भोजन के लिए बुलावा था। मगर उपराष्ट्रपति ने घर परिवार के लोगों के अलग से भोजन लिया। इससे उपराष्ट्रपति से मेल मुलाकात की इच्छा पूरी नहीं होने से कुछ लोग निराश भी हुए।
रायपुर मास्टर प्लान, डेढ़ साल में नतीजा शून्य!
शहर की बढ़ती आबादी और भविष्य की जरूरतों को देखते हुए बनाया गया मास्टर प्लान अभी तक कागज़ों में ही फंसा है। पिछले डेढ़ साल में काम नाम का कोई निशान नहीं। वो अधिकारी, जो पिछली सरकार में बैठे थे, आज भी वहीं टिके हुए हैं।
जानकारी मिली है कि उच्च अधिकारियों की मीटिंग में सिर्फ अगले हफ्ते कुछ “छोटे-छोटे दिखावे के काम” जैसे सड़क चौड़ीकरण करने का फैसला हुआ है। बाक़ी सब… भगवान भरोसे! रायपुरवासियों का भरोसा अब मास्टर प्लान पर नहीं, बल्कि किस्मत पर टिक गया है।
वही राजधानी को हरा-भरा बनाने की बात तो खूब की गई, अब देखना है अगली हफ्ते की मीटिंग में क्या फैसला होगा।

