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देवउठनी एकादशी का पावन पर्व हर्ष, उल्लास और भक्ति-भाव के साथ संपन्न

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देवउठनी एकादशी का पावन पर्व हर्ष, उल्लास और भक्ति-भाव के साथ संपन्न

 

नीरज शर्मा

शिवरीनारायण। नगर में देवउठनी एकादशी का पावन पर्व हर्ष, उल्लास और भक्ति-भाव के साथ मनाया गया। प्रातः से ही मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी और भगवान श्रीहरि नारायण के शयन से जागरण का विशेष पूजन संपन्न हुआ। भक्तों ने धूप, दीप और पुष्प अर्पित कर भगवान को जगाने की परंपरा निभाई।

देवउठनी एकादशी :
मान्यता है कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान श्रीहरि चार महीने की योगनिद्रा (चातुर्मास) पूर्ण कर जागते हैं। कहते हैं कि जब सूर्य की पहली किरणें धरा पर पड़ती हैं, तो उन्हीं धूप-रश्मियों के साथ प्रभु जागरण करते हैं और संसार में पुनः शुभ कार्यों का आरंभ होता है। यही कारण है कि इस दिवस को प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। भगवान के उठते ही जगत में पुनः ऊर्जा, सौहार्द और मंगल की लहर फैलती है।

तुलसी विवाह का आयोजन:
देवउठनी एकादशी के अवसर पर नगर में पारंपरिक तुलसी विवाह का भव्य आयोजन हुआ। तुलसी माता का विवाह भगवान विष्णु के स्वरूप ‘शालिग्राम’ से विधि-विधानपूर्वक कराया गया। महिलाएं मंगल गीत गाती हुई पूरे आयोजन में शामिल रहीं। पुरोहितों द्वारा मंत्रोच्चार के बीच तुलसी विवाह का यह पावन कार्यक्रम भक्तों के आकर्षण का केंद्र बना।

नगर में भक्ति का माहौल:
सुबह से ही मंदिरों में सुंदरकांड पाठ, भजन-कीर्तन और दीपदान का क्रम चलता रहा। श्रद्धालुओं ने भगवान श्रीहरि के जागरण की आरती उतारते हुए पूरे वातावरण को “जय श्रीहरि नारायण” के जयकारों से गुंजायमान कर दिया।

पंडितों ने बताया कि देवउठनी एकादशी के साथ ही विवाह, गृहप्रवेश, मुंडन सहित सभी शुभ कार्य शुरू माने जाते हैं, क्योंकि आज के दिन स्वयं भगवान उठकर धर्म व सदाचार की पुनः स्थापना का संकेत देते हैं।

अंत में
धार्मिक आस्था, लोक परंपरा और भक्ति से ओत-प्रोत यह पर्व नगरवासियों के लिए आध्यात्मिक ऊर्जा का संदेश लेकर आया। पूरे दिन नगर में भक्ति, उल्लास और आध्यात्मिकता का अद्भुत संगम देखने को मिला।

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