बिलासपुर वॉच

क्या मान्यता प्राप्त यूनियन अपने वादों पर खरे उतरेंगे पहले भी रेल कर्मचारियों को निराशा ही हाथ लगी है ?

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क्या मान्यता प्राप्त यूनियन अपने वादों पर खरे उतरेंगे पहले भी रेल कर्मचारियों को निराशा ही हाथ लगी है ?

कमलेश लवहात्रै ब्यूरो चीफ

बिलासपुर|रेलवे में यूनियन को मान्यता प्राप्त करने के लिए जैसे-जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आते जा रही है वैसे ही रेल कर्मचारियों के बीच गहमागहमी मची हुई है। चुनाव लड़ने वाले सभी रेल कर्मचारी संगठन अपने लुभाने वादों को लेकर अधिक से अधिक मत पाने के लिए रेल कर्मचारियों से संपर्क साध रहे हैं वैसे तो मजदूर कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत लगा दी है रेलवे क्षेत्र में बेनर पोस्टर लगाकर वह साबित कर रही है कि हम मान्यता प्राप्त करने के लिए चाहे जितना भी खर्च करना पड़े हम करेंगे भले हुए पैसा रेल कर्मचारियों से प्राप्त सहयोग राशि से प्राप्त किया हो।

रेल विभाग में सीनियर सेवारत कर्मचारी कहना है कि: जिन्हें भी यूनियन को मान्यता मिली थी कर्मचारियों के हित में उन्होंने क्या काम किया जबकि मजदूर कांग्रेस के सर्वाधिक प्रतिनिधि चुनकर आए और उनका राष्ट्रीय स्तर पर ज्यादा दखल रहा क्या उनके पास इन प्रश्नों का जवाब है।

जैसा कि नियम है की राष्ट्रीय स्तर पर रेल कर्मचारियों के लिए जो भी निर्णय होता है उसमें मान्यता प्राप्त यूनियन नेताओं का सहमति व हस्ताक्षर से ही नियम व योजनाएं लागू किए जाते हैं।

पूर्व में मान्यता प्राप्त यूनियन जवाब दे
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///मान्यता प्राप्त यूनियन के द्वारा, कर्मचारीओ के साथ किया गया छल-कपट:-////
1) 15 CL घटाकर 10 CL कर दी. 5 CL क्यों खा गए ..??

2) 2016 मे पे कमिशन मे सरकार खुद की सहमति से 21000 दे रही थी, तो 18000 मे क्यों सहमति बनाई..??

3) कोरोना काल मे ज़ब रेल रुकी नहीं, कर्मचारी ने कार्य किया तो 18 महीने का DA का गमन क्यों किया गया..??

4) जब तुमने OPS हड़ताल के लिए गुप्त मतदान कराया तो कर्मचारीयो ने 99% हड़ताल पक्ष के पक्षमे मतदान किया, तो तुम क्यों भागे..??

5) जब रेल मे UPS जबरन लागु कराया जा रहा था.. तुमने कर्मचारीओ से एक बार पूछना क्यों जरुरी नहीं समझा… अकेले दिल्ली जा कर कर्मचारीयो को नीलाम क्यों कर आये..??

6) हम जब 7 th पे कमीशन मे वेतन पा रहे है. तो बोनस 6 th पे कमीशन के हिसाब से क्यों..??

7) 8 वे पे कमीशन की कमेटी गठित क्यों नहीं की गयी..??

8) क्या सत्ता मे बैठे नेता सिर्फ चंदा और वोट लेने के लिए होतें है? क्योकि कर्मचारी हित मे कार्य नहीं किया गया..!!

इन सभी प्रश्नों का जवाब सीनरी सीनरी सेवारत रेल परिवार के सदस्य चाहते हैं।
आपको बताते चले की
रेलवे में यूनियन को मान्यता प्रदान करने के लिए 11 साल बाद 4, 5 और 6 दिसंबर को चुनाव होंगे।

मान्यता प्राप्त करने के बाद यूनियन कितना सफल हो पाती है यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन यूनियन के नेतागण
ओल्ड पेंशन को फिर लागू करने की की बात अवश्य कर रहे हैं।
रेलवे यूनियन के इस चुनाव के चलते जोन में राजनीतिक माहौल गर्माते जा रहे हैं, जिनमें से ओल्ड पेंशन योजना सबसे प्रमुख मुद्दा बना हुआ है। सभी यूनियन संघ इसे लेकर ही चुनाव लड़ रहे हैं।

रेल कर्मचारी जब सेवानिवृत्त होते हैं, तो उन्हें एक निश्चित राशि पेंशन के रूप में दी जाती है। लेकिन सरकार इसकी जगह में अब कर्मचारियों को यूपीएस यानी एकीकृत पेंशन देने की घोषणा की है। ऐसे में रेलवे संघ इसे ही मुद्दा बनाते हुए ओल्ड पेंशन को फिर से चालू करने की बात करते हुए चुनाव में वोट मांग रही है।

चुनाव में दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के बिलासपुर, रायपुर व नागपुर मंडल के लगभग 40 हजार अधिकारी कर्मचारी मतदाता मतदान करेंगे।

इस बार के चुनाव में सभी रेल कर्मचारी नेता व सदस्य पूरे रेलवे क्षेत्र में घर-घर दस्तक दे रहे हैं यदि रेल कर्मचारी व अधिकारी अपने निवास में नहीं मिलने पर उनके धर्मपत्नियों से भी अपने पक्ष में मतदान करने का आग्रह कर रहे हैं।

इस बार 6 मजदूर संगठन ने चुनाव के लिए नामांकन भरा है। इसमें मजदूर कांग्रेस, श्रमिक यूनियन, स्वतंत्र बहुजन समाज रेलवे कर्मचारी, मजदूर संघ, मजदूर यूनियन और अखंड रेलवे संगठन ने बिलासपुर के जोन ऑफिस में नामांकन भरा है।
नामांकन प्रक्रिया पूरा होने के बाद अब चुनाव को लेकर दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के बिलासपुर, रायपुर व नागपुर में यूनियन के पदाधिकारी सक्रिय हो चुके हैं। पिछला चुनाव वर्ष 2013 में हुआ था तब से अब तक 11 साल मजदूर कांग्रेस सत्ता पर रही। वहीं अब अन्य 5 संगठन भी इस चुनाव में जीत दर्ज करने के लिए प्रचार-प्रसार शुरू कर दी है।
33 प्रतिशत मत हासिल करने पर मिलेगी मान्यता
रेलवे में ट्रेड यूनियन की मान्यता के लिए चुनाव अगस्त 2013 में हुआ था। कार्यकाल 6 साल बीतने के बाद भी लंबे समय तक चुनाव नहीं होने से मतदाता रेल कर्मचारी चुनाव का इंतजार कर रहे थे। इस चुनाव में जो भी यूनियन कुल मतदान का 33 % मत हासिल करेगी। उसको मान्यता दी जाएगी। मान्यता मिलने के बाद संबंधित संगठन के पदाधिकारी सीधे सरकार के सामने अपनी मांगें रख सकती है। उन्हें अधिकार मिलता है कि वो अपने प्रश्र सीधे सरकार से करें और उसका उत्तर लें। इसके साथ ही उन्हें अन्य कई सुविधा भी मिलती है।

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