रायपुर दक्षिण उपचुनाव में कांग्रेस की आक्रमकता बढेगी
जैसे-जैसे रायपुर दक्षिण का उपचुनाव नजदीक आ रहा है, कांग्रेस की केंद्रीय नेतृत्व अपने खोए हुए राजनीतिक स्थान को पुनः प्राप्त करने के लिए प्रयास तेज कर रहा है। पार्टी ने पहले के उम्मीदवार चयन प्रक्रियाओं की आलोचना का सामना किया, जिसने कई स्थापित समर्थकों को निराश कर दिया। पिछले अनुभवों से सीखते हुए, कांग्रेस अब नए चेहरों की तलाश कर रही है जो मतदाताओं से बेहतर जुड़ सकें। संभावित उम्मीदवारों में सनी अग्रवाल, आकाश शर्मा कन्हैया अग्रवाल और प्रमोद दुबे शामिल हैं, जिन्हें पार्टी के अभियान को संजीवनी देने के लिए देखा जा रहा है। इसी मे एक बडा नाम है राजीव वोरा का, गोविंद लाल वोरा के सुपुत्र एवं मोतीलाल वोरा के भतीजे, रायपुर दक्षिण उपचुनाव के लिए एक मजबूत दावेदार के रूप में उभर रहे हैं। उनकी समृद्ध राजनीतिक विरासत और राज्य मे ही नही दिल्ली के गहरे संपर्क उनके पक्ष मे काम करेंगे। राजीव पिछले एक दशक से अधिक समय से वोरा गुट की कमान थामे हुए हैं, और उनके समर्थक और शुभचिंतक उनके चुनावी राजनीति में कदम रखने को लेकर उत्साहित हैं।
राजीव की चुनावी रणनीतिया और प्रबंधन विशेष रूप से दुर्ग में उनके भाई अरुण वोरा की चुनावी लड़ाई के संदर्भ में चर्चा मे रहती है। यह पारिवारिक संबंध वोरा कैंप की ताकत को और बढ़ाता है।
इस उपचुनाव को और जटिल बनाता है भाजपा के ब्रजमोहन अग्रवाल का होना, जो इस क्षेत्र के सबसे वरिष्ठ राजनेता हैं और इस सीट के 7 बार विधायक रह चुके हैं। उनके होने के कारण, यह चुनाव एक मुकाबले का मंच तैयार करेगा।
कांगेस से अगर राजीव वोरा होते है तो उनका सामना उस उम्मीदवार से होने की संभावना है जिसे ब्रजमोहन अग्रवाल द्वारा चुना जाएगा, जिससे यह चुनाव राजनीतिक तिकड़मो का एक जबरदस्त प्रदर्शन होगा, जिसमें दोनो तरफ से धन और बाहुबल का प्रभाव भी देखने को मिलेगा। यह मुकाबला केवल चुनाव जीतने का नहीं है, बल्कि लंबे समय से चल रही पारिवारिक विरासतों और प्रतिष्ठाओं को बनाए रखने का भी होगा, जो छत्तीसगढ़ की राजनीति के निरंतर बदलते परिदृश्य में महत्वपूर्ण है।
विपक्ष मे रहते हुए कांग्रेस पार्टी की वर्तमान रणनीति इस बार रायपुर दक्षिण निर्वाचन क्षेत्र में पारंपरिक पुराने राजनीतिक चेहरे को उम्मीदवारी पेश करने की नजर नही आती है , जैसा कि पिछले चुनावों में होता आया है। दीपक बैज और सचिन पायलट की नेतृत्व में, कांग्रेस पार्टी को तैयार किया जा रहा है कि वह मतदाताओं के साथ सार्थक तरीके से जुड़ें और पार्टी को ऊर्जा प्रदान करें।
इस चुनाव के नतीजे न केवल कांग्रेस के लिए बल्कि सत्ताधारी भाजपा के लिए भी महत्वपूर्ण होंगे, क्योंकि यह दोनों पार्टियों के लिए राजनीतिक रणनीतियों का एक महत्वपूर्ण परीक्षण होगा। कांग्रेस के लिए यह एक अवसर है न केवल उपचुनाव जीतने का, बल्कि छत्तीसगढ़ की राजनीति में अपनी स्थिति को मजबूत करने का भी।