करोड़ों खर्चने के बाद भी नहीं थम रही पोर्टाकेबिन आवासीय आश्रमों में आदिवासी मासूमों की मौत और घटनाएं
तारलागुड़ा रेसिडेंशियल हॉस्टल में शिक्षा सत्र शुरू होने के बाद अब तक नहीं हुई स्वास्थ्य जांच, गंभीर लापरवाही. पास ही मौजूद है मलेरिया का एपिसेंटर
पवन दुर्गम, बीजापुर – दक्षिण बस्तर के तीन जिलों बीजापुर, दंतेवाड़ा, सुकमा में पोर्टाकेबिन आश्रम शालाओं की शुरुआत यहां के अतिसंवेदनशील, दुरस्त इलाके में बसने वाले आदिवासी समुदाय के बच्चों के शिक्षा गुणवत्ता को सुधारने के लिए की गई थी। लेकिन एक दशक बाद पोर्टाकेबिन व्यवसाय में तब्दील हो चुका है। पोर्टाकेबीन रेसिडेंशियल आश्रम शालाओं में अधीक्षक बनने शिक्षकों 5-7 लाख रुपए तक देने को तैयार हो जाते हैं। ऐसे कई उदाहरण सामने हैं जहां शिक्षक पैसे लेकर अधिकारियों और नेताओं के चक्कर काटते हैं। पोर्टाकेबिन तारलागुड़ा में एक दूसरी कक्षा की छात्रा मलेरिया से पीड़ित होने के बाद दम तोड देती है। वहीं माटवाड़ा पोर्टाकेबिन में अध्ययन पहली कक्षा का छात्र नेशनल हाईवे 63 पर स्तिथ आश्रम से 25 किलोमीटर दूर तक सैकड़ों वाहनों की आवाजाही के बीच नैमेड पहुंच जाता है। ऐसी लापरवाही से स्पष्ट है कि अधीक्षक महज मोटा माल कमाने पद लेना चाहते हैं न की बच्चों के सुनहरे भविष्य को संवारना।
दरअसल बीजापुर जिले में संचालित 34 पोर्टाकेबिनों में अव्यवस्था और लापरवाही के कई मामले सामने आते ही रहे हैं। आवापल्ली पोर्टाकेबिन में लगी आग में एक मासूम के जलकर मरने की खबर हो या शिक्षक द्वारा बच्चों से बदसलूकी हो। दर्जनों मामले प्रकाश में आ चुके हैं।
ताजा मामला तारलागुड़ा पोर्टाकेबिन से निकलकर आया है। दीक्षिता रेगा को बुधवार को मलेरिया पॉजिटिव आया जिसे अधीक्षण परिजनों को सौंप दिया। जिसके बाद गुरुवार को परिजन भोपालपटनम हॉस्पिटल लेकर आए। गुरुवार दोबारा भोपालपटनम से बीजापुर के लिए रेफर कर दिया गया। बीजापुर से शुक्रवार को मेडिकल कॉलेज डिमरापाल रेफर किया गया। शनिवार को छात्रा की मृत्यु हो गई। स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को बदहाली और ईलाज नही होने से कहीं न कहीं दीक्षिता ने दम तोड दिया।
पोर्टाकेबिन अधीक्षिका अधीक्षिका जयम्मा कोरम ने शिक्षा सत्र शुरू होने से लेकर अब तक आश्रम के बच्चों का स्वास्थ्य चेकअप तक नही करवाया जो की बड़ी गंभीर लापरवाही और कहीं न कहीं मौत का कारण बना।
बतादें तारलागुड़ा के आगे तेलंगाना स्टेट का बना थुपाकुलगुडेम डैम का बैक वाटर यहां मलेरिया एपिसेंटर का काम कर रहा है। 2022 और 2023 में भी बारिश के मौसम के दौरान यहां दर्जनों मलेरिया से पॉजिटिव छात्र मिले थे। डैम का बैक वाटर यहां आश्रम के आसपास गड्ढों और नालियों में भर जाता है जो महीनो तक जमा रहता है। साथ ही हॉस्टल में पर्याप्त मात्रा में मच्छरदानियां नहीं होना भी मलेरिया पॉजिटिव मिलने का बड़ा कारण है।