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आदमी जीवन में अपने रंग से नहीं ढंग से महान होता है : ललितप्रभ सागर

रायपुर । पं. दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम, साइंस काॅलेज परिसर में पांच दिवसीय विशेष प्रवचनमाला के चतुर्थ दिवस शनिवार को ललितप्रभ सागर महाराज ने कैसा बनाएं स्वभाव कि दूसरों पर पड़े प्रभाव विषय पर कहा कि किसी भी इंसान की जिंदगी में अगर सबसे मुश्किल काम होता है तो वह है अपने आपको सुधारना। क्योंकि हम सुधारने की कार्रवाई की शुरूआत अपने-आपसे नहीं दूसरों से करते हैं। आओ हम आज से शुरूआत करते हैं दूसरों को सुधारने की नहीं अपने आपको सुधारने की। स्वयं को सुधारने का कार्य करने वाले दुनिया में और कोई नहीं वह आप खुद हैं। कुछ लोग हमारे जिंदगी में ऐसे होते हैं जो अपने अच्छे नेचर के कारण हमारे दिल में उतर जाते हैं और कुछ लोग अपने गलत स्वभाव के कारण दिल से उतर जाते हैं।

संतप्रवर ने आगे कहा कि आज दुनिया में जो महापुरूष पूजे जा रहे हैं तो वे अपने अच्छे चरित्र से की वजह से पूजे जा रहे हैं। वे इसीलिए नहीं पूजे जाते कि उनका चेहरा सुंदर था, वे इसीलिए पूजे जाते हैं कि उनका चरित्र, स्वभाव, व्यवहार सुंदर था। उनका जीवन आदर्शमय था। इसीलिए अगर आप अमीर हैं अच्छी बात है और अगर नहीं हैं तो कोई दिक्कत नहीं। किसी भी व्यक्ति को महान जीवन का मालिक बनने के लिए अमीर होना जरूरी नहीं है, चरित्र से अच्छा होना जरूरी है। महान होने के लिए न अमीर होना जरूरी है और न चेहरे से सुंदर होना जरूरी है, जरूरी है आदमी का चरित्र सुंदर हो। अच्छे स्वभाव का व्यक्ति तब तक पूजा जाता है, जब तक दुनिया है। आदमी जीवन में अपने रंग से नहीं अपने ढंग से महान होता है।

जिंदगी में सदा मुस्कुराते रहो, फासले कम करो दिल मिलाते चलो… इस प्रेरक भाव गीत से धर्मसभा की शुरूआत करते हुए उन्होंने कहा कि सजाना है तो अपने शरीर को मत सजाओ, जिसको एक दिन मिट्टी में मिल जाना है, सजाना है तो अपनी आत्मा को सजाओ जिसको एक दिन परमात्मा के पास जाना है। जैसा होगा स्वभाव, वैसा ही पड़ेगा दूसरों पर प्रभाव। स्वर्ग उनके लिए है जो अपने गुस्से को अपने काबू में रखते हैं और स्वर्ग उनके लिए है जो दूसरों की गलतियों को माफ करते हैं। भगवान भी उन्हीं से प्यार करते हैं जो दूसरों के प्रति दयालु और करूणाशील होते हैं। गुस्सा वो दियासलाई है जो जलती तो है दूसरों को जलाने के लिए मगर खुद भी जल जाती है। अपने-आपको झिंझोड़ना होगा, लगाम लगानी पड़ेगी, क्या इसी तरह नर्क की जिंदगी काटते रहेंगे। जो अपने जीवन में होनी वाली घटनाओं से सबक लेकर नहीं सुधरता उसे भगवान भी नहीं सुधार सकते। आदमी स्वयं के स्वभाव को सुधारना नहीं चाहता, यही वह कारण है कि आज आदमी अपने-आपको मानसिक अशांत तनाव से भरा महसूस करता है। जैसा हमारा नेचर होगा वैसा ही हमारा फ्यूचर भी होता है।

धर्मसभा के पूर्वार्ध में डाॅ. मुनि शांतिप्रिय सागर ने कहा कि इस दुनिया में सारे काम सरल हैं पर अपने आपको सरल बनाना यह सबसे कठिन काम है। परमात्मा के सामिप्य में वही प्रवेश करता है जो अपने आपको सरल बना लेता है। श्रीभगवान ने कहा है कि हमारे चार शत्रु हुआ करते हैं- क्रोध, मान, माया और लोभ। जिनकी वजह से हमारे जीवन में दुख और अशांति का जन्म होता है। इसी तरह हमारे जीवन में चार मित्र होते हैं, जिनकी वजह से हमारे जीवन में शांति और आनंद का उदय होता है। वे मित्र हैं- क्षमा, सरलता, नम्रता और संतोष। जीवन में सरलता लाना चाहते हैं तो छल-कपट, माया-प्रपंच को अपने जीवन से हटाना होगा। जो व्यक्ति बालक की तरह सरल होता है वही परमात्मा की साम्राज्य में प्रवेश कर सकता है।

धर्मसभा का शुभारंभ तीर्थंकर परमात्मा के छायाचित्र के समक्ष श्रीमती सुशीला देवी, राजेश-साधना मूणत परिवार, सच्चिदानंद उपासने, श्रीमती किरण संचेती, श्रीमती उर्मिला जैन-चेन्नई, ओंकार बैस, वीके प्रधान-नागपुर, प्रकाशचंद चोपड़ा, अशोक पटवा, अनिल-नमिता पारख, पुखराज मुणोत, सुरेश डहरिया, ज्ञानपुष्प के लाभार्थी अशोक पगारिया द्वारा दीप प्रज्ज्वलन से किया गया। सभा का संचालन दिव्य चातुर्मास समिति के महासचिव पारस पारख ने किया। श्रीसमृद्धि महिला मंडल द्वारा मधुर भक्तिगीत की प्रस्तुति दी गई।

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