नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि पुरी के जगन्नाथ मंदिर में ओडिशा सरकार द्वारा की जा रही निर्माण गतिविधि व्यापक जनहित में है। इसके साथ ही न्यायालय ने निर्माण कार्य का विरोध करने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की अवकाशकालीन पीठ ने जुर्माना लगाते हुए जनहित याचिका को खारिज कर दिया।
पीठ ने स्पष्ट किया कि मंदिर में आने वाले लाखों श्रद्धालुओं को मूलभूत सुविधाएं देने के उद्देश्य से राज्य सरकार द्वारा किए जा रहे आवश्यक निर्माण कार्य को रोका नहीं जा सकता। शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की आपत्ति में कोई आधार नहीं है। पीठ ने गैरजरूरी जनहित याचिकाएं (पीआईएल) दायर करने पर भी फटकार लगाई। उसने कहा कि इस तरह की ज्यादातर पीआईएल या तो ‘पब्लिसिटी इंट्रेस्ट लिटिगेशन’ (लोकप्रियता अर्जित करने के इरादे से दायर याचिका) या फिर ‘पर्सनल इंट्रेस्ट लिटिगेशन’ (व्यक्तिगत हित के लिए दायर याचिका) होती हैं।
पीठ ने कहा, हमारा मानना है कि जनहित के उद्देश्य के अतिरिक्त जो पीआईएल दायर की जाती हैं, वे जनहित विरोधी होती हैं। हाल ही में ऐसा देखा गया है कि ढेर सारी पीआईएल दायर की जा रही हैं। इनमें से अधिकांश याचिकाएं या तो ‘पब्लिसिटी इंट्रेस्ट लिटिगेशन’ या फिर ‘पर्सनल इंट्रेस्ट लिटिगेशन’ होती हैं।
न्यायालय ने कहा, हम इस प्रकार की गैरजरूरी पीआईएल दायर करने को अनुचित मानते हैं, क्योंकि यह कानून का दुरुपयोग करने जैसा है। इससे न्याय प्रणाली का कीमती समय बर्बाद होता है। समय आ गया है कि इस प्रकार की याचिकाओं को तत्काल समाप्त कर दिया जाए, ताकि विकास कार्य बाधित न हों।
शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसा माहौल बनाया गया कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) की निरीक्षण रिपोर्ट का उल्लंघन कर निर्माण कार्य किया जा रहा है, लेकिन एएसआई के महानिदेशक का नोट स्थिति को स्पष्ट करता है।