डेस्क। 90 के दशक में बंदूक की नोक पर कश्मीर से बेदखल किए गए कश्मीरी पंडितों (हिंदुओ) की विशेष पैकेज के साथ भारत सरकार वापसी करा रही है। पर यह बात वो कश्मीरी कब्जेधारी बर्दाश्त नहीं कर पा रहे। उन्होंने फिर बसाये गए कश्मीरी पंडितों की हत्या करना शुरू कर दिया है। बीते दिनों प्रधानमंत्री विशेष पैकेज के तहत सरकारी नौकरी प्राप्त करने वाले राहुल भट्ट की भी उसके दफ्तर में ही हत्या हो गई।आज डर का माहौल ऐसा बना है कि सरकारी नौकरी प्राप्त 350 कश्मीरी पंडितों ने सरकार को इस्तीफा सौप दिया है।
अब आते हैं दूसरे पहलू में। कश्मीरी पंडितों के मुद्दे पर देश के विपक्षी राजनीतिक दल विशेष रूप से कांग्रेस पार्टी, भारत सरकार से सवाल पूछती हैं कि उन्होंने कश्मीरी पंडितों के लिए आखिर किया किया है? कितने लोगों को बसाया है? वैसे यह सवाल वाजिब भी है। जिस वादे और दावे के साथ देश मे सरकार बनी है उनसे यह पूछना जरूरी भी है।
हालांकि मोदी सरकार बड़े पैमाने में कश्मीरी पंडितों को उनका हक,उनका घर,लूटी हुई जमीन जायदाद वापस दिलाने की दिशा में काम कर रही है। हज़ारों बसाये जा चुके है। परंतु सरकार द्वारा बसाये जा रहे कश्मीरी पंडितों की हत्या अगर होती है तो क्या उन विपक्षियों का मुंह मे दही जमाये बैठ जाना सही है? क्या उन्हें कश्मीरी पंडितों का हौसला बढ़ाने आगे नही आना चाहिए? यहा तो विपक्ष की भूमिका लगती है मानों आतंकियों को उनका मौन समर्थन हो।
खैर, देश सब देख और समझ रहा है कि किसकी नियत कैसी है। कौन झूठ और षड्यंत्र की राजनीति कर रहा है, कौन विदेशी ताकतों की हाथों की कठपुतली बना हुआ है,कौन चीन से आ रहे रुपयों से आबाद हो रहा है।अच्छा ही है,देश तोड़ने की मंशा रखने वाले भी बेनकाब हो रहे है।
वैसे इस मुद्दे पर भारतीय के नाते मेरा नज़रिया एकदम साफ और सोंच अपने देश की सरकार के साथ है। मैं समझता हूं सरकार अपना काम अच्छा कर रही है,राजधर्म निभा रही है।
भारत की सेना भी अपने कर्तव्यों का पूर्ण रूप से निर्वहन कर रही है। अखबार,टीवी में चलने वाली खबरों को जरा ध्यान देकर सुनिये। वो जब एक कश्मीरी पंडित को मारते है न तो उस मौत के 10 गुनाहगारों को कुछ दिनों में ही सेना ढेर कर देती है।