रायपुर। ग्रहों के चक्रव्यूह से आज तक कोई नहीं बच पाया है। इंसान तो इंसान देवता भी इसके प्रभाव के गिरफ्त में आ जाते हैं। कहते हैं कुंवारी कन्या देवी का स्वरुप होती है। इसीलिए नवरात्र में कन्या भोजन कराने का भी रिवाज हैं। महाभारत के एक संवाद में भीष्म पितामह ने अर्जुन को बताया है कि घर में कुंवारी कन्या हो। उस घर में पिता के साथ ही बेटी को खाना, खाना चाहिये। इससे अकाल मृत्यु का भय खत्म होता है।
कहते हैं बेटी पिता की अकाल मृत्यु को हर लेती है ! इसीलिए बेटी जब तक कुंवारी रहे तब तक पिता के साथ ही भोजन करना चाहिये। क्योंकि वह अपने पिता की अकाल मृत्यु को हर लेती हैं।
वहीं भोजन भीष्म पितामह ने अपने आगे के संवाद में अर्जुन को चार प्रकार के भोजन नहीं करने के बारे में बताया है।
1. पहला भोजन ….
जिस भोजन की थाली को कोई लांघ कर गया हो वह भोजन की थाली नाले में पड़े कीचड़ के समान होती है।
2. दूसरा भोजन ….
जिस भोजन की थाली में ठोकर लग गई, पाव लग गया वह भोजन की थाली भिष्टा के समान होता है ….
3. तीसरे प्रकार का भोजन ….
जिस भोजन की थाली में बाल पड़ा हो, केश पड़ा हो वह दरिद्रता के समान होता है।
4. चौथे प्रकार का भोजन ….
अगर पति और पत्नी एक ही थाली में भोजन कर रहे हो तो वह मदिरा के तुल्य होता है।
साथ ही भीष्म पितामह ने कहा है सुनो अर्जुन अगर पत्नी,पति के भोजन करने के बाद थाली में भोजन करती है या पति का बचा हुआ खाती है तो उसे चारों धाम के पुण्य का फल प्राप्त होता है।